‘दादा लखमी’बहु चर्चित बहु प्रतीक्षित हरियाणवी फिल्म इस साल 8 नवंबर 2022 को  सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। रिलीज़ से पहले ही 60 के करीब नेशनल, इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में कई अवार्ड्स अपने नाम कर चुकी यह फिल्म इस साल दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के लिए भी बेस्ट हरियाणवी फिल्म चुनी गई थी।
बता दें कि फिल्म फेस्टिवल्स के अपने सफर के दौरान दादा लखमी पहली ऐसी ऐतिहासिक हरियाणवी फिल्म बन गई है जो प्रतिष्ठित कांस फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा रह चुकी है। आज तक की हरियाणा फिल्म इंडस्ट्री में कांस में प्रदर्शित होने वाली यह पहली फिल्म सबसे पहले रिलीज भी हरियाणा में ही की जाएगी।
इस फिल्म को 8 नवंबर यानी मंगलवार के दिन हरियाणा राज्य के कई शहरों में प्रदर्शित किया जाएगा उसके बाद यह देश के कई बड़े शहरों में रिलीज की जाएगी। फिल्म ie निर्देशक ‘यशपाल शर्मा’ ने फिल्म रिलीज को लेकर ‘बॉलीवुड लोचा’ टीम से बताया कि –
“8 नवंबर को फिल्म रिलीज की जाएगी। फिलहाल हरियाणा में कुछ जगहों पर यह रिलीज़ होगी 15, 20 स्क्रीन पर इसके साथ ही दिल्ली में एक शो लगेगा। अभी तक तो रिलीज को लेकर यही प्लान है और अगर पॉसिबल हुआ 3 दिन का रिस्पांस देखेंगे फिर शायद एक शो जयपुर में और एक शो गाजियाबाद में , बागपत में और जो कुछ उसके इलाके हैं मुजफ्फरनगर में  लगाने की कोशिश करेंगे। बाकी देखते हैं अभी क्या होता है?
क्योंकि बहुत बड़ी समस्या यह है कि कैसे प्रमोशन करें? कहाँ-कहाँ करें। इतने समय से बन रही थी फिर फेस्टिवल्स में भी दिखाई गई। काफी लोगों को पता तो है ही लेकिन फिर भी कुछ लोग हैं जो वंचित हैं। तो इसके बारे में कहाँ कैसे बताएं लोगों को। गांवों की जनता दादा लखमी को जानती है ज्यादा। तो छोटे गांवों में कैसे दिखाई जाए। हरियाणा के मुख्यमंत्री से भी इस बारे में बात की है, वे भी देख रहे हैं फिल्म। दिवाली के बाद ही इलेक्शन भी है। इतने सारे नेशनल, इंटरनेशनल अवार्ड्स भी मिल चुके हैं नेशनल अवार्ड भी मिला है। कांस में दिखाई जाने वाली पहली हरियाणवी फिल्म है। ऑनलाइन 2021 दिखाई गई थी। सब कुछ पॉजिटिव लग रहा है और इस बार लगता है कि क्रांति होगी। सिनेमा में क्रांति, हरियाणवी सिनेमा में क्रांति होगी, भरोसा बनेगा सभी का और गवर्नमेंट का भरोसा भी। बाकी उम्मीद है सबकुछ अच्छा ही हो।
फिल्म के लेखक हरियाणा के चर्चित चेहरे ‘राजू मान’ हैं। जिन्होंने इस फिल्म की कहानी तथा संवाद लिखे हैं। इसके साथ ही फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया है। इसके पहले  वे कई चर्चित हरियाणवी फ़िल्मों के लिए कहानियां लिखने के साथ-साथ उनमें अभिनय करते हुए भी नजर आये हैं। चंद्रावल फिल्म में अभिनय से अपनी अलग पहचान बनाने वाले राजू मान ने फिल्म रिलीज को लेकर बताया कि –
