कस्तूरी से अनभिज्ञ मृग की आस
नाभि के स्पंदन में ठहरी
जगत के पास ये अनोखी जुगत
खोल में विचरते जीव और शै
सीप ,श्रीफल में बंद जल बूंद
फूल में फल ,फल में बंद बीज
मूल इक शांत कवच
थिर उसका आवरण
2 – तिरोहित
तुम्हारी छाया से चस्पाँ हो ,
चेहरों पर इक शिकन
तो समझ लेना
साँचा तोड़ने का वक्त आ गया
आईने में चेहरा नहीं, दर्प दिखे
बिम्ब गढ़ने से ज्यादा तोड़ने में आनंद आये
तो समझ लेना
सही राह पर हो
तैयार रहो ! स्वीकार करो !
ग्रहण के सूर्य -चाँद
निश्चिंत रहो
नहीं रीतेगा ,अकिंचन होने का आनंद
सावधान !
ये नया अहंकार न रचना
कि तुम ही अकेले हो इस ब्रह्मांड में
आवरण के बैरागी
अपनी बेचैनियों से प्यार करने वाले
कोई दूसरा छवि गढ़े ,गढ़ने दो
गड़ने मत दो ,अपनी सरलता
बेध्यानी का कंकर मन के गहरे कुएं में डालो
और तिरोहित कर दो अपना प्रतिबिम्ब
3 – ख़ारिज
जब तब मैने ख़ारिज किया खुद को
कुछ नवल रचा, बसा आ बैठा मेरे भीतर
अमोघ है ख़ारिज की गुलेल का वार
गवाह है लार्वा से तितली ,बीज से अंकुरण का संसार
मेरी अधमुंदी पलकों ने ख़ारिज किया अँधेरा
चैतन्य हुआ कोना ,कौंधा क्षणांश उजास
मुझमें खलिश पैदा करता है ख़ारिज का रसायन
अस्तित्व से छिलके सा उतरते हुए
वांछा लकीर त्यागता है संत मन
मेरी अधूरी कहानियों के खाली पन्नों पर
ख़ारिज किये गये शब्द वापसी नहीं करते
ख़ारिज को ख़ारिज करने वाले बेजा सवालों के जवाब
खराश से देती इस दुनिया में
मैं करती हूँ ख़ारिज आज फिर खुद को
4 – जात
जब आठों याम के क्षणांश
जीवन का होगा पूर्ण विराम
तब ये क्षण न पूछेगा
हमारी जात क्या है
कुछ पत्ते हिलेंगे बिना हवा के
जिनके मूल में हम थे
एक पंछी दूर आकाश में
अजनबी तरंग की अंतिम श्वास को
देगा गवाही बिना जात जाने
मृत्यु के अंतिम क्षण तक अज्ञात
मैं कौन हूँ
इस यक्ष प्रश्न के साथ
जीवन भर स्वयं को खोजते रहेंगे हम
और अज्ञात ही रहेगी हमारी जात
विचार की जिस मिट्टी को गढ़ा हमने
अंततः वही तय करेगी हमारी जात
5 – बचपन बचपना नहीं
मद्धम राग में गुनगुनाती
हौले से..या यकबयक दौड़कर करती आलिंगन
चुपके से चूम लेती हैं बोसा- बोसा
ये ‘हवायें’ मिलती हैं सबसे गले ।
सुर ताल लय से आबद्ध
भंवर में नाचता ,लहरों की अठखेलियाँ
छूते -पीते तृप्ति का अहसास
ये ‘जल’ कितना कोमल है शिशु जैसा।
नाचती हैं लौ निष्कम्प
तिरोहित होने तक झूमती है
किसी सूफी के वर्तुल नृत्य जैसे
हे ‘अग्नि’, तुम अबोध कन्या हो क्या।
चमकते कंकर जमा करता
लटका कर रखता चाँद
रोता तो जार जार निकलते आंसू
सिंदूरी भोर -संध्या से दमकता
धूप की परछाइयों से मंत्रमुग्ध
‘आकाश’ एक नटखट बच्चा है।
किसी एक रंग का नाम लो
केसरिया और हरीतिमा यहीं है
शोरगुल और जिंदादिली से भरा जीवन भी
ये ‘धरती’ ईश्वर की गोद में बैठा एक सुंदर बच्चा।
सोनू यशराज
सद्यःप्रकाशित काव्य संग्रह – पहली बूँद नीली थी
प्रकृति के प्रति दृढ़ आस्था और सचेत व्यवहार को इंगित करती, लोक की अभिरुचि जगाती इस पुस्तक की बहुचर्चित *किताब* श्रृंखला की सभी कविताएं अनूदित । चोरी कविता छह भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई है। सार्थक संवाद व् चर्चा – वर्ल्ड टाइम्स ,कनाडा व मेलबोर्न रेडियो,हिमाचल साहित्य अकादमी। 2021 का कृति सम्मान प्राप्त ।
पूर्व में राजस्थान पर्यटन विभाग में एम्पेनल्ड ट्रेवल राइटर ,एनएसीपी सेकेंड फेज़ – राजस्थान में असिस्टेंट डायरेक्टर आई ई सी के पद पर सुशोभित रही सोनू यशराज सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हैं ,देश भर में यायावरी और गांव ढाणी की समस्याओं को बहुत करीब से देखा है।
जन्म- राजस्थान के हनुमानगढ़ में 14 जुलाई 1969
अपनी लेखनी से दुनिया को सुंदर बनाने के संकल्प , शब्दों के मध्य मौन को साधती उनकी कलम का देश भर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं,आकाशवाणी ,दूरदर्शन ,सुनो साधो ,साहित्य प्रोजेक्ट ,राजस्थान कला व् संस्कृति विभाग में प्रकाशन ,प्रसारण,वाचन होता रहा है ।
जो लिखा गया पहले ,मैं क्यूँ लिखूँ ,एक पेड़ का उधार पहले से है
सम्पर्क सूत्र : सोनू यशराज
यशस्वी भवः
C-231,सिद्धार्थ नगर ,जयपुर 302017 [email protected]
मोबाइल न.-9413677