Thursday, October 24, 2024
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सूर्य कांत शर्मा की कलम से – मिडिल क्लास का शो-गुल्लक सीज़न फोर

भारत में अब मिडिल क्लास को भी समझा जा रहा है, हाल के चुनावों के बाद, मिडिल क्लास की चर्चा ने कुछ रंग बटोरे। साथ ही सोनी लिव पर, सात जून से, स्ट्रीम हुआ है, मिडिल क्लास को शोकेस करता हुआ पांच एपिसोड का शो ‘गुल्लक’।
ओटीटी चैनल पर चार सीज़न  वाला, फिलहाल यह संभवतः पहला शो है। यानी पंचायत सीज़न  तीन का बड़ा भाई। ओटीटी का एक फ़ायदा यह है कि, मारुति कार की भांति, अच्छे कलाकर्मी अपना टैलेंट दिखा कर, दर्शकों के नज़दीक जाकर, उनके दिलों पर दस्तक दे सकते हैं। डायरेक्टर श्रेयांश पांडेय, जो स्वयं भी पूर्वांचल से आते हैं।
लगता है, उन्होंने अपने बचपन, लड़कपन और युवावस्था के अनुभवों को, पुनः जी कर इन चार सीज़न  का निर्माण किया है। सीज़न  चार में, स्टार कास्ट तो वही है- ज़मील खान  यानी संतोष मिश्रा, गीतांजलि कुलकर्णी यानी शांति मिश्रा, वैभव राज गुप्ता यानी आनंद मिश्र और अमन मिश्रा के रोल में हैं हर्ष मयार।
इस शो की जान हैं, बिट्टू की मम्मी, यानी लोकप्रिय अदाकारा, सुनीता राजवार;जो पहले की तरह कुछ कुछ सूत्रधार, व्यंग्य की फुहार सी या फिर चुटीली और सजीली सी कलाकार के रूप में हैं। गीतांजलि कुलकर्णी ने चेहरे-मोहरे और अभिनय से, पूर्वांचल की महिला को बेहद संजीदा और जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। इस कलाकार से भविष्य में और बेहतर अभिनय की उम्मीद रहेगी।
वैभव गुप्ता, मिडिल क्लास के बड़े बेटे और एम.आर. यानी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की भूमिका में बहुत ही नेचुरल लगे हैं और मेडिकल की दुनिया का असली चेहरा दिखाने में सजग भूमिका निभाते लगे हैं। हर्ष मयार एक तरुण यानी एडल्ट होते किरदार में खूब जमें हैं। वस्तुतः भारत का मिडिल क्लास बड़े-बड़े मेट्रो, शहरों के अलावा टियर एक और दो के साथ-साथ गाँवों और कस्बों में रहता है। यह गुल्लक सभी के अनुभवों, आकांक्षाओं, सपनों और सादगी से भरी दुनिया को स्क्रीन पर साझा करता है। मिडिल क्लास को हीरो के रूप में दिखाना, एक बड़े दर्शक वर्ग को यह पुख़्ता अहसास दिलाना है कि, वह भी हीरो बन सकता है।
पाँच एपिसोड की सीरीज में कहानी या सही अर्थों में स्क्रीन प्ले, बहुत ही चुटीला, हँसी-व्यंग्य से भरपूर बन पड़ा है। यूँ भी विज्ञान की कहावत है कि, नैनो पार्टिकल यानी सूक्ष्म-कण ही सुन्दर है। वही बात इस शो के कंटेंट को लेकर कही जा सकती है। निर्देशन को भी पूरे अंक मिलते हैं; क्योंकि हिंदी हार्टलैंड को समग्र ढंग से प्रस्तुत किया है यथा पूर्वांचल का सटीक अंदाज़, चुटीलेपन और गुदगुदाहट से भरपूर है। भोपाल में इसकी शूटिंग की गई है और वह भी मात्र तीस दिन में।
आज का युवा सब कुछ तुरत-फुरत और संक्षिप्त चाहता है। इस डिजिटल और ग्लोबल होते भारत की पसंद को, डायरेक्टर श्रेयांश पाण्डेय ने खूब पकड़ा है। शो के आख़िरी एपिसोड में, सभी चार एपिसोड का अर्क यानी सार और भविष्य का ट्रेलर भी दर्शाया है। 
एक और बात जो, शो को ख़ास बनाती है; वह है स्क्रीन टाइमिंग। सभी कलाकारों को कमोबेश सही समय मिला है, सिवाय आख़िरी एपिसोड के। भावी हीरोइन हेली शाह, पदार्पण करती कलाकार हैं, जो हो सकता है, आने वाले सीज़न  में, मिडिल क्लास की रूमानियत और परंपरा को दर्शाते हुए छा जायें।
सीज़न  चार, पेरेंटिंग और एडल्टहुड को फ़ोकस करता है, जो कि वर्तमान समय की ज्वलंत समस्या है। आज का तरुण, वस्तुतः इंटरनेट से लबरेज़ संस्कृति से दो चार होता ही होता है। तब शिक्षक, शिक्षा संस्थान, माता-पिता या अभिभावक की भूमिका एक समझदार दोस्त की होनी चाहिए; ना कि  नैतिक पुलिस की। इसी संदेश को बड़ी ही ख़ूबसूरती और प्राकृतिक अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है।
सीरियल का अंत काफी रोचक और व्यवहारिक होने के साथ-साथ भावनाप्रधान भी है। अमन मिश्रा के, पिता से चांटा खाकर, घर छोड़ कर भाग जाना, सुनीता राजवार का घर के सदस्यों को बताना, वैभव गुप्ता, यानी आनंद मिश्रा, बड़े भाई का अपने मातापिता को बताना तथा अमन मिश्रा को घर ले आना और… और सर्द रात में माता-पिता का घर के बाहर इंतज़ार करते हुए संवाद कि, “हम औसत मां बाप हैं”, बाद में छोटे बेटे का माफ़ी माँगना और फिर दोनों बेटों का मिश्रा दंपति को उपहार में प्राप्त गोवा के टूर पैकेज पर भेजना; एक सुखांत है। यह भारतीय परंपरा को आगे  बढ़ाते हुए, दर्शकों को, एक सकारात्मक और इतिवृत्तात्मकत मोड़ पर लाकर समाप्त होता है।
कुल मिलकर चिलचिलाती गर्मी में घर में राहत पहुँचाता, यह नया सीज़न, आने वाले सीज़न  की भूमिका पर ख़त्म होता है।

 

सूर्य कांत शर्मा 
समीक्षक एवं स्तंभकार
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1 टिप्पणी

  1. इसका नाम तो सुना है लेकिन अभी देखा नहीं। पंचायत के दो सीजन तो हमने देख लिए ,अभी तीसरा देखना है।
    लेकिन आपको पढ़ने के बाद लगा कि गुल्लक भी पंचायत की तरह अच्छा ही होगा ।
    शुक्रिया आपका।

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