Saturday, July 27, 2024
होमफीचरजयंती रंगनाथन के सद्यःप्रकाशित उपन्यास 'मैमराजी : बजाएगी पैपराजी का बैंड' का...

जयंती रंगनाथन के सद्यःप्रकाशित उपन्यास ‘मैमराजी : बजाएगी पैपराजी का बैंड’ का अंश

साल 2010, महीना अक्टूबर। भिलाई में हर साल की तरह दुर्गापूजा की तैयारियाँ ज़ोरों-से हो रही थीं। पंडाल तैयार हो रहे थे। शहर के कैंप एरिया में मेले के स्टाल लग गए। बीचोबीच मौत का कुआँ, एक तरफ़ ज्वॉइंट व्हील, मेरी गो राउंड। खाने-पीने के स्टॉलों के अलावा, कपड़े, खिलौने, घर के सामान, अल्लम-गल्लम और खेल के तमाम इंतज़ामात थे। मेले के ही पास ग्राउंड में हर साल इसी समय सरकस भी लगता था। भिलाई में जैसे त्यौहारों की बहार आ जाती। रोज़ शाम को मेले और सरकस में भीड़ जुटती। साथ में लगे दुर्गापूजा के पंडाल में पूरी रात गाने-बजाने का कार्यक्रम होता।
उस साल भिलाई में झंडेलाल ट्रेनी इंजीनियर लगा था। लंबा, कुछ ज़्यादा ही सींकिया, चपटा सिर, पतली मूँछें और लंबे हाथों वाला झंडे हमेशा बेक़रार रहता था।
सुबह वह घर में अपने पापा से झगड़कर आया था। पापा से ज़बरदस्त कहा-सुनी हो गई थी। दरअसल, पापा उसे इतवार को लड़की दिखाने ले जा रहे थे। झंडे ने एकदम से मना कर दिया। पापा ने झंडे पर बड़ा दाँव लगाया था। बेटे को डोनेशन देकर इंजीनियर बनवाया। झंडे ने लड़की देखने से मना कर दिया। पापा नाराज़ हो गए। सामने रखा झाड़ू उस पर दे मारा। झंडे भभक गया। बिना नहाए, बिना खाए-पिए अपना लूना उठाकर ऑफ़िस निकल लिया।
ठीक नेहरू नगर के पास कैंप के सामने उसकी लूना पंक्चर हो गई। सामने पूजा के टेंट लग रहे थे। मेला के स्टॉल्स लग रहे थे। सरकस का तंबू कसा जा रहा था। झंडे लूना से उतरकर यह नायाब नज़ारा देखने लगा। बचपन से ये सरकस, मेला, गाना-बजाना उसे बहुत अच्छा लगता था। अचानक उसे अपने सामने कुछ लोग दौड़ते नज़र आए। झंडे की तरफ़ वे दौड़ते आ रहे थे और उसे भी भागने का इशारा करते हुए आगे निकल रहे थे। इससे पहले कि झंडे कुछ समझता उसके सामने सरकस का शेर गुर्राता हुआ खड़ा था। झंडे की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
झंडे की समझ नहीं आया क्या करे। उसने वही किया, जो उसे आता था। वो खड़ा-खड़ा थर-थर काँपने लगा। शेर उसके चारों तरफ़ चक्कर लगाकर वहीं दहाड़ता हुआ नीचे बैठ गया। कुछ ही देर में सरकस का ट्रेनर वहाँ आ गया। उसने पालतू कुत्ते की तरह उस भीमकाय शेर को पुचकारा। उसे लॉलीपाप नुमा कुछ खाने को दिया। शेर पूँछ हिलाते हुए उसके पीछे-पीछे सरकस की तरफ़ चला गया।
इस बीच किसी ने शेर के साथ झंडे की फ़ोटो खींच ली। किसने? किसी को नहीं पता।
झंडे कुछ देर डरने के बाद किसी तरह अपनी लूना ठीक कराकर ऑफ़िस पहुँचा। रौनी उन दिनों स्टील मेल्टिंग शॉप का नया-नया बॉस बना था। उसे शुरू से झंडे से दिक़्क़त थी। वह उसे बात-बात पर डोनेशन कॉलेज कहता, उसकी पर्सनैलिटी पर वार करता, उसके सींकियापन का मज़ाक़ उड़ाता।
उस दिन शुरू से सब गड़बड़ था। रौनी उसे देर से आया देखकर भभक गया। उसने सबके सामने झंडे को ख़ूब डाँट-डपट दिया। झंडे सिर झुकाकर बैठा रहा, और चुपचाप सुनता रहा।
लंच के बाद ट्रेनीज़ को प्लांट विज़िट करने जाना था। झंडे को प्लांट के काम में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी। वह हमेशा एक कोना पकड़कर बैठ जाता। शाम को रौनी के कमरे में सब ट्रेनी जमा थे और अपने दिनभर का अनुभव बता रहे थे। अगले हफ़्ते से सबको अलग-अलग विभागों में जाना था। सबने स्टील मेल्टिंग शॉप को अपने-अपने ढंग से बताया। जब झंडे की बारी आई, तो उसने बकना शुरू किया, “स्टील के कारखानों में स्टील को पिघलाकर उससे…”
रौनी अपनी जगह पर खड़ा हो गया, उसने ग़ुस्से से झंडे की तरफ़ डस्टर मारते हुए कहा, “हे डोनेशन कॉलेज, मैंने तुमसे स्टील मेल्टिंग शॉप पर निबंध लिखने को नहीं कहा बेवक़ूफ़। ये बताओ, वहाँ क्या होता है?”
