पतझड़ होने के कारण समस्त प्रकृति बिन वस्त्रों की प्रतीत हो रही थी, मानो किसी ने उन पुराने आवरणों को नोंचकर अलग कर दिया हो. इन सूखे वृक्षों पर फड़फड़ाते पंछियों के आशियाने भी बिन छत समान घर हो गए थे. अब उनके आपस में लाड़ लड़ाने के दृश्य भी सार्वजनिक हो चले थे. प्रकृति की यह क्रिया अनवरत ही चलती रहती, किंतु दीवान साहब की सबसे बड़ी बेटी शोभा का जीवन तो जैसे ठहर ही गया था, ना कोई उमंग ना कोई तरंग. बस यूॅं ही जिंदगी के इस विशाल पहाड़ को वक्त की कुल्हाड़ी से काटती जा रही थी .शोभा तीन बहनें थी और एक भाई, जिसमें दो छोटी बहनें प्रिया और अनु बड़ी ही चंचल और हॅंसमुख थीं. भाई दूसरे नंबर का था, जिसका नाम व्योम था. प्रिया और अनु ग्रेजुएशन के दूसरे वर्ष की परीक्षाओं की तैयारी में संलग्न थीं और भाई दीवान साहब का जमा जमाया कारोबार संभालता था. दीवान साहब के कई ईटों के भट्टे थे. रुपए पैसे की कोई कमी नहीं थी, बड़ी ही शान शौकत से जिंदगी गुजर बसर हो रही थी. चिंता थी तो बस एक बड़ी बेटी शोभा के ब्याह की.
शोभा स्कूल में अध्यापिका थी. उसी में अपने समय का सदुपयोग करती थी. शोभा अपनी बहनों की तुलना में हट्टी कट्टी और लंबी चौड़ी थी. चेहरा भी कुछ भारी था और जवां उम्र में मुहांसों के कारण चेहरे पर गड्ढे से पड़ गए थे, मानो उन गड्ढों में शोभा का दुख समाया हो. ना तो वह गड्ढे भरने का नाम लेते थे और ना शोभा के दुःख, खत्म होने का.किंतु उस जैसी ज्ञानी, गुणवान, परिश्रमी और धैर्यवान महिला चिराग ढूंढने से नहीं मिलेगी. घर की बड़ी बेटी का विवाह सबसे पहले हो, ऐसा अरमान हर माॅं-बाप का होता है या यूॅं कहें परंपरागत यही नियम है,किंतु विधाता को कुछ और ही मंजूर था. न जाने कितने लड़के देखने आए और मुॅंह पर ही मना कर गए कि इतनी मोटी लड़की से हम ब्याह नहीं कर सकते, हमें बहू चाहिए अम्मा नहीं.
अजनबियों की ये बातें शोभा के दिल में नश्तर की भांति चुभती थीं और उनकी पीर आंखों के कोरों से बहकर आए दिन उसके तकिए को गीला करती रहती. वह कभी भी अपना दुख माॅं- बाप के सामने बयां नहीं करती थी. खुद अकेले ही उस विष के प्याले को गटका करती थी.उसके साथ की काफी सहेलियों का ब्याह भी होता चला गया. यह देख बिरादरी वाले हर पल शोभा की माॅं को ही कहते – बहन जी लड़की का ब्याह कब करेंगी? पीछे और भी बच्चे हैं. इन बातों से शोभा के पिताजी बड़े ही आहत होते, न जाने मेरी इस बच्ची के भाग्य में क्या लिखा है और अगले ही पल खुद को सांत्वना देते हुए कहते- ईश्वर के लिखे को कोई बदल भी नहीं सकता, परंतु ऊपर वाला कभी मेरा बुरा नहीं कर सकता, ऐसा मेरा भरोसा है. इन बातों को उलट-पुलट कर सोच, शोभा के पिताजी खुद को तो बहला लेते, परंतु शोभा का क्या…. पड़ोसियों की बातों ने शोभा को झकझोर कर रख दिया कि मेरे कारण मेरे भाई -बहनों के भविष्य पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए. शोभा ने दीवान साहब के समक्ष भाई व्योम की शादी का प्रस्ताव रखा कि हमें अब घर में बहू ले आनी चाहिए ,मैं नहीं चाहती कि मेरी काली किस्मत का साया इन छोटे भाई -बहनों के जीवन में अंधेरा कर दे. दीवान साहब बड़ा मुश्किल से यह कदम उठाने को राजी हुए. कुछ ही दिनों में नीरा, व्योम की अर्धांगिनी बनकर घर में आ गई, मुरझाए हुए सभी के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई और शोभा की माॅं का हाथ बंटाने में दो हाथों की और वृद्धि हो गई.
