Saturday, July 27, 2024
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अनीता रवि की कविता – मैं पांचाली नहीं

नहीं अब मैं तुम्‍हें अपना वध
नहीं करने दूँगी,
हर बार तुमने गमकती
हंसी की नदी को छुआ, सराहा,
और फिर मुठ्ठियों में बांधना चाहा।
पर विद्रोही नदी कैसे बंधती
तुम्‍हारी मुठ्ठियों में,
वह तो हर आने वाले को
देती है शीतल तृप्ति, नेह के स्‍पर्श।
और फिर तुम तो सागर भी नहीं थे।
खीझ से तुमने थूक दी,
अपनी हर अपाहिज पराजय
और नपुंसक विवशता मेरे माथे पर ।
हर बार, अपनी हर सभा में तुमने
मेरा वध करना चाहा,
और हर बार मैं होती रही हूँ
अपमानित, उपहासित।
पर कहीं बची रही है मेरी अस्मिता |
और अब तुम
बावजूद अपनी हर कोशिश के,
नहीं कर पाओगे मेरी अस्मिता का चीरहरण।
और न ही तुममें से कोई,
अर्जुन की तरह मुझे मिल-बाँट
कर भोगने का आश्‍वासन किसी
कुंती को दे पाओगे।
क्‍योंकि अब मैं सतर्क हूँ,
और पहले से ज्‍़यादा समझदार।
सहायतार्थ किसी पार्थ को नहीं पुकारूँगी।
मैं अपने में सबल हूँ, अपनी अस्मिता सहित।
अब तुम मेरा वध नहीं कर सकते,
क्‍योंकि मैं पांचाली नहीं
अब मैं तुम्‍हें अपना वध
नहीं करने दूँगी । 
अनिता रवि
अनिता रवि
संपर्क - [email protected] मोबाइल - +91 93222 58374
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1 टिप्पणी

  1. अनीता रवि की कविता नदियों को बचाने की सिफारिश करती अच्छी रचना है।

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