कभी किसी परेशानी में,
कुछ सवालों के जवाब ढूंढते,
अतीत के आईने पर जब,
स्मृतियों की धुंध-सी छाती है,
तो माँ बहुत याद आती है।
किसी अलसाए रविवार को,
जनवरी की खिली धूप में,
हाथों की खुश्की को देख,
ला गरम तेल तेरी चंपी कर दूं
ये आवाज कानों में गुंजाती है,
तो माँ बहुत याद आती है।
किसी सुनसान सड़क पर,
देर रात कार चलाते हुए,
घड़ी में समय को देखकर,
कहाँ है तू ? इतना लेट हो गया ?
चिंता में डूबी आवाज किसी,
शून्य से जब आती है
तो माँ बहुत याद आती है।
ज़िदगी की भागदौड़ में,
कभी हारते, कभी जीतते,
सब कुछ में कुछ भी नहीं,
ये समझ मन मस्तिष्क में छाती है
तब सुकून की तलाश में,
माँ की गोद याद आ जाती है,
तो माँ बहुत याद आती है।
(युवा कवि, हरियाणा आकाशवाणी हिसार में कार्यरत। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविताएं प्रकाशित।)
आनंद शर्मा
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गली न 3
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माँ भूलती ही कब है आनंद जी। पर वह जाती भी कहाँ है? हमारे तन मन संस्कार, संस्कृति, परिवेश, स्मृतियों सब मे समाहित रोज ही तो हमारे साथ होती है।
बहुत सुन्दर।