घर में खुशी का माहौल रहने लगा और नीरा सबकी प्यारी भाभी बन गई .वह भी अपनी तीनों नंदों को बड़ा लाड़ करती थी. सभी बहनों की तरह मिलजुल कर रहतीं. फिर पुनः कुछ दिन बाद एक लड़के वाले शोभा को देखने आए, शोभा को यूॅं रोज-रोज सजना संवरना कतई पसंद नहीं था, कहती मैं क्या कोई सजावट का सामान हूॅं, जो जब भी घर में मेहमान आएं तो मुझे झाड़ – पोंछकर उनके समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाता है, मानो यहाॅं कोई बाजार लगा हो, जिसे पसंद आए, वह ले जाए. इन बातों से कोफ्त झलकती थी.
फिर वही ढाक के तीन पात ,लड़के वाले मुॅंह बिचकाकर चाय नाश्ता उड़ाकर चल दिए ,बोले -लड़की को आपने वेटलिफ्टिंग में क्यों नहीं भेजा, वहाॅं खूब नाम रोशन करती. अब लड़के वालों से कोई सलाह तो नहीं मांगी थी, ऐसे व्यंगात्मक वाण छोड़ने का क्या मतलब..?
इन जली- कटी बातों का शोभा के मस्तिष्क में पहाड़ सा बनता जा रहा था, उसे विवाह नाम की चिड़िया से नफरत हो चुकी थी, वह हर पल उस पहाड़ की चोटी पर अपने पर फड़फड़ाती रहती थी. शोभा की ही जिद पर दीवान साहब ने प्रिया का रिश्ता अच्छे खानदान में तय कर दिया और जल्द ही विवाह भी कर दिया.
प्रिया की शादी में भी दबे मुॅंह रिश्तेदारों में कानाफूसी चलती रहती कि बताइए बड़ी बेटी घर में बैठी है कैसा माॅं-बाप का कलेजा रहता होगा. शोभा की नजर ना चाहते हुए भी ऐसे मांस नोचने वाले गिद्धों की ओर जाकर टिक ही जाती थी. उनकी इन बातों से वह कभी-कभी अपराध बोध से घिर जाती थी ,उसे लगता कि क्या सिर्फ विवाह ही लड़की के जीवन की एक मात्र मंजिल है?
क्या बिना विवाह रहना कोई सामाजिक जुर्म है ?
क्या वह बोझ है किसी पर….?
अब इस बोझ शब्द की बात चली है तो फिर बोझ तो नारी ससुराल में भी पति पर मानी जाती है , खिलाते हैं, पिलाते हैं और खूॅंटे से बाॅंध कर रखते हैं . वह अपनी मर्जी से कहीं भी ना जा सकने वाली बस गाय बनकर रह जाती है, किंतु कैसी विडंबना है कि सभी को यह कैद रूपी मायाजाल खूबसूरत और लुभावना लगता है और हर कोई इसमें फॅंसता ही जाता है. प्रिया की विदाई शोभा को अखरती है ,सारा दिन साथ में रहने वाली तीन बहनों में से एक नए जीवन में प्रवेश करती है ,कुछ महीने यूॅं ही बीत जाते हैं. फिर अनु को अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के से इश्क का रोग लग जाता है, उसका यूॅं उन गुलाबी लम्हों को गुजारना, सदा उनमें डूबे रहना…. कहीं ना कहीं शोभा को भीतर ही भीतर कचोटता है, उसके दिल में दबी चिंगारी ऐसे वातावरण में यदा-कदा हवा पाकर सुलग उठती थी.
