1 – फटी हुई कॉपी
फटी हुई कॉपी
कभी विलाप–चीत्कार शोर नहीं करती
कि कई जगह से कट–फट चुकी हूँ
या अब नहीं है मेरे साथ मेरा मुखपृष्ठ
फटी हुई कॉपी में
दिख जाते हैं कई जगह अधफटे पृष्ठ
परंतु उन्हें रत्तीभर भी शिकायत नहीं–
जिन्होंने जान–बूझकर ईर्ष्यालु भाव से
या भूलवश ही फाड़ दिए हैं उनसे
या अपनी ज़िंदगी से
फटी हुई कॉपी जानती है–
अगर वह लाला–बनियों के पास है
तो उसका कुछ और अर्थ है
बस, ट्रक ड्राइवरों के पास है
तो उसका कुछ और अर्थ है
स्कूल जा रहे बच्चों के पास है
तो उसका कुछ और अर्थ है
लेबर–मजदूर, मोची, नाई
रिक्शेचालक, किसानों के पास है
तो उसका कुछ और अर्थ है
सब्जी वाले –ठेले वाले
चाय वाले, ढाबे वाले
या कामगार स्त्रियों के पास है
तो उसका कुछ और अर्थ है
फटी हुई कॉपी कई बार
धूल–मिट्टी, गंध में इस प्रकार लिपटी होती है
कि याद आ जाते हैं कस्बे, गाँव–गली, आँगन में
खेलते–कूदते, उछलते
मिट्टी में लिखते-पढ़ते बच्चे
फटी हुई कॉपी,
कोई चीर–फाड़कर फेंक दे
या नष्ट कर दे – यह अलग बात है
लेकिन फटी हुई कॉपी ने खुद को कभी
चीरा–फाड़ा या नष्ट किया हो
ऐसे उदाहरण न पृथ्वी पर देखने को मिले
न कभी अन्य ग्रहों पर,
हाँ, तब भी नहीं जब वह बिलकुल नई थी
फटी हुई कॉपी,
जानती है कि जब तक है ज़िंदगी
किसी ईमानदार व्यक्ति की तरह उसे
देते रहना है– शब्द, अर्थ, वाक्य, समय
और एक–एक पैसे का हिसाब-
सही से और सदैव।
2 – तुम्हारे जैसे लोग ही
खुशामद से ही आमद है
इस सीख को सीख लो जेब में रखना
नहीं तो भटकते ही रहोगे गधे की तरह
आज की दुनिया में
हरिश्चन्द्र बनने का प्रयास मत करो
ऐसा करके तुम्हारे जैसे लोग ही–
मार लेते हैं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी
दीया बनो,
सूरज बनो खूब उजाला करो
लेकिन उजाला करो सिर्फ अपने घर–आँगन में
किसके घर–आँगन में कितना अंधकार है
यह चिंता छोड़ दो दूसरों पर
दुख के समय किसी की मदद मत करो
कोई मरता है तो मर जाने दो भूख–प्यास से
बहुत बुरा समाज है हमारा
खाता है और भूल जाता है तुरंत–
देखते नहीं अपने आसपास लोगों को !
बस अपने काम से काम रखो
फिर देखो अपनी तरक्की–शोहरत बैंक–बैलेंस
याद रखो– भलाई नाम की कोई चीज नहीं होती
इस दुनिया में
इस तरफ उन्होंने मुझे
अपने जैसा बना डालने की हर संभव कोशिश की
पर नाकामयाब रहे।
नमस्कार। बहुत सुन्दर कविता। वास्तव में कविता के माध्यम से पन्ने व यथार्थ ज्ञान व जीवन का सटीक चित्रण हुआ है। शब्दों व पंक्तियों का संयोजन भी अनूठा है। बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई।
डॉ प्रवेश चंद्र जोशी ‘सत्यप्रेमी’