Saturday, October 12, 2024
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संपादकीय – भारतीय पत्रकारों एवं साहित्यकारों पर शुल्क की मार

ज़ाहिर सी बात है कि यह स्थिति भारत और ब्रिटेन के व्यापारिक एवं आर्थिक रिश्तों के लिये अच्छी नहीं है। एक तो पूरा विश्व कोरोना के बाद के हालात से जूझ रहा है। उस पर यूक्रेन और रूस के युद्ध के कारण पूरा विश्व मंदी के दौर से गुज़र रहा है। भारतीय रुपया और ब्रिटिश पाउंड दोनों ही अमरीकी डॉलर के सामने लड़खड़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

भारत सरकार ने ब्रिटेन से आयात की जाने वाली स्कॉच व्हिस्की पर 15% अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। मज़ाक के तौर पर दिल्ली और मुंबई में कहा जाता है कि जितनी ब्लैक लेबल व्हिस्की स्कॉटलैण्ड में बनती नहीं है, उससे अधिक तो दिल्ली और मुंबई में बह जाती है! 
भारत के तमाम पत्रकारों एवं साहित्यकारों पर यह किसी वज्रपात से कम नहीं है। मेरे बहुत से ऐसे मित्र हैं जिनकी शाम श्री जॉनी वॉकर के साथ ही बीतती है… वो चाहे लाल कपड़ों में हों या फिर काले कपड़ों में। कम से कम कुछ दिन तो देश के हर प्रेस क्लब में बातचीत का विषय यही रहेगा। 
अपने एक प्रिय मित्र से जब फ़ोन पर बात की तो उसने बहुत साफ़गोई का इस्तेमाल किया, “भाई साहब, मैं तो स्कॉच तभी पीता हूं जब कोई दूसरा पिलाए। घर में तो ब्लेण्डर्स प्राइड से ही काम चलता है। इसलिये सानूं की फ़रक पैंदा है!” यानी कि पीने वालों पर ही नहीं पिलाने वालों पर भी गाज गिर ही रही है।
ज़ाहिर है कि पुरवाई के पाठक सोच रहे होंगे कि क्या हमारे संपादक आज कहीं बहक तो नहीं गये। ये क्या स्कॉच राग गाना शुरू कर दिया है। कहीं दो पैग मार तो नहीं लिए! बात कुछ यूं है कि मैं आज आपके साथ कुछ अंदर की बातें साझा करने जा रहा हूं जो कि ब्रिटेन और भारत के आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर प्रकाश डालेंगी। 
ख़बर कुछ ऐसी आई है कि भारत ने ब्रिटेन से आयातित व्हिस्की, चीज और डीजल इंजन कल-पुर्जों समेत 22 उत्पादों पर 15 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया है। 
अब सवाल यह उठता है कि यह सारा मामला क्या है। दरअसल ब्रिटेन ने भारत से आयात किए जाने वाले स्टील उत्पादों पर अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाने का इकतरफ़ा निर्णय लिया। इसमें शामिल हैं टिन मिल उत्पाद, गैर-मिश्र धातु और अन्य मिश्र धातु क्वार्टो प्लेट्स, मर्चेंट बार और लाइट सेक्शन (दो श्रेणियों में बांटा गया) –  a (अलॉय मर्चेंट बार और लाइट सेक्शन में विभाजित), और b (नॉन-अलॉय मर्चेंट बार और लाइट सेक्शन), गैर-मिश्र धातु और अन्य मिश्र धातु के तार की छड़, लोहे या गैर-मिश्र धातु इस्पात के कोण, आकार और खंड।
Tin mill product; Non-alloy and other alloy quarto plates; Merchant bars and light sections (split into categories ‘a’ (Alloy merchant bars and light sections), and ‘b’ (non-alloy merchant bars and light sections); Non-alloy and other alloy wire rod; Angles, shapes, and sections of iron or non-alloy steel.
भारत ने ब्रिटेन सरकार के पास इस दुर्भाग्यपूर्ण कदम पर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई। साथ ही साथ भारत ने विश्व व्यापार संघ (WTO) के पास भी गुहार लगाई। मगर उसे कहीं से कोई भी हल नहीं मिल पाया। भारत ने डब्ल्यू.टी.ओ. में कहा, हमारा अनुमान है कि ब्रिटेन के इस कदम से भारत के निर्यात में 219 हजार टन की गिरावट आई है, जिस पर शुल्क संग्रह 24.77 करोड़ डॉलर होगा।