दीवान साहब की एक न चली और अनु ने ऋषि से प्रेम विवाह रचा लिया. अनु को इस शादी को लेकर घरवालों की नाराजगी झेलनी पड़ी. इस बात से दीवान साहब के दिल को गहरा आघात लगा और हार्ट अटैक पड़ गया. तमाम चिकित्सा कराने के बावजूद भी वह इस दुनिया से चल बसे. अब सारे परिवार की जिम्मेदारी व्योम के कंधों पर आ पड़ी. उसके मन में भी अपनी बड़ी बहन का विवाह ना हो पाने की टीस रहती थी, वह अनेक प्रयास करता रहता था, किंतु कामयाबी कोसों दूर……, ऐसे में माॅं ही थी, जो व्योम को ढांढस बंधाती रहती थी.
कुछ ही महीनों में अनु का ऋषि से तलाक हो जाता है ,क्योंकि वह उसे घर में सिर्फ नौकरानी की हैसियत से रखता था और उसके ऊपर से प्रेमिका नाम का भूत उतर चुका था. अब व्योम के सामने पुनः दो बहनों के भविष्य की बागडोर आ गई .अनेक अखबारों में भी व्योम ने इश्तहार दिए, अपने कई दोस्तों से भी सिफारिश की कि कोई अच्छा वर शोभा के लिए मिल जाए .अपने भाई को यूॅं परेशान देखकर शोभा से यह दुःख देखा नहीं जाता था. शोभा ने हालांकि स्वयं को पूरी तरह सिलाई ,कढ़ाई ,बुनाई और अध्यापन में व्यस्त कर रखा था. एक दिन अचानक व्योम के जिगरी दोस्त राकेश का फोन आता है कि मेरे घर मेरे मौसेरे जीजाजी आए हुए हैं, मेरी जीजी का हाल ही में देहांत हो चुका है .साथ में मौसी और मौसाजी भी हैं. तुम कहो तो शोभा जीजी के लिए बात चलाई जा सकती है. दूजिया आदमी को ब्याहने में व्योम को दस बार सोचना पड़ा, किंतु अपनी माॅं से सलाह कर उसने बात चलाने को हाॅं कर दी. वे लोग तुरंत निकलने ही वाले थे कि तभी व्योम उन्हें राकेश के घर मिलने जा पहुंचा .उन्होंने लड़की देखने की इच्छा जताई. पर व्योम ने एक शर्त रख दी कि यदि आपको लड़की पसंद ना आए तो आप मुॅंह पर यह कहकर मना नहीं करेंगे कि मेरी बहन मोटी है. इन तानों ने उसे भीतर तक छलनी कर दिया है. राकेश ने ऊपरी तौर पर शोभा का संक्षिप्त परिचय दिया.
मिस्टर रतन देखने में दर्मियाना कद, थोड़ा भारी शरीर और गेहुआ रंग के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे. वे पेशे से एक वकील थे और साथ में होम्योपैथिक की भी अच्छी जानकारी रखते थे. उन्होंने बातों -बातों में बताया कि घर में छोटी सी होम्योपैथिक डिस्पेंसरी बना रखी है. बातों का सिलसिला चलता रहा. इतने में शोभा चाय की ट्रे लेकर ड्राइंग रूम में दाखिल होती है, वह हर बार की तरह सजती संवरती है, परंतु आज उसके ऊपर रौनक मेहरबान है, उसने बड़ी ही साधारण सी मांड लगी धोती को करीने से चिकन की काली ब्लाउज के साथ पहन रखा है .एक मोती की माला और होठों पर हल्की सी लाली. जिसमें वह जच रही है, जैसे आज वह अंतर्मन से आश्वस्त है कि उसका दाना- पानी अब इस घर से उठने वाला है .औपचारिक बातें होती रहीं. फिर कुछ देर बाद शोभा की माॅं ने ही कहा- अगर आप इजाजत दें, तो मिस्टर रतन और शोभा आपस में कुछ बातें कर लें. ड्राइंग रूम का माहौल कुछ शांत सा पड़ गया. तभी दोनों को बातचीत के लिए बगीचे में भेजा गया.
