ए स्कूल का पहला दिन था। कावेरी विंग की तीसरी मंजिल पर नौवीं की “एम” कक्षा थी, जिसका आवंटन मीनाक्षी को किया गया था। वह थोड़ी डरी, सहमी और घबराई हुई सी थी। सीढ़ियों के स्टेप बड़े-बड़े और खड़े थे, इसलिए, वह रुक-रुक कर सीढ़ियाँ चढ़ रही थी। अचानक! वह गिरी और लुढ़कते हुए ग्राउंड फ्लोर के फर्श पर आ गई। मीनाक्षी का शरीर मोबाइल के वाइब्रेशन मोड की तरह वाइब्रेट कर रहा था। मुंह से झाग निकल रहा था। ऊंचाई से गिरने की वजह से सिर और दोनों हाथों से खून रिस रहा था। उसकी दोनों आँखों की पुतिलियाँ एक दिशा की तरफ घूम गई थीं। उसका शरीर उसके वश में नहीं था। वह चेतना खो चुकी थी। हालांकि, कुछ मिनटों में वह सामान्य हो गई। मीनीक्षी के गिरते ही; साथ में सीढ़ियाँ चढ़ रहे बच्चे भी भागते हुए नीचे पहुंच गए। हल्ला-गुल्ला सुनकर; एक-दो टीचर भी वहाँ पहुँच गई।   
एक टीचर मीनाक्षी से पुछती है, “बेटा अब तुम कैसी हो, तुम्हें क्या हो गया था, तुम्हारे पापा का नाम क्या, उनका मोबाइल नंबर क्या है आदि?”। एक लंबे समय से मीनाक्षी मिर्गी के दुष्परिणाओं से जूझ रही थी। नया स्कूल होने की वजह से वह स्ट्रेस में थी, शायद इसलिए आज ट्रिगर आया। मीनाक्षी तन-मन से खुद को अशक्त महसूस कर रही थी। बावजूद इसके, हिम्मत जुटाकर बोली, “मैम मुझे मिर्गी है और अक्सर ट्रिगर आते रहते हैं, मेरे पापा का नाम सुदीप है, प्लीज अपना मोबाइल दीजिये, मैं खुद अपने पापा से बात करूंगी, मीनाक्षी को पापा से प्यार भी था और भरोसा भी, उसे लगता था कि उसके पापा सुपरमैन हैं और उसे हर मुसीबत से बाहर निकाल सकते हैं, पहली बार पापा ने फोन नहीं उठाया, फिर भी; मीनाक्षी झल्लाई नहीं, वह समझ गई; पापा बुलेट चला रहे होंगे, पापा के पास कार है, पर उन्हें बुलेट ड्राइव करना बेइंतिहा पसंद था, दूसरी बार फोन करने पर पापा ने फोन उठा लिया, मीनाक्षी की रुआंसी व हताशा भरी आवाज सुनकर पापा समझ गए कि उसे फिर से ट्रिगर आया है”। पापा बोले, “घबराना नहीं बेटा, मैं तुरंत तुम्हारे पास पहुँच रहा हूँ”।  
सुदीप के हाथ और पैर बाइक के एक्सलेटर और गियर के ताल के साथ ताल मिला रहे थे, आँखें सामने सड़क पर गड़ी थी, लेकिन मन-मस्तिष्क में मीनाक्षी के मिर्गी के साथ चल रही लड़ाई की कहानी चलचित्र की भांति चल रही थी। 
इसी साल जून महीने में सुदीप ने जयपुर ऑफिस में योगदान दिया था। उसके बड़े भाई साहब पिछले 10 महीनों से जयपुर में थे। उनका ट्रांसफर चंडीगढ़ से जयपुर हुआ था। लकवा मारने के बाद से माँ बड़े भाई साहब के साथ रह रही थीं। कुछ दिनों पहले माँ के शरीर के बाएँ हिस्से में लकवा मार दिया था। तदुपरांत, न वे चल पा रही थीं, न बाएँ हाथ का इस्तेमाल कर पा रही थीं और न ठीक से बोल पा रही थीं, लेकिन सिर्फ 4 महीनों में भाई साहब ने सेवा और फिजियोथेरेपी की मदद से उन्हें अपने पैरों पर फिर से खड़ा कर दिया। तत्पश्चात, अपना सभी काम फिर से वे करने लगीं।    