“वही तो बता रहा हूँ सर…” झंडे हकलाने लगा।
रौनी हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। जब झंडे के मुँह से झाग-सा निकलने लगा तो रौनी उसके पास आ गया। अपने हाथ से उसकी झुकी टोढ़ी ऊपर की और ध्यान से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, “मिस्टर झंडे, क्या तुमको ऐसा लगता है कि इस शक्ल और अक्ल पर कोई तुमको अपना लड़की दे देगा?”
झंडे चौंक गया।
रौनी की आवाज़ में तुर्शी आ गई, “तुम्हारा पापा ने मॉर्निंग में हमको कॉल किया था। पूछो, पूछो किसलिए? रायपुर का कोई बड़ा अमीर फ़ैमिली में इस घोंचू का रिश्ता का बात चल रहा है। वो बोला कि लड़की का फ़ादर को मैं इसका बारे में अच्छा-अच्छा रिपोर्ट दूँ। क्या बोलेगा मैं उनको? उनका लड़का होशियार है, प्लांट में बड़ा अफ़सर बनेगा! जोकर है ये तो जोकर।”
झंडे एकदम से टेंशन में आ गया। दिनभर से पका हुआ बैठा था। पहले पापा, फिर शेर। पापा से वो भिड़ नहीं सकता। शेर से भिड़ने से कोई फ़ायदा नहीं। सामने खड़ा था रौनी।
उसने आव देखा न ताव, आगे बढ़कर रौनी के सिर पर एक  भारी घूँसा जमा दिया।
शशांक और विरल हँसते-हँसते दोहरे हो गए। भाई एकदम चुप बैठा था। देर तक उन दोनों को हँसने दिया। फिर धीरे से बोला, “बात वहाँ ख़त्म नहीं हुई। अगले दिन सुबह अख़बार में हमारी शेर के साथ फ़ोटो छप गई। शेर दहाड़ रहा था और हम उसके सामने घिघिया रहे थे। पापा ने तस्वीर देखी और हमें पेशी के लिए बुलाया। पता नहीं उस दिन कौन-सी माता चढ़ आई थी अंदर, जैसे एक दिन पहले मैंने बॉस के सिर पर घूँसा मारा था, दूसरे दिन बाप पर चढ़ दौड़ा। मैंने उनके सामने पड़ी मेज़ खींचकर दीवार पर दे मारी और मारे ग़ुस्से के अनाप-शनाप बोलने लगा। हाँ, यह तो बोल ही दिया कि शादी नहीं करनी। इसके बाद लूना उठाकर मैं सीधे मेरी फ़ोटो खींचने वाले पत्रकार के घर गया। उसकी बीवी के सामने उसे जो लप्पड़ लगाए, जो लप्पड़ लगाए… बस उस दिन के बाद आज का दिन है, भिलाई के हम सबसे बड़े लूज़र बन गए।”
“जय हो भाई!” विरल ने जाकर भाई का मुँह ही चूम लिया।
“हमने एक ठो और काम किया… हम सरकस गए। ठसके से शेर के ट्रेनर को बोलकर पिंजड़े में घुस गए। शेर की आँखों में आँख डालकर ज़ोर-से चिल्लाए– भक्क चूतिए!”
