मैं उस हरकारे के बच्चों को भी उसी
समय से देख रहा था
जिस समय से मैं उस बरगद
के पेड़ को देखा करता था
पेड़ के आसपास और भी लत्तरें थींं l
पेड़ की फुनगियों के बीच से
कई कोंपलें फूटीं और
पेड़ की कोपलों ने धीरे – धीरे
धीरे बड़ा होना शुरू किया l
हरकारे के चार बच्चे थें l
हरकारे के बच्चे जमींदारों
के यहाँ काम करते थें
मैं देख रहा था पेड़ को और
उसके साथ खिले कोंपलों
को बढ़ते l
हरकारे के बच्चों और
पेड़ को मैंने इंच-इंच बढ़ते
देखा ..
इस बीच पेड़ के आसपास
का समय भी बीतता रहा l
कोंपलें भी धीरे-धीरे लत्तरों में बदलीं
फिर लतरें तना बन गईं..!
और, पेड़ के आस-पास खड़े
हो गये वो
पेड़ के रक्षार्थ..!
साथ-साथ जन्मी और भी कोंपलें
पहले लत्तर बनीं फिर तना
और फिर हरकारे के बच्चों की तरह
वो भी फैल गईं
अनंत दिशाओं में ..!
लत्तरों, ने बारिश झेला, धूप भी
लत्तरें, ठिठुरती रहीं ठंड में
तब भी साथ – साथ थीं l
सुख – दु:ख साथ – साथ महसूसा !
लत्तरों ने वसंत देखा पतझड़ भी !
बड़े होने के बाद हरकारे के बच्चों
ने कभी नहीं पूछा अपने सगे भाइयों
से उनका हाल !
भाईयों ने फिर कभी आँगन
में साथ बैठकर घूप या गर्मी पर
बात नहीं की ..
समय बीतता रहा
ऋतुएँ, बदलती रहीं
लेकिन, हरकारे के लड़के दु:ख भी अकेले
पी गये ..दु:ख भी नहीं बाँटा किसी से ..!
सालों से कभी साथ बैठकर
किसी समस्या का सामाधान
वो खोज नहीं पाये l
फिर, साथ बैठकर कभी नहीं देख पाये
भोर होने के बाद ओस में नहाई हुई फसल !
या सुबह की कोई उजास ..
पता नहीं कितने साल बीत गये l
जब गाँव में काम मिलना बँद हो गया
फिर, वो कहीं कमाने चले गये
दिल्ली या पंजाब ..
बूढ़ा हरकारा जब मरा तो दाह संस्कार
भी गाँव के लोगों ने किया !
हरकारे के लड़कों ने फिर कभी
पलटकर नहीं देखा गाँव !
हरकारे की मौत से दु:खी होकर
बूढ़ा होता मकान भी एक दिन
ढह कर गिर गया l
लेकिन, तब भी हरकारे के लड़के
नहीं लौटे .. !
लेकिन , बूढ़े पेड़ की हिफाजत में
आज भी खड़े थे युवा पेड़..!
पेड़ अब अपनी दहलीज की
झिलंगी खाट पर
पड़ा रहता l
बूढ़ा, पेड़ चिलम भरकर
पिता .. शेखी बघारता गाँव में
कि उसकी डयोढ़ी ..बहुत मजबूत है..!
और कि, वो युवा पेड़ों की हिफाजत में है ..!
तब से आदमी भी पेड़ होना चाहता है !
सुंदर अभिव्यक्ति