बड़े भाई के साथ एक ही शहर में नौकरी करने और माँ के साथ रहने के लालच में सुदीप ने  अपना ट्रांसफर जयपुर करवाया था, लेकिन जयपुर ऑफिस में जॉइन करने से पहले ही मई महीने में माँ का स्वर्गवास हो गया। दाह-संस्कार और क्रिया-क्रम जयपुर में ही हुआ। ब्रह्मभोज के दिन मीनाक्षी को 5 सालों के बाद फिर से मिर्गी का कई बार ट्रिगर आया, जिसकी ईंटेंसिटी पहले से बहुत अधिक थी। पहले सिर्फ मीनाक्षी के दोनों हाथ ही वाइब्रेट करते थे, लेकिन इस बार पूरा बॉडी वाइब्रेट कर रहा था। शायद ट्रिगर आने का कारण नींद का पूरा नहीं होना था, क्योंकि घर में सब-कुछ अस्त-व्यस्त होने के कारण मीनाक्षी ठीक से सो नहीं पा रही थी। 
हालांकि, सुदीप के मन में यह भ्रम भी पनप रहा था कि छोटा बेटा होने के बावजूद उसने माँ को मुखाग्नि नहीं दी। शायद, इस वजह से माँ नाराज हो गईं और मीनाक्षी को फिर से ट्रिगर आया। दरअसल, दाह-संस्कार के 2 दिनों के बाद वीजा बनवाने के लिए सुदीप को मुंबई जाना था, क्योंकि मई के अंतिम सप्ताह में उसका लंदन जाना प्रस्तावित था और जो मुखाग्नि देता है; उसके लिए 12 दिनों तक घर से निकलना वर्जित होता है। लोगों को सुदीप का ऐसा सोचना अंधविश्वास लग सकता है, लेकिन सुदीप के साथ पूर्व में कुछ ऐसी अलौकिक एवं अविश्वसनीय घटनाएँ घट चुकी थीं कि वह ऐसी बातों पर विश्वास करने लगा था, अन्यथा युवावस्था में वह पूरी तरह से नास्तिक था।     
मीनाक्षी होश संभालने के बाद से; सुदीप से सबसे अधिक प्यार करती थी और सुदीप भी उसपर अपनी जान छिढ़कता था। मीनाक्षी सुदीप के हाथों को तकिया बनाकर सोती थी और सुदीप भी  उसके बिना सो नहीं पाता था। पहली बार मीनाक्षी को छोड़कर, सुदीप एक ऑफिसियल कार्य के सिलसिले में हैदराबाद गया था। उस समय मीनाक्षी लगभग 4 साल की रही होगी। दिन में तो वह खेलने में मशगूल रही, लेकिन रात में सुदीप को घर में नहीं पाकर वह रोने लगी। रो-रोकर उसका बुरा हाल हो गया। बड़ी मुश्किल से वह सो तो गई, लेकिन बीच-बीच में उसका बदन काँप रहा था। 
सुबह होने वाली थी, फिर भी, सुदीप प्रजेंटेशन की तैयारी कर रहा था, जिसे उसे कल प्रस्तुत करना था, दरअसल, सुदीप, प्रजेंटेशन को लेकर बेहद सतर्क रहता था, उसे कई बार पढ़ता था, फिर, संपादित करता था, जब तक वह फरफेक्ट नहीं लगता था, तब तक उसका मन नहीं मानता था, इस बीच; मोबाइल की घंटी बजी, सुदीप घबरा गया, क्योंकि सुबह के 4 बजने वाले थे, देखा तो वाइफ का नंबर था, ग्रीन बटन दबाते ही वाइफ लरजते स्वर में बोली, “लगता है मीनाक्षी को मिर्गी का दौरा पड़ा है, मुंह से झाग निकल रहा है, ऊपर और नीचे के दांत एक-दूसरे से सटे हुए हैं और पूरा शरीर तेजी से हिल रहा है”। 
सुदीप ने कहा, “हाँ, लक्षण के मुताबिक, यह मिर्गी का ही दौरा है, पर पहले तुम शांत हो जाओ और बिस्तर पर मीनाक्षी को लेटे रहने दो, बस इतना ध्यान रखो कि वह नीचे नहीं गिरे, एक-दो मिनट में वह सामान्य हो जायेगी, मैं डॉक्टर आलोक के यहाँ आज शाम का नंबर लगा देता हूँ, वे मेरे मित्र के बड़े भाई हैं, साथ ही, न्यूरो के अच्छे डॉक्टर भी हैं, दोपहर तक मैं वापिस लौट जाऊँगा, वाइफ, सुदीप की बातों से सहमत थी, क्योंकि वह जानती थी कि सुदीप को मिर्गी के बारे में अच्छी जानकारी है, क्योंकि उसके मित्र की माँ को भी यह बीमारी है और सुदीप अक्सर उन्हें लेकर डॉक्टर के पास जाता है”।  
