‘संसार से भागे फिरते हो भगवान को क्या तुम पाओगे’ आज जब वैश्वीकरण और डिजिटल युग में हमने दुनिया मुट्ठी में कर ली है, पल भर में हम विश्व का कोना-कोना झाँक आतें हैं, लेकिन क्या कारण है कि जन्म-मरण, आत्मा-परमात्मा के रहस्य को आज भी नहीं समझ पाये। “मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै। जैसे जहाज का पंछी पुनि जहाज पर आवै।” यानी जीव संसार रुपी समुद्र में कितना ही भटक ले समुद्र के जहाज के अतिरिक्त कोई अन्य स्थान पर आश्रय नहीं है। ऐसा सूरदास ने कहा था फिल्म  ‘हू एम आई’ का नायक भवितव्य सूरदास सरीखे इन्हीं रहस्यों की खोज में भटकता दिखाई देता है। 
‘जग दर्शन का मेला… उड़ जायेगा हंस अकेला’ दर्शन खोजना है तो इसी जग में मिलेगा। इसी फलसफे को अंत में नायिका अदिति उसे समझाती है। फ़िल्मकार शिरीष खेमरिया ने दर्शनशास्त्र जैसे गूढ़ विषय को कथा में पिरोने का दुः साहस किया है। भवितव्य जीवन-मृत्यु, आत्मा-परमात्मा, साकार-निराकार आदि की संकल्पनाओं को लेकर द्वंद्व में है इसलिए दर्शनशास्त्र में दाखिला लेता है। इन अनगिनत प्रश्नों के समानांतर एक प्रेम कथा भी इस फिल्म में है, उसकी मित्र अदिति बिंदास और स्पष्टवादी लड़की है वह जीवन से जुड़े प्रश्नों के सहज उत्तर देती है लेकिन जब नायक अपने प्रोफेसर और गुरु के उत्तरों से ही संतुष्ट नहीं तो फिर अदिति तो एक लड़की है।
फिल्म अशोक जमनानी के उपन्यास ‘को अहम्’ पर आधारित है। ‘हू एम आई’ यानी मैं कौन हूँ. ..? कि खोज इस फिल्म में बहती नर्मदा के साथ-साथ चलती है। आरम्भ में सदानंद नामक एक साधु बहुत ही बेचैन अवस्था में नदी में उतरता है लेकिन उसका नाम सदानंद यानी सदा आनंद में रहने वाला नहीं है। वह तो भवितव्य है अर्थात् ‘जो भविष्य में अवश्यंभावी होगा’ लेकिन होगा क्या? इसके विषय में किसी को नहीं मालूम। गुरु कहता है कि ‘पीड़ा का आनंद लो यही एक दिन तुम्हारा मार्ग बनेगी’। जीवन पीड़ा है इसके अलावा कोई दूसरा मार्ग नहीं। पीड़ा कैसे जाएगी? मन और बुद्धि के सुखों को त्याग सको तभी सच्चा सुख प्राप्त होगा… लेकिन जब यह तीनों नहीं होंगे तो सुख की प्राप्ति कैसे होगी? आत्मा से ! तो क्या हमें अपना जीवन त्यागना होगा ? यानी मृत्यु…!”  इन गहन प्रश्नों से फिल्म का आरम्भ होता है। 
 
प्रोफेसर की मृत्यु भवितव्य को और भी विचलित कर देती है, अब कौन उसे मार्ग दिखायेगा…? कौन उसके प्रश्नों के उत्तर देगा…? और वह अनंत यात्रा पर निकल पड़ता है। 
पूरी फिल्म जिन प्रश्नों को साथ लेकर चलती है उसके उत्तर इसी प्रकृति में बिखरे पड़े हैं क्योंकि प्रकृति जीवन है, नदी जीवन है पर्वत, पहाड़, अमरकंटक की खूबसूरती और परिवेश को दृश्यों व कथा से तादात्म्य करके देख सकते हैं। लेकिन जिसे वह गुरु समझ रहा था बाद में वह उसे वापस घर लौट जाने के लिए कहता है। ‘मुझे तुम्हारी आदत होती जा रही थी और यह भी एक प्रकार की बाधा है।’ जब बाबा उसे समझाते हैं कि ‘यात्रा में आगे जाकर पीछे लौटा जा सकता है और उसमें कोई दोष नहीं है लेकिन अतीत की परिक्रमा करके आप उसी में जीना शुरु कर देंगे तो वर्तमान में आना कठिन हो जाता है। और वह अदिति से कहता है ‘मैं वापस लौटना चाहता हूं!… अकेले आए हो या अपने सवालों को साथ लाए हो… ना मैं यह जानता हूं मैं कौन हूं? ना मैं यह जान पाया कि मैं किसे ढूंढ रहा था…?”