भारत ने ब्रिटेन को भी समझाने का प्रयत्न किया कि यह सीधा-सीधा विश्व व्यापार संगठन के समझौतों का उलंघन है। इसी कारण भारत ने ब्रिटेन से मुआवज़े की मांग भी की। ब्रिटेन ने मुआवज़े की मांग को पूरी तरह से ठुकराते हुए कुछ दूसरे कदम उठाने के लिये बातचीत की पेशकश की। 
जवाब में भारत सरकार ने ब्रिटेन से आयातित व्हिस्की, चीज़ और डीजल इंजन कल-पुर्जों समेत 22 उत्पादों पर 15 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया है। 
जिन उत्पादों पर अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाया गया है, उसमें प्रोसेस्ड चीज, स्कॉच, मिश्रित व्हिस्की, जिन, पशु चारा, तरलीकृत प्रोपेन, कुछ आवश्यक तेल, कॉस्मेटिक, चांदी, प्लैटिनम, टर्बो जेट, डीज़ल इंजन के कलपुर्ज़े आदि शामिल हैं।
भारत सरकार द्वारा जारी सूचना में कहा गया है, रियायतों और अन्य दायित्वों का निलंबन तब तक लागू रहेगा जब तक ब्रिटेन रक्षोपाय उपायों को नहीं हटा लेता।
इसमें कहा गया है, भारत यह स्पष्ट करना चाहता है कि रियायतों का निलंबन ब्रिटेन के उपायों से प्रभावित व्यापार की मात्रा के बराबर होगा।
ज़ाहिर सी बात है कि यह स्थिति भारत और ब्रिटेन के व्यापारिक एवं आर्थिक रिश्तों के लिये अच्छी नहीं है। एक तो पूरा विश्व कोरोना के बाद के हालात से जूझ रहा है। उस पर यूक्रेन और रूस के युद्ध के कारण पूरा विश्व मंदी के दौर से गुज़र रहा है। भारतीय रुपया और ब्रिटिश पाउंड दोनों ही अमरीकी डॉलर के सामने लड़खड़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
एक अंतर है… भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में हैं और वैश्विक स्तर पर अपनी एवं भारत की छवि को सुदृड़ करने में लगे हैं जबकि दूसरी ओर लिज़ ट्रस को प्रधानमंत्री बने तीन सप्ताह ही हुए हैं और अपने पहले ही मिनी-बजट के बाद उसकी पार्टी लेबर से 33 प्रतिशत वोटों से पिछड़ रही है। 
कंज़रवेटिव पार्टी में ऋषि सुनक को वापिस बुलाने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। क्या लिज़ ट्रस जैसी नई प्रधानमंत्री भारत के साथ इस समस्या का हल ढूंढने में सक्षम हो पाएंगी? अपने आप में यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
भारत के समाचार पत्र भी इस विषय में कुछ ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं जैसा कि कानफाड़ू टीवी मीडिया करता है। क्या ग़ज़ब की हेडलाइन लगा रखी हैं – भारत का ब्रिटेन को करारा जवाब!” भारत का ब्रिटेन पर जवाबी शुल्क!” “अंग्रेज़ों को भारत सरकार का करारा जवाब!” हमारे पत्रकारों को भारत के विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर से सीखना होगा कि बिना आवाज़ ऊंची किये या शोर मचाए सख़्त से सख़्त बात कैसे कही जा सकती है। 
मुझे पूरा विश्वास है कि दिल्ली के प्रेस क्लब में मेरे दो मित्र शाम के समय बैठ कर अपनी चारों ओर निगाह डाल के देख रहे होंगे… कोई स्कॉच पी रहा है, कोई जिन तो कोई मिश्रित व्हिस्की… सब को बढ़े हुए दाम चुभ रहे होंगे… और मेरे मित्र एक घूंट से गला तर कर के कह रहे होंगे, “यार ये बच्चन जी फ़िज़ूल में ही कह गये – बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला – यहां तो मधुशाला की मधु मेल की जगह खेल कर गई है !
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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20 टिप्पणी