मीनाक्षी पढ़ने में बहुत अच्छी थी। वह शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ रही थी। शहर के लोग मानते हैं कि सिविल सर्विस क्रेक करने के जैसा ही है उस स्कूल में दाखिला लेना, क्योंकि वहाँ से बारहवीं उतीर्ण करने के बाद लगभग सभी लोगों का करियर बन जाता है। नर्सरी कक्षा के साक्षात्कार में सभी प्रश्नों का उत्तर दिया था मीनाक्षी ने। उसने दिये गए पजल्स को भी सेकेंडों में हल कर दिया था। उसके बाद, हर कक्षा में उसने टॉप किया। संगीत और खेल में भी हमेशा शीर्ष पर रहती थी वह। 
डॉक्टर आलोक ने वीडियो ईईजी करवाने के लिए कहा। बोले, “इससे बीमारी किस स्तर पर है का पता चल जायेगा, इस बीमारी में मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं में विकार आ जाता है, जिससे पीड़ित को कुछ पलों के लिए दौरे पड़ते हैं, जिसके दौरान पीड़ित अपनी चेतना खो देता है, यह आमतौर पर आनुवांशिक विकार या मस्तिष्क पर आघात लगने से होता है”। डॉक्टर आलोक ने यह भी कहा, “मेडिकल साइंस में इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है, शल्य चिकित्सा से भी इस बीमारी का स्थायी इलाज नहीं किया जा सकता है, दवा खाने से बस मिर्गी के ट्रिगर की संभावना कम हो जाती है, अस्तु, दवा का परफेक्ट डोज़ मरीज को देना जरूरी होता है,  इस बीमारी में सयंमित जीवन जीने की जरूरत होती है, वैसे, योग का आसन “हलासन” भी  इस बीमारी को नियंत्रित करने में प्रभावशाली है”।    
डॉक्टर आलोक ने पुनश्च सुदीप से कहा, “तुम्हें यह ध्यान रखना होगा कि मीनाक्षी हर दिन 9 से 10 घंटे की नींद ले, दवा एक भी टाइम मिस नहीं होना चाहिए, अन्यथा ईलाज की अवधि बढ़ जायेगी, ऐसे कार्यों को करने से बचना होगा, जिससे ज्यादा थकान होती है, स्ट्रेस या प्रेशर को टालना होगा, साइकिल चलाना और स्वीमिंग करना भी मीनाक्षी को बंद करना होगा, उसके टीचर से भी वस्तुस्थिति साझा करनी होगी तुम्हें, क्योंकि सार्वजनिक स्थल पर ट्रिगर आने से मीनाक्षी के बालमन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, वह स्कूल या मोहल्ले में दोस्तों से अलग-थलग पड़ सकती है, उसके व्यक्तित्व का विकास बाधित हो सकता है आदि”। 
डॉक्टर आलोक ने फिर कहा, “ईईजी रिपोर्ट आ गया है। मीनाक्षी के मस्तिष्क के दोनों भागों की तंत्रिका कोशिकाओं में विकार है। इसलिए, ईलाज लंबे समय तक चलेगा, जिसके लिए तुम्हारे परिवार और मीनाक्षी को मानसिक रूप से हमेशा तैयार रहना होगा”।  