इस फिल्म का जो पिछले 5 साल का वक्फा रहा है उसमें यह एक तरह से एहसास की तरह से रूह में बस गया है। जिस दिन से इस फ़िल्म की शुरूआत हुई है लेखन से उससे जुड़ा रहा। लेखन बहुत ही एहसास की चीज होती है। फिर म्यूजिक रिकॉर्ड हुआ वह भी बहुत इंपॉर्टेंट था। उसके बाद फेस्टिवल जितने हुए उसमें लोगों ने सभी ने खुले दिल से प्रशंसा की फिर चाहे वो विदेशी थे या अपने ही देश के लोग। विदेशी लोगों ने जब इसे देखा तो उन्होंने तो ऑफर भी किया कि अगर यह फ्रेंच में बन सके या जर्मन में बन सके तो बेहतर होगा।
फिल्म को अब तक मिली अपार सफलता एवं प्रशंसा को लेकर उन्होंने बताया कि – अच्छा लगता है कि कुछ पिछले रिकॉर्ड टूट जाएं। कुछ नए कीर्तिमान रखे जाएं और दादा लखमी ने तो रिकॉर्ड क्या रिकॉर्ड प्लेयर ही तोड़ दिया। मुझे नहीं लगता कि कोई भी ऐसी रीजनल फिल्म होगी जिसे 70 के करीब अंतर्देशीय या इंटर नेशनल अवार्ड मिले हों नेशनल अवॉर्ड के साथ। बेहद अच्छी और बहुत कामयाब फिल्म है यह इसमें तो बार-बार क्या ही कहना। लोग खुद ही कह रहे हैं। जहां तक अनुभवों की बात है जितने फेस्टिवल हुए हैं जैसे राजस्थान में पहला फेस्टिवल हुआ इस फिल्म का, उसके बाद तो दिल्ली के हंसराज कॉलेज में काशी फिल्म फेस्टिवल तो यादगार रहा। उसमें हैरानी की बात यह रही कि इस फिल्म के कैप्टन ऑफ द शिप  यशपाल शर्मा जिन्होंने हर डिपार्टमेंट में अपनी हाजिरी दर्ज करवाई है। चाहे लेखन हो, म्युजिक रिकॉर्डिंग हो, प्रोड्यूसर मैं भी योगदान दिया है राजावत के साथ उन्होंने। ये सभी अद्भुत पल थे इस फिल्म को बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला।  जो प्रतिक्रिया थी वह भी बड़े-बड़े, महान लोगों की प्रतिक्रिया थी। ये भी बहुत ही अनएक्सपेक्टेड था। जैसे कुंवर बेचैन थे वे भावुक हो गए थे बोलते-बोलते। बाद में भी उन्होंने करीब 17 मिनट का ऑडियो भेजा और फिल्म के बारे में कहा।
फिल्म के कुछ यादगार पल राजू मान ने साझा करते हुए बताया कि- सुरेंद्र शर्मा जी ने तो कमाल ही कर दिया. स्टेज पर उनकी आंखें नम हो गई थी। उनका कहना था कि मैं पूरी जिंदगी में हंसता हंसाता रहा हूं। मैंने 200-200 करोड़ की फिल्में  देखने की कोशिश की लेकिन  दस पांच मिनट से ज्यादा नहीं झेल पाया उन फिल्मों को। इस फिल्म ने जो रीजनल फिल्म है साथ ही कम बजट की भी उसने मुझे  ढाई घंटे तक हिलने नहीं दिया। हंसते हंसाते जिंदगी गुजरी लेकिन इसने मुझे रुला दिया। फिर जब यशपाल भाई मंच पर आये तब भी साफ नजर आ रहा था उनकी आँखों से की वे भावुक हैं प्रतिक्रिया सुनकर।
बॉलीवुड लोचा टीम से एक लंबी बातचीत में फिल्म के लेखक राजू मान ने कहा कि – लेखन में पहला अनुभव तो यही रहा कि यशपाल शर्मा ने मुझ पर भरोसा किया। बॉम्बे में पहली मुलाकात में दो-तीन सीन सुनाने पर ही फिल्म फाइनल हो गई। वहाँ स्क्रिप्ट फाइनल होने से लेकर इसके बनने तक की यात्रा में हमारी काफी बहस भी हुई और भाईचारा सा भी बन गया। एक लम्बे अरसे से हम साथ रहे हैं। 8 नवम्बर को रिलीज है फिल्म और सबसे पहले इसे हरियाणा में रिलीज किया जाएगा। शुक्रवार तक इसकी स्क्रीन बढ़ाई जाएगी। उसके बाद दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, यू. पी, ग्रेटर हरियाणा, मेवात, पलवल , मथुरा आदि तक रिलीज करने की कोशिश है। फिलहाल हम सभी इसके प्रमोशन में लगे हैं सभी जगह इस फिल्म की विजय यात्रा चल रही है।