“ऐसा क्यों? शेर से पंगा लेने के पीछे कौन-सा तर्क है भाई?” शशांक हिल गया।
“तुम नहीं समझोगे। तुम लोग बड़े शहर का नौजवान लोग हो। तुम लोगों के डीएनए में कॉन्फ़िडेंस लबालब भरा है। हम छोटे शहर का यूथ सब बहुत जल्दी लो फ़ील करने लगता है। हमको ऐसा लगा कि वो स्साला शेर हमको एकदम चूतिया बनाकर निकल गया। हम उस पत्रकार बाबू को धकियाकर आए तो लगा कि नहीं, अभी हम खत्तम नहीं हुए। बस ठान लिया कि या तो हम या वो शेर।”
विरल भावुक हो गया। वह फिर से भाई को चूमने के लिए आगे बढ़ आया। भाई ने उसे डाँट दिया, “ऐ बे विरलवा। ये सब हरकत न जनाना आइटम के लिए रखो। हम पर इतना ही प्यार आ रहा है तो फ़्रिज के अंदर झाँको और दारू का कोई बूँद-शूँद पड़ा है तो लेकर आओ।”
रात रंगीन से संगीन हुई जा रही थी। उन तीनों की आँखों में नींद का नाम-ओ-निशान नहीं था। लगभग सुबह होने को थी। शशांक ने घड़ी की तरफ़ निगाह डाली, “अरे, आधे घंटे में स्टेशन के लिए निकलना है।”
शशांक सुबह सुंदरी को स्टेशन छोड़कर वहीं से ऑफ़िस के लिए निकल गया।
सुबह की मीटिंग के बाद वह रौनी के कमरे से बाहर निकलने लगा। अचानक रौनी ने पीछे से उसे आवाज़ दी, “हे फ़नी मैन, एक बात बताओ। तुमने शो में वो लड़कियों वाला कपड़ा क्यों पहना था?”
शशांक चौंक गया, “सर… वो तो एक आइडिया था। आपको बताया था न, दिल्ली से डायरेक्टर आई थी। उसने कहा था।  आपको अच्छा नहीं लगा?”
रौनी अजीब ढंग से सिर हिलाते हुए बोला, “तुम लोग नया जनरेशन का यूथ है। हमको समझ नहीं आता… जाने दो। लीव इट।”
हमेशा शशांक के साथ हँसने और ठिठोली करने वाला रौनी पूरा दिन ख़ामोश रहा। दिनभर न शशांक के पास झुमकी का फ़ोन आया न स्वीटी का।
शाम को ऑफ़िस ख़त्म होने के बाद शशांक की समझ में नहीं आया, इतनी जल्दी घर जाकर क्या करे। पिछले कुछ दिनों से रोज़ क्लब जाने की आदत हो गई थी। सुंदरी भी चली गई। ऑफ़िस गेट के सामने शशांक खड़े होकर विरल का इंतज़ार करने लगा। इस बीच उसने देखा, ऑफ़िस से बाहर निकलने वाले जाने-पहचाने चेहरे भी उससे कुछ कन्नी काटते हुए पास से निकल रहे थे।
विरल ऑफ़िस से बाहर निकला। शशांक लपककर उसके पास पहुँचा, “यार, तू इतनी जल्दी घर जाकर क्या करेगा? चल मेरे घर चल। गप्पें मारते हैं।”
विरल ने उसे घूरकर देखा, “ब्रो, तेरी रेपुटेशन चूल्हे में चली गई है। तुझे पता है न?”
“किसलिए बे? वो मैंने शो में स्कर्ट पहना था इसलिए?”
विरल की आवाज़ तेज़ थी, “तू क्या रात को लड़कियों वाला नाइट गाउन पहनकर सोता है?”
“क्या बक रहा है बे?”
“मैं नहीं, भिलाई बक रहा है…”
“विरल, ठीक से बता… कौन बोल रहा है ये?”
“वो ही, जिसने तुझे देखा होगा।”
“नाइटी में?”
“तू क्यों चौंक रहा है बे?”
“ब्रो मैं ऐसा क्यों करूँगा?”
“मुझे कैसे पता यार?”
शशांक झल्ला गया, “तुझे कैसे पता चला?”
विरल धीरे-से बोला, “पूरे भिलाई को पता है। सारे व्हॉट्सएप ग्रुप में तेरी स्कर्ट वाली फ़ोटो घूम रही है।”
“क्या?”
शशांक सन्न रह गया। नाइटी? लड़कियों वाली? ये नया नाटक कहाँ से शुरू हुआ?