मिस्टर रतन और शोभा पहले तो संकोचवश काफी देर चुप रहते हैं ,फिर दोनों एक साथ ही मुखरित हो उठते हैं…. फिर पहले आप…. पहले आप….. का सिलसिला चल उठता है. मिस्टर रतन कहते हैं लेडीज़ फर्स्ट…..
शोभा – आप इस उम्र में दूसरा विवाह क्यों कर रहे हैं ?जबकि आपके पास एक जवान बेटा और बेटी है.
मि. रतन – मेरी बूढ़ी माॅं भी हैं, उनकी देखरेख भी जरूरी है और फिर मैं ठहरा पेशेवर आदमी, दिनभर मशक्कत करके जब घर आओ, तो कोई तो हो जो मेरा भी ख्याल रख सके .वैसे आप बताएं आपने अब तक विवाह क्यों नहीं किया?
शोभा – क्या आप मुझे देखने के बाद भी ऐसा प्रश्न कर सकते हैं?
मिस्टर रतन- क्या दुनिया में बाहरी सुंदरता ही सब कुछ है, आंतरिक सौंदर्य का कोई मोल नहीं. पता नहीं कैसे-कैसे लोग इस दुनिया को अपनी शून्य उपस्थिति से भरते रहते हैं, जिन्हें जीवन के मौलिक सिद्धांतों से कोई सरोकार नहीं.
शोभा- मुझे आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई.
मिस्टर रतन- क्या मैं आपको पसंद हूं ?
शोभा- मेरी पसंद नापसंद का तो सवाल ही नहीं उठता.
बस जरूरी है कि मैं आपको पसंद हूॅं या नहीं…?
मिस्टर रतन -देखिए शोभा जी !दूसरा विवाह है यह मेरा .
गर आपकी कुछ ख्वाहिशें, कुछ अरमान हो तो आप मुझसे बेझिझक साझा कर सकती हैं.
शोभा- (शोभा लजाते हुए गर्दन झुका कर बैठी रहती है) .
मिस्टर रतन- इसका मतलब मैं यह समझूं कि मैं आपको पसंद हूं .
शोभा -( शर्माकर मुस्कुराती हुई आंखें झुका लेती है )
मिस्टर रतन- शोभा जी एक बात मैं अभी साफ- साफ कहना चाहता हूॅं कि मैं आगे और कोई बच्चा नहीं चाहता .यदि आप मेरी इस शर्त पर राजी हों, तो आप मुझे पसंद हैं .मेरा घर भी आप जैसी सुगढ़, गुणी महिला की छाॅंव में भली-भांति पल्लवित होगा.
शोभा – जी मुझे आपकी शर्त मंजूर है, यदि आप यह बात ना भी कहते तो भी ……
माफ कीजिएगा मैं जानना चाहती हूं कि आपकी पत्नी को क्या हुआ था?
मिस्टर रतन- जी उनका लीवर एनलार्ज होने लगा था, तो काफी दिनों तक बीमार रहीं और फिर…..
शोभा -i m very sorry .
इतने में घर के सभी लोग इस खबर को जानकर खुशी से फूले नहीं समाते और पंद्रह दिन बाद ब्याह की तारीख निश्चित कर दी जाती है .पर बड़ी ही हैरत की बात सिर्फ चंद घंटों की जान पहचान से रिश्ता पक्का हो जाता है.
मिस्टर रतन के घर के पाॅंच लोग और दोनों बच्चों के साथ ही यह विवाह भली-भांति संपन्न हो जाता है. ब्याहकर शोभा मिस्टर रतन के घर आ जाती है, बेटी का ब्याह तो पहले ही हो चुका है और बेटा अभी ग्रेजुएशन में पढ़ रहा है. बेटे तनय ने भी नई माॅं को खूब सम्मान दिया क्योंकि उसके भीतर सदा से ही नारियों के सम्मान के बीज बोए गए. शोभा हमेशा तनय की पसंद- नापसंद का ख्याल रखती और रोज ही नये-नये व्यंजन बनाती, क्योंकि उसे कुकिंग का शौक भी था. फिर नए लोग, नया माहौल सामंजस्य बैठाने के लिए प्रयास तो करने ही थे. मिस्टर रतन की सास भी शोभा को बिल्कुल अपनी बेटी की तरह लाड़- प्यार करतीं.