इसके साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर श्री राजेंद्र गौतम ने भी इस फिल्म में अभिनय किया है। प्रोफ़ेसर गौतम वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय में दादा लखमी के बारे में पढ़ाते रहे हैं। इसी नाते भी हमने उनसे बात की और उन्होंने फिल्म को लेकर काफी कुछ प्रतिक्रिया दी प्रोफेसर गौतम ने कहा कि –
“साठ से अधिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली, वह भी प्रदर्शन से पूर्व ही फिल्म अपने आप में ऐतिहासिक है। स्वयं में यह तो सबने इसके प्रदर्शन से पहले मान ही लिया है। उन्होंने फिल्म के बारे में कुछ जरूरी बात करते हुए आगे कहा कि – मैं जो बात रेखांकित करना चाहता हूं वह यह है कि इसके ऐतिहासिक होने के अनेक पक्ष हैं, अनेक संदर्भ हैं। सबसे पहले तो यह इस मायने में ऐतिहासिक है कि हरियाणा के किसी भी साहित्यकार पर बनने वाली मेरी जानकारी में पहली फिल्म है। यद्यपि हम सूरदास को हम हरियाणा का कवि मान सकते हैं, तो यह संभावना कम ही है कि सूरदास पर हरियाणा में कोई पिक्चर बनी हो।
केवल साहित्यकारों की बात ही ना करते हुए उन्होंने इस फिल्म के बहाने से यह भी कहा कि – अन्य ऐतिहासिक पर्सनैलिटीज जो इतिहास पुरुष है उनमें भी बड़ा ऐसा नाम नहीं मेरे सामने आया जिस पर अभी तक बायोपिक बनी हो हरियाणा में। तो इस मामले में पहले तो कह सकते हैं कि यह ऐतिहासिक फिल्म तो जरूर है। दूसरी एक लोक कवि के जीवन को, उसके बनने की प्रक्रिया को, उसके संघर्ष को और उसके मन को समझने का जैसा प्रयास हमें इस फिल्म में देखने को मिलता है वह भी अपने आप में विरल है। एक लगन जो निर्धनता के रोके नहीं रुकती  एक लगन जो एक मायने में मां बाप की भी आदेशों की वर्जना आदि को तोड़ती हुई आगे बढ़ती है।  एक लगन जो सारे सामाजिक बंधनों को तोड़ती हुई आगे बढ़ती है, एक लगन जो उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ती है जिसका शुरू में कोई भौतिक या आर्थिक प्राप्ति का सीधा सा कोई लक्ष्य नजर नहीं आता, दादा लखमी एक संगीतमय प्रस्तुति है और संगीत की इस प्रस्तुति में महत्वपूर्ण लोक संगीत का वह पक्ष है जो अपने आपमें विभिन्न अंगों को समेटे हुए हैं।  आचार्य भरत मुनि ने यदि नाटक को पंचम वेद कहा है तो लखमी चंद इस वेद के बहुत बड़े ज्ञाता कहे जा सकते हैं।
प्रोफ़ेसर गौतम ने वर्षों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में  अध्यापन कार्य किया है इस लिहाज से उन्होंने इस फिल्म के कई जरूरी पहलुओं पर भी बात की और कहा कि – अभिनय, संगीत निर्देशन, प्रबंधन कितनी चीजें एक साथ समेट कर विराट रूप धारण करता है ‘साधक’ और लखमी चंद की जो ‘साधक’ की छवि है वह लोक मन में वर्षों से बसी हुई है। इतनी लोकप्रियता हरियाणा में किसी को प्राप्त नहीं हुई है, जितनी लखमी चंद को। ऐसे व्यक्तित्व को सेल्यूलाइड पर उभार कर लाना, उसको फिल्म का रूप देना साधारण काम नहीं था। बहुत बड़ी चुनौती है यह जिसे फिल्म के निर्देशक यशपाल शर्मा ने स्वीकार किया है
