Saturday, July 27, 2024
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डॉ. ममता पंत की कविता – हिजाब : दंभ पितृसत्ता का!

वो करते हैं बात हिजाब की
पहले हिसाब तो कीजिए जनाब
उन आंखों का
जिनकी कुदृष्टि ने
लील ली कइयों की अस्मत
धकेल दिया जहन्नुम में
विवश कर दिया जीने को
ज़लालत भरा जीवन
जिसे उनकी रूह
ठेलती है नित
बोझ की भांति
अपनी पीठ पर !
हथियार पितृसत्ता का
जिसका इस्तेमाल
होता रहा सदियों से
स्त्रियों के खिलाफ
जकड़ दिया गया
बेड़ियों में जिन्हें
सहलाती ही रही
प्रेम समझ उन्हें
रिश्तों की पहल में
तुम रहे अग्रणी नित
किंतु वे
अग्रणी रहीं
निभाने हेतु आशनाई
फिर भी
एक वैराग्य
श्मशान सा
घेरे रहा नित उसे
जिसे न देख पाई
आंखें तुम्हारी
या देखने ही न दिया
दंभ ने तुम्हारे
पितृसत्ता का दंभ!
एक चट्टान सदृश
स्तंभ बना रहा
गिरा ही नहीं कभी
जिसे तोड़ वे
होना चाहती थीं आजाद
उड़ना चाहती थीं
अपने हिस्से के आसमान पर
फैलाना चाहती थीं
अपने पंखों को
जो नामंजूर रहा तुम्हें हरदम
तुम्हारा दोगलापन
समझ आता है सब
बात तो करते रहे
उनकी आजादी की
लेकिन
मनुवादी ढांचे की शर्त पर ही!
डॉ. ममता पंत
डॉ. ममता पंत
डॉ. ममता पंत असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा पुस्तकें - आधा दर्जन के करीब पुस्तकें प्रकाशित व प्रकाशनाधीन. सम्मान - राष्ट्रभाषा सेवा रत्न पुरस्कार 2021-22; Daughter of Uttarakhand Award 2021-22. ईमेल - [email protected] मोबाइल - 9897593253
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