उसको यहां देखकर वह अपनी बेटी का दुख भूल जातीं और ऐसा कहकर खुद को आश्वस्त करतीं कि ईश्वर ने पहले ही सब का दाना पानी निश्चित कर रखा है, किसको कब, कहाॅं और कितना मिलेगा…. हम मनुष्य तो उसकी बनाई कठपुतली मात्र हैं. वे खूब पढ़ी लिखी थीं. साथ ही भूगोल का विशेष ज्ञान रखती थीं. थोड़े-थोड़े दिनों के अंतराल पर वो शोभा के पास रहने आ जातीं क्योंकि शोभा ससुराल से दूर अलग शहर में रहती थी , दोनों में खूब घुटती. शोभा भी उन्हें पाकर बहुत खुश थी और खुशनसीब भी, जो दो माॅंओं का स्नेह मिल रहा था. उसके जेहन में बस एक ही बात पैठ जमाती कि मैं हर रिश्ते को यहाॅं बखूबी निभाऊॅं और किसी को कोई शिकायत का मौका ना मिले. शोभा जब भी अपने ससुराल जाती, वहाॅं भी सबका दिल जीत लेती. क्या बड़े क्या छोटे हर किसी के साथ घुलने -मिलने की कला वह बखूबी जानती थी. सभी में बड़ी होने के कारण वहाॅं सभी लोग भाभी जी कहकर उसका खूब सम्मान करते और हर बात में उसकी राय ली जाती. यह सब पाकर शोभा भरे- पूरे घर का अमूल्य हिस्सा बन चुकी थी. प्रेमचंद्र की कहानी “बड़े घर की बेटी “की नायिका की भांति ही उसने वहाॅं सबका दिल जीत लिया .शोभा अपने नए मायके भी खूब आती जाती .भाभी नीना खूब लाड़ चाव करती और सब तरह की बातें करती.
देखते-देखते चंद दिनों में शोभा और नीना एक दूसरे के बहुत करीब आ गईं. शोभा हर छोटी बड़ी बात भाभी नीना से जरूर साझा करती. एक दिन मौका पाकर नीना ने शोभा से जिज्ञासावश पूछ ही लिया ,कि दीदी इतने कम समय में आपकी माॅं और घरवालों ने इस रिश्ते के लिए सिर्फ एक ही दिन में हाॅं कैसे कर दी…वो भी बिना जांच पड़ताल, यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि पहली पत्नी की मृत्यु किस प्रकार हुई. कोई भी लड़की वाला यह जानने का हक तो रखता ही है. यह सुनकर शोभा पहले तो कुछ क्षण मौन की आगोश में समा जाती है….
फिर एकाएक जागृत होकर कहती है- भाभी मेरी माॅं ने लाख टके की एक बात कही, कभी भी कोई लड़की वाला अपने ही दामाद के लिए दूसरी लड़की देखने नहीं आएगा ,जब तक कि उसकी बेटी को कोई दुख पहुॅंचाया ना गया हो , वह प्राकृतिक मौत मरी हो .यह बहुत बड़ा सकारात्मक बिंदु था कि आप लोग मिस्टर रतन के साथ मुझे देखने आए ,यह बात सिद्ध करती है कि मिसेज रतन अपनी गृहस्थी में सदा सुखी रही होंगी, तभी आप लोगों ने मिस्टर रतन का साथ दूसरा विवाह कराने में अपनी जिम्मेदारी समझकर दिया .अन्यथा कोई लड़की वाला कभी नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी की जगह कोई दूसरा आ कर ले ले. नीना की सारी शंका दूर हो गई और दोनों एक दूसरे से लिपट गई . पास ही बरामदे मे लगा हरसिंगार का पौधा और भी ज्यादा महकने लगा और सारे सुवासित फूल मानो खुशी में शरीक होने के लिए तत्परता से झड़ने लगे.