छोटी होने की वजह से मीनाक्षी को मिर्गी की बहुत समझ नहीं थी, लेकिन हर दिन दोनों वक्त दवा खाने की बंदिश की वजह से वह इरिटेट होने लगी। साइकिलिंग और स्वीमिंग नहीं करने से भी वह सुदीप से नाराज रहती थी, क्योंकि दोनों उसके पसंदीदा खेल थे। धीरे-धीरे मीनाक्षी छिड़छिड़ी होने लगी। घरवालों की रोज यही कोशिश रहती थी कि वह कम से कम समय तक मोबाइल और टीवी देखे, ताकि वह स्ट्रेस से बची रहे। न वह मनपसंद फिल्म देख पाती थी और न ही कार्टून।  
मीनाक्षी से ज्यादा टेंशन उसकी मॉम रहती थी। कभी-कभी रात को हड़बडाकर उठ जाती थी और सुदीप को उठाकर पुछती थी, उसने दवा खाई है या नहीं। सुदीप ने एक रजिस्टर बना लिया था, जिसमें वह दवा खाने का समय और तारीख रोज सुबह-शाम लिखता था। मुसीबत तब बढ़ जाती थी, जब वे सपरिवार घर से बाहर होते थे। एक बार वे चेन्नई घूमने गए थे, लेकिन दवा रखना भूल गए। सुदीप को पूरा शहर घूमना पड़ा था दवा ढूँढने के लिए। अंतत: ईश्वर की कृपा से दवा मिल गई थी। इसी तरह, एक बार सुदीप को मीनाक्षी के स्कूल जाकर दवा खिलाना पड़ा था।  
मीनाक्षी हर दिन कोशिश करती थी कि वह जल्द सो जाये, ताकि उसकी नींद पूरी हो जाये और वह रोज स्कूल जा सके, लेकिन उसे जल्द नींद नहीं आती थी और वह बिस्तर पर करवट बदलते रहती थी। इस वजह से उसका अटेंडेंस स्कूल में कभी भी 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो पाता था। इसलिए, टीचर मीनाक्षी से खुश नहीं रहते थे। 
मिर्गी को कंट्रोल करने वाली दवाइयों के बहुत सारे साइड इफेक्ट थे, जिसका असर धीरे-धीरे मीनाक्षी पर होने लगा था। वेलपेरिन दवा की वजह से कुछ सालों में ही मीनाक्षी का वजन बढ़कर 83 किलो हो गया। स्मरण शक्ति भी क्षीण पड़ने लगी। वह जल्द भूलने लगी। दवा की वजह से वह हमेशा आधी नींद में रहती थी, मस्तिष्क कभी भी अपनी पूरी क्षमता से सक्रिय नहीं हो पाता था। उसके शैक्षणिक प्रदर्शन में भी गिरावट आने लगी। हमेशा टॉप करने वाली लड़की खेल और पढ़ाई दोनों में फिसड्डी रहने लगी। कई बार मिर्गी का ट्रिगर स्कूल में आने की वजह से दोस्त भी उसे बुली करने लगे। 
बेहतर ईलाज के लिए सुदीप मीनाक्षी को लेकर एम्स, दिल्ली, मुंबई के नानावती, लीलावती, हिंदुजा और कोकिलाबेन अस्तपताल, हर जगह दिखवाया, लेकिन बात नहीं बनी। पहले डॉक्टरों ने कहा कि मीनाक्षी के पीरियड्स शुरू होंगे तो वह ठीक हो जायेगी, क्योंकि पीरियड शुरू होने से पहले शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं। फिर कहने लगे, कुछ लोगों को इस बीमारी से उबरने में 10 से 15 साल लग जाता है। आज वह 15 साल की हो गई, लेकिन बीमारी ठीक होने की जगह, और भी बढ़ गई है। यह सब सोचते-सोचते सुदीप रेलवे क्रॉसिंग तक पहुँच गया। फाटक बंद था। इसलिए, उसे गाड़ी रोकना पड़ा, जिससे उसकी तंद्रा भंग हो गई। क्रॉसिंग के पार; थोड़ी दूर आगे, दाईं ओर मीनाक्षी का स्कूल था। 
बड़ी मुश्किल से मीनाक्षी का एडमिशन नए स्कूल में हो पाया था, क्योंकि पिछले वर्गों में  उसका शैक्षिनिक प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा था, जिसके कारण स्कूल वाले एडमिशन लेने में आनाकानी कर रहे थे। एक स्कूल के प्रबंधन ने बोला कि हमें पहले के नंबरों से कोई लेना-देना नहीं है, हम टेस्ट लेंगे और अगर आपकी बच्ची उसमें पास हो जाएगी तो हम उसका एडमिशन स्कूल में ले लेंगे। कुछ तैयारी करने पर मीनाक्षी टेस्ट पास कर गई।  
