(1)
कविता करती है अपील
——————————
कविता करती है अपील
निभाने को राजधर्म उन सिहांसनों से
जो जनसाधारण की रक्षा में नहीं
निमग्न है सिंहासन की रक्षा में
कविता करती है अपील
बचाने को थोड़ा सा अवकाश उन पत्थरों से
जहां से फूट सके कोई उत्स
जिससे लहलहा सकें फिर जीवन की संभावनाएँ
कविता करती है अपील
आपदा में अवसर ढूँढ़ते उन अवसरवादियों से
बचाने को अपने अन्दर का थोड़ा सा आदमी
ताकि बची रहे मनुष्यता धरती पर
कविता करती है अपील
थामने को हाथ उन आर्त आवाजों के
जिन्हें डुबा देती है बेरुखी, समय से पहले
निशब्दता के अतल सागर में
कविता करती है अपील
भौतिकता की चकाचौंध में अन्धी उन आँखों से
बचाने को थोड़ी सी हरियाली
ताकि बची रहें साँसें बचा रहे जीवन
कविता करती है अपील
जीयो और जीने दो की
हिंसा में तल्लीन उन हिंसक वृत्तियों से
ताकि बचे रहें बुद्ध,गांधी और महावीर
आज जबकि अपीलों के ठेकेदार
बेच  रहे हैं तरह-तरह की अपीलें
जो फैला रही हैं नफरत और बैमनष्यता
एक कविता ही है जो बिना डरे बिना झुके
कर रही है अपील, उन अपीलों के खिलाफ
बचाने को धरती और मनुष्यता ।
(2)
मैं नहीं छोड़ना चाहता हूँ तुम्हें
————————————-
मैं नहीं छोड़ना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे नहीं छोड़ना चाहती है देह
संग संग चलती साँसों का हाथ
जैसे नहीं छोड़ना चाहती है मछलियाँ
सांसो के जीवित रहने तक
नदी की बाँहों में सिमटी अथाह जलराशि
जैसे नहीं छोड़ना चाहता है सूर्य
अपने अन्तर का वह ताप
जिसके बिना आप कह सकते हैं उसे
सप्ताह का एक दिन भी
जैसे साँसें,जलराशि और ताप जरूरी है
देह,मछलियों और सूरज के लिए
ठीक वैसे ही
जरूरी है तुम्हारा होना मेरे लिए ।
पाखी, समहुत, कथाक्रम,अक्षरा, विभोम स्वर ,सोचविचार, सेतु , समकालीन अभिव्यक्ति, किस्सा कोताह, तीसरा पक्ष, ककसाड़, प्राची, दलित साहित्य वार्षिकी, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, विचार वीथी, लोकतंत्र का दर्द, शब्द सरिता,निभा, मानस चेतना, अभिव्यक्ति, ग्रेस इंडिया टाइम्स, विजय दर्पण टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. सम्पर्क - arvindyadav25681@gmail.com

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.