Friday, October 4, 2024
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शैली की कविता – मृत्यु आतुर भीष्म के उत्तरायण का क्या करें?

मृत्यु आतुर भीष्म के उत्तरायण का क्या करें?
साँझ की बढ़ती हुई परछाइयों का क्या करें?
घट रहे दिन और बढ़ती रात्रियों का क्या करें?
शिशिर के इन क्षीण दिन बढ़ती निशा का क्या करें,
पूस की इस कड़कड़ाती सर्दियों का क्या करें
हो रहा जल्दी अंधेरा, धुँधलकों का क्या करें
रात की ख़ामोशियों, तन्हाइयों का क्या करें
दूर तक दिखते अलावों की चमक का क्या करें
ठण्ड में अकढी़ हुई मज़लूमियत का क्या करें?
सिर छिपाने को तरसती ज़िन्दगी का क्या करें
ओढ़ने को ठिठुरती मजबूरियों का क्या करें
सर्दियों में थरथराती बस्तियों का क्या करें?
राजनीतिक कुंभकर्णी नीतियों का क्या करें,
सर्दियों में ऐंठते फुटपाथ का हम क्या करें
वोट देकर हाथ काटे वोटरों क्या करें….
गिरगिटों को मात देते रावणों क्या करें…
हाथ में क्या है हमारे? हाथ क्या हम क्या करें
कुछ बतायें आप सब, हम क्या करें, अब क्या करें
शैली
शैली
सम्पर्क - [email protected]
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