स्कूल के मेडिकल विंग में एक बेड पर मीनाक्षी लेटी हुई थी। सुदीप को देखकर वह फफक-फफक कर रोने लगी, बोली, “पापा मैं अब जीना नहीं चाहती हूँ, हर वक्त डर में जीती हूँ, हमेशा यह महसूस होता है, ट्रिगर न आ जाये, कहीं भी गिर पड़ती हूँ, कई बार फ्रेक्चर हो चुका है, एक्सीडेंट से बची हूँ, एक बार तो मरते-मरते बची हूँ, स्कूल में सभी बच्चे पीठ पीछे हँसते हैं, हर चीज में बंदिश है, मोबाइल नहीं देखो, टीवी नहीं देखो, अकेले बाहर नहीं जाओ, साइकिल मत चलाओ, आखिर ऐसी ज़िंदगी जीकर मैं क्या करूंगी, जिसमें हर पल मुझे रोना है, विगत 10 सालों से मैं जी नहीं रही हूँ पापा, बल्कि हर पल मर रही हूँ बोलते-बोलते मीनाक्षी का गला रुँध गया, लेकिन आँखों से आँसूओं का बहना निरंतर जारी रहा”। 
सुदीप ने प्रत्युत्तर में कहा, “बेटा तुम्हारी बातों से पूरी तरह से सहमत हूँ, कभी-कभी मैं भी तुम पर झुँझला जाता हूँ, जबकि तुम्हारी कोई गलती नहीं होती है, फिर, तुम्हारे लिए जीना कितना मुश्किल होगा को मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूँ, लेकिन किसी बीमारी की वजह से हम जीना नहीं छोड़ सकते हैं, ज़िंदगी से हारना ठीक नहीं है, जरा तुम एक बार खुद सोचकर देखो, तुमसे ज्यादा गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग भी जी रहे हैं, वैसे लोग भी जी रहे हैं, जिन्हें दो वक्त खाना नसीब नहीं होता है, फिर, तुम इतनी निराश क्यों हो रही है, तुम्हारे बारे में कौन क्या सोच रहा है या कह रहा है, इसके बारे तुम्हें नहीं सोचना है, तुम्हें बस अपनी  खूबियों को निखारना है, जैसे-जैसे तुम खुद को बेहतर करोगी, वैसे-वैसे लोगों की जुबान पर खुद ब खुद ताला लग जाएगा, इसलिए, पॉज़िटिव रहो, हम सभी तुम्हारे साथ हैं, हाँ, कभी भी आत्महत्या के बारे में नहीं सोचना बेटा, ऐसा कमजोर लोग करते हैं, तुम तो मेरी बहादुर बेटी हो”। 
जी पापा, कहकर, मीनाक्षी अपना हाथ सुदीप की तरफ आगे बढ़ाती है, जिसे मजबूती से थामकर सुदीप दरवाजे की ओर बढ़ जाता है। 
   
सतीश सिंह, अहमदाबाद 
मोबाइल नंबर-8294586892 
श्री सतीश सिंह, बैंकर, वरिष्ठ स्तंभकार, कथाकार, कवि और शायर हैं। श्री सिंह की सम-सामयिक, आर्थिक एवं बैंकिंग विषयों पर हिंदी व अंग्रेजी भाषा में 2500 से अधिक लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. 500 से अधिक कवितायें, गीत एवं गजल एवं 5 दर्जन से अधिक कहानियां भी प्रकाशित। दिसंबर 2021 में “पिया ओ रे पिया” शीर्षक से एक म्यूजिक एल्बम 100 से अधिक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज। तीन पुस्तकें प्रकाशित और 1 दर्जन से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित भी।


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