इस फिल्म को एक चुनौती के रूप में उन्होंने बताया  और कहा कि –  उस चुनौती का सामना करने का यशपाल ने एक रास्ता चुना है। वह भी बहुत सही रास्ता नजर आता है।  उनका रास्ता था कि लोक कवि को सम्मान देने के लिए लोक का सम्मान किया जाये। इस नाते यह एक लोक आधारित फिल्म भी है।  इसलिये उसने कलाकार लोक से ही चुने। वे लोग  जिनके मन में लखमी चंद की आत्मा बसती थी। उन लोगों का मन जो लखमी चंद के शब्दों को जीता था, उसको उन्होंने  इस फिल्म में शामिल किया। बहुत बड़े बॉलीवुड के कलाकारों को लेकर एक कृत्रिम आडंबरमयी प्रस्तुति यशपाल शर्मा ने देने की कोशिश नहीं की बल्कि इसी जमीन से सारी चीजें ऊगी हैं जिस जमीन के लखमी चंद हैं। संगीत, अभिनय, मेकअप , संवाद, भाषा सभी इसी मिट्टी से जन्में और बने।
इसी सारी समग्रता में ही लखमी चंद उभर कर हमारे सामने आती है, एक मुकम्मल तस्वीर के रुप में।  मुकम्मल कहां तक वहां तक जब एक कवि के रूप में एक प्रस्थान यात्रा लखमी चंद की प्रारंभ होती है। प्रोफ़ेसर गौतम ने याद महा कवि निराला का उदाहरण देते हुए अपनी बात रखी और कहा कि – निराला का तुलसीदास जिसमें वे पूरी तुलसीदास की गाथा नहीं कहते बल्कि उस तुलसीदास की बात करते हैं जो रत्नावली के मोह में उसकी ससुराल तक जाता है और फिर वहां से निकल पड़ता है, रामचरितमानस की रचना का संकल्प मन में लेकर। तो कवि बनने की शुरुआत जहां से तुलसीदास की होती है निराला ने जो वह दिखाया है यशपाल ने इस भाग में लखमी चंद बनने की शुरुआत किस रूप में होती है इस को दिखाया है।  लखमी क्या बना? कैसा बना? वह संकल्प भी हमें यशपाल शर्मा की दूसरी निर्मिती के लिए दिखाई देता है उनकी चर्चाओं में, बातचीत में यह संभावना और भी विराट हो जाती है। वह आशा और ज्यादा बलवती हो जाती है और उसी अनुपात में यशपाल शर्मा के सामने चुनौती भी ज्यादा बड़ी हो जाती है।
फिल्म की एक अन्य कलाकार डॉ अल्पना सुहासिनी ने फिल्म को देखने की गुहार लगाते हुए कहा कि – हमारी फिल्म ‘दादा लखमी’ 8 नवंबर को आ रही है सिनेमाघरों में। आप सभी से अपील है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में इसे देखें क्योंकि यह एक कलात्मक फिल्म होने के साथ-साथ यह कालजयी कृति है। एक ऐसी कृति जिसका इंतजार  जितनी शिद्दत से हो रहा है उतना ही यह बरसों बरस तक याद रखी जाएगी। यह फिल्म आपको सौ साल पहले के  परिदृश्य में लेकर के जाएगी, गांव की कच्ची पगडंडियों में लेकर के जाएगी, आपको सुहाने दौर में लेकर के जाएगी। जिस दौर में पहुंचने की ख्वाहिश, उस सकून को पाने की ख्वाहिश अक्सर हम सभी की रहती है। उस दौर में हमें लेकर के जाएगी फिल्म दादा लखमी। हरियाणा के शेक्सपियर, सूर्य कवि, संत, फक्कड़ कबीर भी जिन्हें कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्तित्व पर फिल्म बनाना हालांकि आसान तो नहीं ही था लेकिन यशपाल शर्मा जी ने अपनी अनकथ मेहनत, अपनी लगन, अपनी जिजीविषा से इस जोखिम भरे काम को बहुत सहजता से और बहुत समर्पण भाव के साथ किया है उसी का परिणाम है कि इतने रिसर्च, इतनी शोध करने के बाद और बहुत बारीकी से हर पहलू पर काम करने के बाद एक कमाल की, लाजवाब फिल्म आप सभी के लिए लाई गई है दादा लखमी। तो देखिएगा जरूर 8 नवंबर को सिनेमाघर में….
