एक होड़-सी मची है… समझाने की!
किरदारों में खुद को ढूढ़ने की…
ज्यादा बोलने की…
कम सुनने की!
बात से बात जोड़ने की…
एक होड़-सी मची है!!
मैं अपना तजुर्बा ज्यादा दिखाऊं…
अपने ग़मों की नुमाईश लगाऊं…
हालातों की कमजोरियाँ बताऊँ…
तुम्हारे किस्सों में भी खुद को ही महान दिखाऊं!!
एक होड़-सी ही मची है सब जगह…
2 – जरूरत
पढ़ने की जरुरत क्या है?
लिखने की जरुरत क्या है?
पढ़ लिख ली?
तो नौकरी करने की जरुरत क्या है?
कभी खुद से पूछा इन सवालों की जरुरत क्या है?
औरत हूँ तो बांधने की जरुरत क्या है?
हर बात में लक्ष्मण रेखा खींचने की जरुरत क्या है?
आसमान मेरे लिए भी उतना ही खुला है
धरती मेरे लिए भी उतनी ही फैली है
फिर भी बात बात पर टोकने की जरुरत क्या है?
मेरे अस्तित्व पर उंगली उठाने की जरुरत क्या है?
3 – मुझे शौक था अच्छा बनने का
मुझे शौक था ‘अच्छा’ बनने का
मैंने खुद को देखा
फिर लोगों को देखा
फिर लोगों की नज़रों से खुद को देखा
क्यूंकि मुझे शौक था ‘अच्छा’ बनने का
खुद पर हसूं
पर दूसरों को हसाऊँ
खुद पर रोऊँ
पर दूसरों को न रुलाऊँ
उलझा के बैठा था मैं खुद को
क्यूंकि मुझे शौक था ‘अच्छा’ बनने का
गैर के चूल्हे के लिए खुद का घर जलाऊं
तुम्हारी जरुरत के लिए अपनों को भुलाउं
खुद की ग़लतफ़हमी को को जायज़ बताऊँ
क्यूंकि मुझे शौक था ‘अच्छा’ बनने का
अब जब मैं देखता हूँ खुद को
खुद से खुद को बर्वाद करने को
इतना कुछ बुरा कर बैठा हूँ मैं अपने साथ
बस क्यूंकि मुझे शौक था ‘अच्छा’ बनने का
4 – कोशिश
मैंने बहुत कोशिश की
समझने की
समझाने की
लोगों को बदलने की
उनमे ढलने की
उनको सही बताने की
खुद को गलत दिखाने की
अपना सब खोने की
भीड़ में शामिल होने की
मैं अब आज…
किसी और का चेहरा पहने हूँ
जिनका खुद वजूद नहीं
उनके लिए खुद को खोये हूँ !
5 – इम्तिहान
हर इम्तेहान के बाद
मेरा कुछ हिस्सा मर जाता है
ख़यालों की उधेड़ बुन में
मेरा मन घबराता है
बाहर बैठे है कुछ
जो मुझे मरा ऐलान कर दे
मेरी एक बात से मुझे बदनाम कर दें
सहेजता हूँ मैं फिर उस हिस्से को अपने लिए
खुद की कहानी में खुद पर तरस किये
रंगता हूँ उसे नयी उम्मीद से
तजुर्बों की हामिद से
वो हिस्सा फिर मुझ में समां जाता है
और मुझे एक नया इंसान बना जाता है
बहुत कुछ अनकहा कहती कवितायेँ। यह छोटी कविताएँ बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है कि इत्ती छोटी उम्र में इस लड़कीं ने इतना8 घटी अभिव्यक्ति कैसे पाई।
ईश्वर आपकीं सृजनात्मक लेखनी को शक्ति दें आप खूब लिखें।
बहुत कुछ अनकहा कहती कवितायेँ। यह छोटी कविताएँ बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है कि इत्ती छोटी उम्र में इस लड़कीं ने इतना8 घटी अभिव्यक्ति कैसे पाई।
ईश्वर आपकीं सृजनात्मक लेखनी को शक्ति दें आप खूब लिखें।
बहुत कुछ अनकहा कहती कवितायेँ। यह छोटी कविताएँ बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है कि इत्ती छोटी उम्र में इस लड़कीं ने इतना8 घटी अभिव्यक्ति कैसे पाई।
ईश्वर आपकीं सृजनात्मक लेखनी को शक्ति दें आप खूब लिखें।
बहुत कुछ अनकहा कहती कवितायेँ। यह छोटी कविताएँ बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है कि इत्ती छोटी उम्र में इस लड़कीं ने इतना8 घटी अभिव्यक्ति कैसे पाई।
ईश्वर आपकीं सृजनात्मक लेखनी को शक्ति दें आप खूब लिखें।