फिल्म शिक्षा प्रणाली पर भी कटाक्ष करती है जब प्रोफ़ेसर समझाता है फिलॉसफी बहुत ही सिंपल सब्जेक्ट है। एक गाईड लीजिए, एग्जाम से एक महीना पहले रट्टा मार लीजिए पास हो जाओगे। लेकिन भवितव्य ने सरकारी नौकरी या आईपीएस बनने के लिए दर्शनशास्त्र में दाखिला नहीं लिया उसका प्रोफ़ेसर पूछता है “तुम्हें कुछ नहीं बनना” पर  वह तो अनगिनत प्रश्नों के उत्तर लिए निकला है! लेकिन वर्तमान शिक्षा हमें क्या बना रही है वह  सिर्फ ‘पद’ देती है लेकिन सवाल यह उठता है कि आप एक व्यक्ति मनुष्य के रूप में अपने व्यक्तित्व का विकास कर पातें हैं… ? दूसरी ओर अदिति कहती है मैं कुछ बड़ा नहीं करना चाहती बस कॉलेज के छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाना चाहती हूं क्योंकि “बच्चे बहुत सीधे-साधे होते हैं और आज में जीते हैं। हम बड़े होकर आज में जीना छोड़ देते हैं” जबकि नायक का तो नाम ही भवितव्य है। 
फिल्म के संवाद बहुत सहज हैं। प्रोफेसर और भवितव्य के संवाद हिंग्लिश में है, इल्यूजन, एक्जिस्टेंस, आईडेंटिफाई, नॉलेज, इग्नरेंस, कॉन्शसनेस, इनविजिबल आदि जैसे शब्द, जिनसे आज का युवा आसानी से कनेक्ट हो जाएगा  अन्यथा दर्शनशास्त्र जैसे विषय पर फिल्म बोर हो जाती है। इसलिए उसमें प्रेम कथा को भी पिरोया गया है लेकिन यह प्रेम कथा नायक के मार्गदर्शन और उसकी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उसके प्रश्नों पर जब उनका प्रोफेसर उसे उत्तर देता है तो वह कहता है “आपका आंसर मेरे क्वेश्चन का एक्सटेंशन है माफ कीजिए मैं सेटिस्फाइड नहीं हूं। ” अब उसे लगता है कि उसने दर्शनशास्त्र लेकर क्या गलत कर लिया! क्योंकि सब्जेक्ट में जितना घुसता जा रहा उलझता जा रहा है। जबकि अदिति एक सुलझी हुई लड़की है। उसे नर्मदा में बने हुए भँवर को देखना अच्छा लगता है कि इतनी बड़ी प्रवाह में साधारण सा भँवर अपनी जगह बनाए हुए हैं और साधारण होना आसान बात है क्या!   
फिल्म सामाजिक रूढ़ियों को भी तोड़ती है। किन्हीं कशमकश की स्थितियों में नायिका के साथ उसका संबंध बनता है और अगले दिन सुबह वो कहता हैं कि “मुझसे गलती हो गई , मैं तुमसे शादी कर सकता हूं… नायिका कहती है ‘तो क्या इसे तुम गलती मान कर प्रायश्चित कर रहे हो…? अगर ऐसा ही है तो मैं शादी नहीं करूंगी क्योंकि शादी के लिए प्यार चाहिए प्रायश्चित नहीं।’ यहां प्रेम के महत्व को तो दर्शाया ही हैअपने अस्तित्व के प्रति चेतन होती स्त्री के भी दर्शन हो जाते हैं जबकि अदिति और भवितव्य की शादी नहीं हुई लेकिन उसके मां-बाप गर्भवती अदिति को अपने घर ले आए। 
एक और महत्वपूर्ण तथ्य है; ‘भवितव्य’ अर्थात् अवश्यंभावी। मृत्यु भी अवश्यंभावी तो क्यों न जीवन को समझा जाए! उसके विविध पक्षों का आनंद लिया जाए और अदिति हिन्दू पौराणिक कथाओं में अनंत की पहचान और आकाशीय देवताओं के समूह की माँ है। अंत में अदिति ही उसे अनंत की पहचान करवाती है। ‘तुमने अपने जीवन को सवालों की तरह देखा! प्रश्न भी खुद में जवाब है, जब तुम इसे जवाब मानोगे तो सारे सवाल खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगे और यही जीवन की वास्तविकता है। ‘ तुम तो दर्शन की भाषा बोलने लगी… कहां से सीखा…? इसे सीखना नहीं पड़ता बस चलना होता है, उस रास्ते जो जीवन का रास्ता है अपने जीवन का, अपनों के जीवन का।
तुम अपने अंदर जिसे ढूंढ रहे हो ना, वह तो अनंत है! क्या तुम मेरी गुरु बनोगी? जबकि गुरु जो पुल्लिंग है लेकिन पद का कोई जेंडर नहीं होता इसे भी हमें मान लेना चाहिए। अदिति कहती है ‘लगता है अनंत जाग गया’ अनंत उनका बेटा। हर जिज्ञासा, हर प्रश्न का उत्तर जीवन में ही है और सभी उत्तर उन्हीं प्रश्नों का विस्तार होता है और इस तरह से यह यात्रा कभी समाप्त नहीं होती। बाबा उसको बार-बार समझाते हैं।‘ हर प्रश्न का उत्तर ढूंढना अनिवार्य नहीं है!’ 
हालाँकि मेरी एक जिज्ञासा यह भी है कि आत्म खोज की अनंत की यात्रा में हमेशा पुरुष ही क्यों भटकता है,क्या कभी स्त्रियाँ आत्मखोज के लिए घर से निकल पाएगी? फिर भी फ़िल्म उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है जो जीवन से भाग कर मृत्यु की शरण ले लेते है यहाँ नायक तमाम संघर्षों के बाद वापस जीवन की ओर लौटता है जो एक सुखद अंत है और नर्मदा उसके प्रति आस्था जीवन के प्रति आस्था ही है । 
फिल्म में अभिनय सभी कलाकारों का अच्छा रहा है। कैमरे से दृश्य अच्छे उकेरे गए हैं तो साथ ही गीत-संगीत आपको बांधे रखने में कामयाब रहता है। 
रेटिंग 3 .5 स्टार    
सहायक आचार्य हिंदी विभाग कालिंदी महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय संपर्क - rakshageeta14@gmail.com

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.