  1. मधु और मधुशाला पर लिखे संपादकीय को पढ़ कर भोरे मधुमय हो गयी l संपादकीय पढ़ते-पढ़ते मुझे विश्वास है कि पुरवाई पाठकों का समान्य ज्ञान बढ़ जाएगा l क्योंकि संपादकीय विविध क्षेत्रों की गहरी जानकारी देते हैं l
    यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मंदी का दौर शुरू होने के बाद से, लगता है यूरोपीयन देशों की मति मारी गयी है l राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही क्षेत्रों में आत्मघाती निर्णय ले रहे हैं l फलतः इन देशों की स्थिति बुरी हो रही है l ब्रिटेन तो शायद आज भी भारत को सन 47 से पहले वाला देश समझता है l भारत अब असली और नकली गाँधियों की मनमोहन नपुंसकता से मुक्त हो कर एक सशक्त राष्ट्र बन गया है l इसे सभी विकसित देशों को स्वीकार कर लेना चाहिए l मदिरा के दामों से तो बहुत फर्क़ नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत में अभी भी अन्य देशों की तुलना में अल्कोहल उपभोग काफ़ी कम है l लेकिन अन्य आवश्यक वस्तुओं के बढ़े दाम घाव में खुजली पैदा करेंगे l आशा है ब्रिटेन अपनी नीतियों पर विचार करने को विवश होगा l

  2. विषय गौरतलब है। सच में बहुत से लोग इसे थोड़ा अजीब विषय मान रहे होंगे, भले ही शाम उनकी भी इसी चर्चा में गुजरी हो। बहरहाल आपके इस सटीक संपादकीय में एक बात बहुत खास कही आपने, कि मीडिया के पत्रकारों को ‘एस जयशंकर जी’ से सीखने की बहुत जरूरत है।
    हार्दिक बधाई के साथ सर।

  3. अत्युत्तम सम्पादकीय।कितनी ही खबरें जो सरसरी निगाहों से गुज़री होती हैं, उनके बारे में आप तथ्य सहित जानकारी प्रस्तुत कर देते हैं और वास्तविकता से रूबरू करा देते हैं। कहने को तो प्रत्यक्ष युद्ध एक चल रहा है परंतु व्यापारिक, व्यावसायिक, मीडिया और राजनयिक जैसे अनेक स्तरों के युद्धों से दुनिया ग्रस्त है।

  4. वाह, वाह ,वाह !मेरे लिए, व्यापार जैसे शुष्क विषय को आपने इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है कि मेरी व्यापार के विषय में भी रुचि और जानकारी हो गई । आप बधाई के पात्र हैं इतनी संवेदनशील और महत्वपूर्ण बात को इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए। पत्रकारों के लिए तो आपने काम और आराम दोनों पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिए।

  5. In a lighthearted tone you have subjected the raised taxation for imported goods in India (like alcoholic beverages) on the part of UK to harsh criticism.
    Very skillfully.
    Regards
    Deepak Sharma

  6. बहुत सुन्दर और सटीक,, सीधा ही वार करती हुई संपादकीय , सही है भारत ने जवाब में ही ऐसा किया है जो उचित भी है इससे भारत की विश्व स्तर पर सुदृढ़ और देश के प्रति सरकार की सकारात्मक प्रतिबद्धता दिखाईं दे रही है। पहले भारतीयों पर हमले और अब ये अन्य शुल्क … ब्रिटेन अब पहले वाला ब्रिटेन नहीं है और न ही भारत पुरानी स्थिति में है । आंख से आंख मिलाकर बात हो रही है किन्तु इस मुद्दे को बहुत ऊंची उड़ान का पत्रकारों का दावा वास्तव में उचित नहीं लगता , अभी तो बहुत उड़ाने बाकी भारत की … बढ़ते कदमों के साथ भाषा का संयम अनिवार्य है वो भी जब सबकी नजरें आप पर ही टिकी हुई हो । वैसे एक बात तो है शराब और साहित्यकार क्या गज़ब कॉम्बिनेशन है ये। कभी कभी लगता है क्या तथाकथित उच्च साहित्य शराब की ही देन तो नहीं ।

    • विजयलक्ष्मी जी, आपकी ख़ूबसूरत टिप्पणी ने संपादकीय के महत्व को रेखांकित कर दिया है

  7. सम्पादकीय ‘मादक’आर्थिक विश्लेषण हो गई है। भारत और ब्रिटेन का मौसम बदल गया, लगता है ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  8. चीर्ज़! शराब की ख़ूबसूरती ये है- के कठिन पलोंको सुगम कर देती है- बाद में जो हो हो! शायद Liz Truss सरकार ने मिनी बजट कुछ ऐसे ही आलम में पेश किया है— ख़ैर अब जो है है- चीर्ज़!

  9. वाह, वाह, वाह !व्यापार और आर्थिक विमर्श के साथ पत्रकारों की शाम और काम दोनों पर टिप्पणी!!
    आनंद आगया।
    साधुवाद

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