पुत्र-मोह में धृतराष्ट्र ने महाभारत करवा दी थी। आज वही काम उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। उन्हें महाराष्ट्र की जनता और बाला साहब के सिद्धान्तों की कोई परवाह नहीं। पुत्र-मोह में उद्धव ठाकरे भाजपा से 30 साल पुराना रिश्ता तोड़ने को तैयार हैं।

बाल ठाकरे की बरसी पर उद्धव एवं राज ठाकरे तो इकट्ठे दिखाई दिये; मगर भाजपा के पूर्व मुख्य मन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस ठाकरे परिवार के वहां से चले जाने के बाद ही बाला साहब ठाकरे को श्रद्धांजलि देने वहां पहुंच। 

उद्धव ठाकरे का कहना है कि वे बाला साहब ठाकरे के सपनों को पूरा करेंगे। क्योंकि यह सब मुंबई में हो रहा है तो आर.के. लक्ष्मण का आम आदमी सोच रहा है कि क्या बाला साहब ठाकरे का सपना हिन्दुत्व का मुद्दा छोड़ कर एन.सी.पी. और काँग्रेस के साथ मिल कर कर सरकार बनाने का हो सकता है। 

बीस वर्ष पहले 1999 में बाला साहेब से एक इंटरव्यू में पूछा गया था, “सर क्या चुनाव के बाद आपके एनसीपी के साथ जाने की कोई संभावना दिख रही है…कोई गठबंधन?” 

इस प्रश्न का जवाब देते हुए बाल ठाकरे ने कहा था, “राजनीति में क्या संभावनाएं… राजनीति के बारे में कहा जाता है कि ये दुष्टों का खेल है, अब ये एक शख़्स को तय करना है कि वो या तो जेंटलमैन बना रहना चाहता है या फिर…” उन्होंने आगे कहा, “मैं ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं जाऊंगा, चाहे वो कोई भी हो…”

बाल ठाकरे ने सोनिया गान्धी के प्रधानमन्त्री बनने पर आपत्ति दर्ज की थी क्योंकि सोनिया गान्धी का जन्म इटली में हुआ था। आज स्थिति यह है कि पुत्र-प्रेम में पाग़ल हो कर उद्धव ठाकरे 10 जनपथ से आशीर्वाद पाने को लालायित हैं जबकि शरद पवार और सोनिया गान्धी उद्धव ठाकरे को समर्थन का पत्र अभी तक नहीं दे रहे हैं। 

पुत्र-मोह में धृतराष्ट्र ने महाभारत करवा दी थी। आज वही काम उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। उन्हें महाराष्ट्र की जनता और बाला साहब के सिद्धान्तों की कोई परवाह नहीं। पुत्र-मोह में उद्धव ठाकरे भाजपा से 30 साल पुराना रिश्ता तोड़ने को तैयार हैं। 

क्या कांग्रेस और एन.सी.पी. के साथ गठबन्धन की सरकार शिवसेना के लिये हाराकीरी तो साबित नहीं होगी? सारी उम्र बाल ठाकरे हिन्दुत्व और मराठी मानुस की लड़ाई लड़ते आए औऱ अचानक शिवसेना कांग्रेस की गोद में जा बैठे जिसे मुस्लिम वोट की ठेकेदार के रूप में देखा जाता है। तो ज़ाहिर है कि शिवसैनिक भी पूरी तरह से कन्फ़्यूज़्ड डॉट कॉम बनते दिखाई दे रहे हैं। 

शिवसैनिक हमेशा कांग्रेस को अपना दुश्मन नंबर वन कहते आए हैं। अचानक उनके आक़ा आदेश देते हैं कि आज से भाजपा हमारी दुश्मन नंबर वन है और हम नटखट बालक बन कर कांग्रेस और एन.सी.पी. की गोद में बैठेंगे। 

यह एक बेमेल विवाह है। इसके अधिक चलने की कोई उम्मीद नहीं है। महाभारत में एक शकुनी मामा थे जिन्होंने दुर्योधन को उल्टी पट्टी पढ़ाई और कौरव वंश का नाश करवा दिया। एक ऐसा ही शकुनी शिवसेना के पास भी है – संजय राऊत। लगता है जैसे उसने सुपारी ले ली है कि शिवसेना को नेस्तोनाबूद किये बिना चैन से नहीं बैठूंगा। 

उद्धव ठाकरे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि महाराष्ट्र में भाजपा के साथ रिश्ता तोड़ने से और कहां कहां उसका असर पड़ने वाला है – लोकसभा, राज्यसभा और मुंबई महानगरपालिका में इस तोड़फोड़ की गूंज सुनाई देगी। 

शिवसेना के पास बस दो ही विकल्प हैं। पहला विकल्प यह है कि सॉरी कह कर भाजपा के साथ सरकार बना ले या फिर तैयार रहे कि किसी भी दिन कांग्रेस उसके पैरों तले से ज़मीन खिसका देगी।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

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