Saturday, July 27, 2024
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विनोद कुमार दुबे की कविता – टिया रानी

मेरे घर लौटने पर,
जब तुम दौड़कर मेरे गले लग जाती हो,
छलक उठता है मेरे नेह का दिया,
याद आती हैं वे सारी लड़कियाँ
जो इसी उम्मीद में निहारती थी,
अपने पिता को,
और  कठकरेज़ पिता मुँह फेर लेते थे,
तुम्हें अंकवार लगाते,
लगता है मैं उन सब पर नेह लुटा रहा हूँ,
तुम्हें अपने हाथों से दुलराते,
मामा, बुआ , मौसी का कौर खिलाते,
याद आती हैं वे सारी लड़कियाँ
जो भाई को पूरा आम मिलते देखती,
खुद को आम का एक टुकड़ा मिलने पर,
सारा रोष भीतर पी जाती थी,
तुम्हें पेट भर खिलाते,
लगता है उन सबको मैं उनका हिस्सा खिला रहा हूँ ,
तुम्हारे नख़रे, जबरदस्तियाँ सहते,
मैं जानता हूँ कि मैं पक्षपात कर रहा हूँ,
पर मुझे याद आती हैं वे सारी,
बेटियाँ, बहनें, बहुएँ ,
जिन्होंने बिना कोई नख़रा दिखाए,
चुपचाप सहकर जीवन गुज़ार लिया था,
तुम्हारे साथ पक्षपात करके,
तुम्हारे सारे बेतुके नख़रे सहके,
मैं क़तरा क़तरा ही उऋण होता हूँ,
उस क़र्ज़ से जो सदियों से स्त्रियों ने,
चुपचाप सबकुछ सहकर,
हम पुरुषों पर लादे हैं ….
विनोद दुबे
विनोद दुबे
बनारस में जन्मे विनोद कुमार दूबे जी पेशे से जहाजी और दिल से लेखक हैं। इनका हिंदी उपन्यास "इंडियापा" और कविता संग्रह " वीकेंड वाली कविता" विशेष चर्चित रहा है। सिंगापुर में हिंदी के योगदान को लेकर HEP ( highly enriched personality) का पुरस्कार तथा कविता के लिये सिंगापुर भारतीय उच्चायोग द्वारा इन्हे पुरस्कृत किया गया है। सम्प्रति - मर्चेंट नेवी में कैप्टन तथा सिंगापुर में निवास।
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