नहीं कर पाई तर्पण
अपनी न भुलाई
जा सकने वाली यादों का
बार-बार मन में
उठती उस हूक का
जो दिला जाती है याद
एक प्यारे सलोने से
मुखड़े की स्मृति का
जिसमें मांगता है एक
नन्हा सा प्यारा सा बच्चा
अपने खेलने के लिए
संगी साथी जो
कैद हो गए है आज
अपने-अपने हिस्से के कमरोंमें
वह मांगता है गोद
बुआ, चाची ,मामी
मौसी, ताई आदि की
जो न जाने कहां खो गई हैं
जिनके पास अब
नहीं रह गया है वक्त
उससे मीठी मीठी
प्यारी प्यारी
बातें करने का
वह मांगता है स्वच्छंदता
बेरोक…
आज का युवा
छिटके कतरा कतरा कर
बिखरे बादल
आभास देते हैं
वर्तमान युग के युवा की
मन: स्थिति का
जो हैरान व परेशान है
प्रतिस्पर्धा की
तीव्र व तीव्रतर होती
अंधी दौड़ से
पैर यहां रखूं या वहां
बीज यहां बोऊं या वहां
कौन सी धरती अथवा क्षेत्र
उगलेगा सोना
सोच में ही
छिन गया है
बचपन व जवानी उससे
रह नहीं गया है
वक्त पास उसके
चैन से सांस लेने
व बैठने का
जमाना एक था
जब युवा था बेखबर
था किंतु आशावान
था दिल में सुकून
जमाना एक यह भी है
जब खबरें उसे
रहने नहीं दे रही हैं बेखबर
कह रही हैं यहां दौड़ो वहां दौड़ो
खत्म होती है
जब यह अंधी दौड़
जुटा पाता है जब तक
वह चैन के साधन
बीत चुके होते हैं
वह लम्हे व क्षण
जिन्हें जीना चाहता था वह
जिन्हें जीने के लिए
लगाई थी दौड़ उसने
जान पाता है सही अर्थ
दौड़ का जब तक
हो जाती है जिंदगी की
शाम तब तक
हो जाती है जिंदगी की
शाम जब तक…..।
डॉ मंजुला पांडेय
Manjula pandey haldwani:
Shailputri Nileyam, Village Panyali,
Post office Kathgharia,
Haldwani, district Nainital.
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