आया है जब जब बसंत
ऋतुओं के क्रम या है अंत
आया है जब जब बसंत।
आम्र बौर लदा-लूम हुए हैं
महुआ झर -झर झरने को है
हर पात पात चिंतित लगता
पीला पड़ कर गिरने को है
नदियां सिकुड़ी सिमटी सी है
जल झरने मर मिटने को है
ज्यों हवा चले पुरवाई से
मुरझा जाती हैं साख साख
वन विस्मित है क्या गाए वो
कैसे अपने आप बचाए वो
फिर याद करे बीता बसंत
कैसे कैसे जीता है अनंत
बादल बारिश ओले शोले
आते जाते होले होले
जलते हैं जब जब पहाड़
कांपते कहां है मांस हाड़
हम दुःख में भी खुश होते
उत्सव मनाते हैं बसंत
ऋतुओं के क्रम है और अंत
आया है जब जब ये बसंत
फिर फिर आएगा बसंत।।