फिल्म दादा लखमी में दादा लखमी के यौवन का किरदार अदा करने वाले एक्टर हितेश शर्मा ने बातचीत में बताया कि – बहुत खुशी महसूस कर रहा हूं इस फिल्म से जुड़कर और यह बताते हुए कि दादा लखमी फिल्म 8 नवंबर को रिलीज हो रही है। एक लंबे समय के बाद यह समय आ रहा है और हमारी पूरी टीम इस समय का इंतजार कर रही थी। साथ ही पूरा हरियाणा और देश के कई हिस्सों में कई लोग इस फिल्म का इंतजार कर रहे है। फिल्म तो लगेगी हरियाणा के शहरों में अभी। हर जगह फिल्म नहीं लगा रहे हैं कारण ये कि हम चाहते हैं पहले हम अपने घर में फेस्टिवल बनाएं। फिर हम बाहर जाकर भी फेस्टिवल मनाएं।
दिवाली का अगर टाइम होगा तो पहले घर में दीया जलाएंगे। फिर बाहर पटाखे फोड़ेंगे तो ऐसे में हमअपने शहर अपने हरियाणा में फिल्म को रिलीज कर रहे हैं। जहां की फिल्म है, जहां की लैंग्वेज है उसके बाद हम ऑल ओवर इंडिया रिलीज करेंगे। फिर हर स्टेट में ऑल ओवर इंडिया के साथ-साथ मैं यह कहना चाहूंगा इंटरनेशनल लेवल पर हम फिल्म रिलीज करेंगे ऐसी कुछ हमारी प्लानिंग है।
 फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं दिखाया गया है जो नहीं हुआ था। 1901 से 1945 की कहानी है दादा लख्मीचंद की और पूरा इतिहास दिखाया गया है। सच्चाई दिखाई गई है। कई साल तो सिर्फ शोध करने में लगे थे।  पूरी जीवनी उनकी कोई नहीं जानता क्योंकि पुरानी बात है 100 साल से ऊपर की। लखमीचंद के गांव जाकर, उनके आसपास के गांव में घूम घूम कर, उनके घर वालों से बात करके, उनके ऊपर किताबें जो लिखी हैं उनको पढ़कर, कई कई गांव बुजुर्गों से बात करके तब जाकर एक कहानी तैयार हुई और उस पर भी कई बार शोध हुआ अगर हमने कोई बात सुनी तो उस पर भी कई कई बार रिसर्च हुआ कि क्या यह बात सही हैl
दादा लखमी  महापुरुष थे जिन्होंने कभी अपनी जिंदगी में फोटो नहीं खिंचवाई।  कैमरामैन को वह थप्पड़ मारते थे डांटते थे अगर कोई फोटो खींचता था। उनका कहना था कि भगवान की फोटो पैरों में आती है, राधा कृष्ण की फोटो पैरों में आती है तो मेरी औकात ही क्या? तुम लोग मेरी फोटो को भी पैरों में डालोगे?  अब जिस आदमी की फोटो नहीं मिली उस आदमी पर फिल्म बनाना आप सोचो कितना बड़ा काम है। निर्देशक यशपाल शर्मा कभी यह नहीं सोचा कि पैसा कमाने हैं इसलिए फिल्म बना रहे हैं। उन्होंने फिल्म बनाई दिल से क्योंकि वह एक अच्छा सिनेमा देना चाहते हैं हरियाणा को।
वहां उनका जन्म हुआ, उनकी जगह है उस जगह से उनको प्रेम है। वे चाहते हैं कि हरियाणा के लिए ऐसा कुछ कर दूं कि मैं अपनी जन्म भूमि का कर्ज अदा कर सकूं। यहां तक कि उन्होंने कई करोड़ के आसपास तक की फ़िल्में भी छोड़ दीं।
हितेश ने फिल्म से जुड़ा एक किस्सा शेयर करते हुए कहा कि –
“यह सच्चाई है।  दादा लखमीचंद फिल्म जब बननी स्टार्ट हुई थी तो किसी ने पांच करोड़ ऑफर किए यशपाल शर्मा जी को कि जो यंग लखमीचंद का रोल है वह मेरे बेटे को दे दीजिए मैं अभी के अभी आपको पांच करोड़ रुपए ट्रांसफर कर रहा हूं लेकिन यशपाल दादा ने क्लियर मना कर दिया। उन्होंने कहा कि आप बच्चे को भेज दीजिए मैं फ्री में ले लूंगा पैसे नहीं चाहिए। बशर्ते वह एक अच्छा अभिनेता हो।  लेकिन वह नहीं आए और वह रोल मैंने किया। तो बहुत गौरवान्वित फील कर रहा हूं।
अभी फिल्म रिलीज होने जा रही है 8 तारीख को बहुत खुशी फील कर रहा हूं और यह फिल्म सब को देखनी चाहिए अभी हाल ही में मैंने यशपाल दादा को बोला था कि यह फिल्म पूरी दुनिया की फिल्म है सिर्फ ये हरियाणा की फिल्म नही हैं सिर्फ। ये आर्टिस्ट की कहानी है हमेशा कहा जाता है कि आर्टिस्ट की कोई जात नहीं होती दादा लखमीचंद भी जाति पर कभी भी बिलीव नहीं करते थे। इस फिल्म को हरियाणा में लोग देखे बल्कि मैं चाहता हूं पूरी दुनिया यह फिल्म देखें जो फेस्टिवल्स में नहीं देख पाए या दोबारा देखना चाहते हैं।
फिल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि – हमारी जो फिल्म है पार्ट वन उसमें लखमी चंद जी का स्ट्रगल दिखाया गया है। उन्होंने लाइफ में क्या-क्या झेला? कैसे-कैसे उन्होंने अपनी जर्नी तय की? मतलब वह बचपन मैं ही अपना घर छोड़कर भाग गए थे घर पर उनका मन ही नहीं लगता था। कहीं भी उनको संगीत की धुन सुनाई देती थी तो भी निकल जाते थे घर से कि कहां से आवाज आ रही है। अपने गुरु  गुरुमान सिंह के यहां रहने लग गए।  फिर उनकों लोगों से बहुत धोखा मिला। लोग चिड़ने लगे, अच्छा तो गाते ही थे इसलिए उनको सरस्वती पुत्र भी कहा जाता है। भविष्य वक्ता कहा जाता है।
बहुत सारे किस्से हैं ऐसे और जब वह गाते थे तो एक एक हफ्ते पहले लोग अपने घर से निकल जाते थे घर से ,कि दादा लखमी का शो है, रागिनी है। तो बैल गाड़ियों पर, बुग्गियों पर चढ़ चढ़ के आते थे। दादा लखमीचंद की रागनी सुनने, कोई सौ-सौ किलोमीटर, डेढ़ सौ किलोमीटर से लोग चार-चार, पांच-पांच दिन पहले निकलते थे।
फ़िल्म को देखने की गुजारिश करते हुए हितेश ने बताया कि – इस फिल्म को सभी देखें क्योंकि अच्छी फिल्म का बनना बहुत बहुत ज्यादा जरूरी है वरना आजकल तो गाली-गलौज, सेक्स, रोमांस जो बन रहा है वही परोसा जाएगा। वही हमें देखना पड़ेगा। ऐसा कभी होगा नहीं कि हम मुंह छुपा ले फिल्म देखे ही ना। इंटरटेनमेंट सबको चाहिए सबको फिल्में देखनी होती हैं क्योंकि फिल्में समाज बनाती, फिल्में ही दर्शाती है समाज को की यह चल रहा है आज की डेट में।  एक मैसेज मिलता है फिल्म से तो अगर आप चाहते हैं कि अच्छी फिल्में बने तो अच्छी फिल्मों को सपोर्ट करें।
एक किस्सा शेयर करते हुए हितेश ने बॉलिवुड लोचा से बताया कि – यशपाल दादा भी भावुक हो गए थे जब प्रख्यात कवि सुरेंद्र शर्मा जी ने कहा यह फिल्म कौन कहता है रीजनल है?  रीजनल फिल्म नहीं यह इंटरनेशनल फिल्म है। 100 करोड़ की फिल्म ढाई मिनट नहीं बांध पाती लेकिन इस फिल्म ने मुझे ढाई घंटे, मुझे हिलने नहीं दिया। तो वे भावुक हो गए थे। इस फ़िल्म से  बहुत ज्यादा मोटिवेशन मिलने वाली है सभी को। आपको इसको देखकर कुछ भी करने का जज्बा एक मिलेगा। अगर आप हताश हो गए हैं, उदास हो गए हैं तब तो आपको यह फिल्म अवश्य ही देखनी चाहिए आपका उत्साह इतना बढ़ जाएगा कि यस आप बोलेंगे कि भगवान धन्यवाद।  हमने यह फिल्म देखी आप ईश्वर का धन्यवाद करेंगे कि हमारे देश में ऐसी फिल्म बन रही है तो धन्यवाद सभी की मेहनत को सार्थक बनाइए आप सभी से यही अनुरोध है।
बॉलीवुड लोचा ऐसी ही सार्थक फिल्मों का सदा समर्थन करता रहेगा। हम भी आपसे गुजारिश करते हैं कि 8 नवम्बर को हरियाणा और उसके बाद आपके आस पास के सिनेमा घरों में यह फिल्म देखने जरूर जाएं। क्योंकि सार्थक और अच्छा सिनेमा आप देखेंगे तभी आपको कचरा फिल्मों से दूरी बनाने में आसानी होगी। साथ ही यह फिल्म देखते हुए आप लोग अपना फोन साइलेंट मोड पर और स्क्रीन मोबाइल की दूसरों के चेहरों तक न जाने दें उससे आप और बाकि लोग ज्यादा फिल्म से जुड़ सकेंगे।

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