“विरल, कुछ तो गड़बड़ है। मेरे बारे में ऐसी गंदी बात कौन फैला रहा है?”
विरल चुप हो गया। अचानक उसने कहा, “तूने स्वीटी भाभी के सामने कुछ कहा था? तू कभी उनके सामने…”
“आर यू क्रेज़ी? मैं पागल हूँ क्या? स्वीटी के सामने मैं…” कहते-कहते शशांक को कुछ याद आ गया। परसों रात स्वीटी उसके घर के बाथरूम में बंद थी। बाथरूम में सुंदरी की नाइटी टँगी हुई थी।
इस समय शशांक ग़ुस्से से भभका हुआ था। भाई और विरल उसे शांत करने की कोशिश कर रहे थे। शशांक को विरल ही घेर-घारकर भाई के घर लेकर आया था।
शशांक फट पड़ा, “ये तो हद हो गई। मैं पुलिस में कंप्लेन करने जा रहा हूँ।”
भाई एकदम शांत था, “जा ना। किसे हूल दे रहा है बे? जा, ज़रूर जा। पर वहाँ जाकर क्या बोलेगा? बोल न, बोल, बोल…”
शशांक चुप हो गया। कुछ देर बाद उसने भर्राई आवाज़ में कहा, “भाई, आप बताइए मैं क्या करूँ? चुप रहूँ? सब जो सोच रहे हैं सोचने दूँ?”
“देख ब्रो। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि दूसरे तेरे बारे में क्या सोच रहे हैं? तू अपने बारे में क्या सोचता है, हाँ इससे फ़र्क़ पड़ता है। जब मुझे लगा कि मेरी इज़्ज़त चली गई, तो मैं सीधे सरकस में शेर के पिंजड़े में घुस गया था।”
“आप यह कहते हैं कि मैं भी शेर के पिंजड़े में मुँह देने चला जाऊँ?”
“तेरे शेर को हराना आसान नहीं है।”
“क्यों? क्या ये जो भाभियाँ मेरी इज़्ज़त के पीछे पड़ गई हैं, मैं इन्हें सबक नहीं सिखा सकता?”
“पहले तो यह समझ ले बबुवा कि ये कोई तेरी दुश्मन नहीं हैं। ये औरतें भोलेपन में दूसरे के घर के अंदर घुसी चली आती हैं। इन्हें लगता है कि वो ऐसा करके समाज की भलाई कर रही हैं। जैसे उन्हें लग रहा है कि ये जो बंदा गे है, उसके चक्कर से भिलाई की लड़कियों को बचाना होगा।”
शशांक सकपका गया, “पर मेरी इज़्ज़त तो गई न?”
अचानक विरल बीच में कूदा, “भाई, तुझे इसका बदला ज़रूर लेना चाहिए। मैं तुझे चैलेंज करता हूँ। तू हमारा हीरो है। तू हमारे शहर का रनवीर सिंह है। तू चुप बैठ जाएगा तो कल को यहाँ आने वाले नए ट्रेनी तुझे कभी माफ़ नहीं करेंगे। तू कुणाल नहीं है। तू कुछ कर भाई।”
“तू चाहता क्या है ब्रो?”
“तू न स्वीटी भाभी को नक्शे में उतार।”
“मतलब!” शशांक चौंका।
“स्वीटी भाभी अपने को बड़ा तोप समझती हैं। तेरी इतनी बदनामी कर दीं। सबके फटे में टाँग अड़ाती हैं, तू उनका फटा ढूँढ और अपनी टाँग…”
भाई ने बीच में टोक दिया, “विरल इज़ राइट। तू अपने घर जा और स्वीटी भाभी से जाकर मिल। उनसे मीठी-मीठी बातें कर।”
“उसके बाद?”
“उसके बाद… क्या यार शशांक, यह भी हमें बताना पड़ेगा चूतिए! कुछ ऐसा कर कि भिलाई की हिस्ट्री में तेरा नाम अमर हो जाए। जा बच्चा जा, जंग जीत के आ।”
(जयंती रंगनाथन के नए उपन्यास मैमराजी : बजाएगी पैपराजी का बैंड का एक अंश)
यह उपन्यास हिंदयुग्म से प्रकाशित है और कीमत है 249
जयंती रंगनाथन
जयंती रंगनाथन
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार, संपादक एवं कहानीकार हैं. संपर्क - [email protected]
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest