मैं आपको मिसेज अवस्थी कहूँ तो…..?यह सुनकर फ्रिज से दूध निकालती नीरा ने पलटते हुए किचन के दरवाजे पर खड़ी अपनी नई नवेली बहू डिंपल की ओर आश्चर्य से  देखा…. डंक की तरह चुभते इस प्रश्न से उसके मन में गुस्सा वैसे ही उबलने लगा जैसे इस समय गैस पर चढ़ा  चाय का पानी..।
नीरा ने उबलते पानी में एक कप दूध डाला..और स्वयँ भी यह कल्पना करती रही कि ठंडे पानी के कुछ छींटे उसने अपने उबलते गुस्से पर डाल लिये हैं।चाय का पानी फिर उबलने लगा …भाप निकल रही थी ठीक उसके गुस्से की तरह ….यह गुस्सा भाप की तरह आसपास न फैल जाए ,यह सोचते हुए उसने चायपत्ती डाल गैस बंद कर दी और महसूस करने लगी कि उसका उफनता क्रोध भी कम होता जा रहा है।
चाय छानकर दो कपों में डाली,उन्हें ट्रे में रख बरांडे में बैठे पति के पास लेकर आ गई।
नितिन ने नीरा के मुख की ओर ध्यान से देखते हुए कहा –आज की पीढ़ी रिश्तों की मर्यादा लांघना अपनी शान समझती है।
वैसे सच कहूँ…., मैं भी नहीं चाहती थी कि वह मुझे माँ,मम्मी या मॉम कहे….।संबोधन से अधिक भाव का महत्व होता है और उसके मन में मेरे लिए क्या भाव हैं ,ये तो आप भी अच्छे से जानते हैं।नीरा ने यह कहते हुए कप में हल्की सी फूंँक मारी…, ऊपर की ओर जाती भाप में उसका गुस्सा भी भाप बनकर उड़ा जा रहा था।
नितिन ने चाय का कप होठों के पास ले जाते हुए कहा-सच है,जब बेटे ने भी होंठ सी लिए हैं तो हमें ही समझौता करना पड़ेगा।

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