साभार : Youtube
“असद को तुम नहीं पहचानते ताज्जुब है /
उसे तो शहर का हर शख्स जानता होगा”
हिन्दी सिनेमा को अपने जीवन के 40 वर्ष देने वाला गीतकार अपने जीवन काल में अशोक कुमार से लेकर सलमान ख़ान तक की फ़िल्मों को अपने गीतों से सजाता रहा मगर निराश, बीमार और पक्षाघात के चलते उसी साल चल बसा जब 1990 में उनके गीत कबूतर जा जा जा (फ़िल्म मैंने प्यार किया) के लिये फ़िल्मफ़ेयर सम्मान दिया गया। हिन्दी फ़िल्मों के लिये लगभग 450 गीत लिखने वाले इस गीतकार को हम असद भोपाली के नाम से जानते हैं। 
असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई 1921 को भोपाल में हुआ। उनका पूरा नाम था असदुल्लाह ख़ान। असद भोपाली भोपाल के मुशायरों में शायरी करते करते असद भोपाली के नाम से मशहूर हो गये। उनके पिता का नाम मुंशी अहमद ख़ान था और यह उनकी पहली संतान थे। असद साहब को बचपन में बाक़ायदा फ़ारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेज़ी भाषाओं की पढ़ाई करवाई गयी। 
1949 में असद भोपाली जब उस समय की बम्बई के लिये निकल पड़े तो उनकी उम्र थी 28 वर्ष। उसके बाद जो संघर्ष शुरू हुआ तो वो मरते दम तक रुका नहीं। बेहतरीन और सफल गीत लिखने के बावजूद असद भोपाली जीवन में सफल इन्सान नहीं बन पाए। 
वैसे तो बम्बई में आते ही असद भोपाली को गीत लिखने का काम मिल गया और 1949 की फ़ज़ली ब्रदर्स की फ़िल्म ‘दुनिया’ में उन्होंने दो गीत लिखे। फ़िल्म के संगीतकार थे सी. रामचन्द्र। मगर उन्हें शौहरत हासिल हुई बी.आर. चोपड़ा की 1951 की फ़िल्म अफ़साना से जिसमें अशोक कुमार (डबल रोल), वीना और कुलदीप कौर ने अभिनय किया। कहानी इंद्र सेन जौहर की थी जो कि बाद में आई. ऐस. जौहर के नाम से अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक भी बने।
यह वो ज़माना था जब हर बड़े संगीतकार की किसी ना किसी गीतकार के साथ टीम बनी हुई थी। नौशाद – शकील बदायुनी, शंकर जयकिशन- शेलैन्द्र हसरत, सचिन देव बर्मन- साहिर, मजरूह, ओ.पी. नैय्यर – एस. एच. बिहारी, मजरूह, मदन मोहन – राजेन्द्र कृष्ण, कैफ़ी आज़मी, रवि – प्रेम धवन, शकील। अभी कल्याण जी आनन्द जी और लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का ज़माना शुरू नहीं हुआ था। 
लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने अपनी पहली फ़िल्म पारसमणी में असद भोपाली से दो गीत लिखवाए। बाक़ी के गीत फ़ारुख़ कैसर और इंदीवर ने लिखे। इस फ़िल्म के गीतों ने लगभग तहलका मचा दिया। “वो जब याद आए बहुत याद आए” और “मेरे दिल में हल्की सी वो ख़लिश है जो नहीं थी” जैसे गीतों ने असद भोपाली की याद एक बार फिर फ़िल्म प्रेमियों के दिल में ताज़ा कर दी। 
असद भोपाली को अपने जीवन में श्याम सुन्दरहुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्रख़य्याम, धनी राम, मानस मुखर्जीलक्ष्मीकांत-प्यारेलालकल्याणजी-आनंदजी और हेमन्त कुमार, उषा खन्ना, राम लक्ष्मण जैसे संगीतकारों के साथ काम करने का मौका मिला।  असद भोपाली के गीतों से सजी कुछ फ़िल्में थीं मैंने प्यार किया,  पारसमणी, उस्तादों के उस्ताद, टॉवर हाउस, एक सपेरा एक लुटेरा, हम सब उस्ताद हैं, आधी रात, अपना बना के देखो, छैला बाबू।
निजी जीवन में असद भोपाली साहब ने दो विवाह किये और उनके कुल मिला कर नौ बच्चे थे।
असद भोपाली की समस्या यह रही कि उन्हें अधिकांश ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड की फ़िल्मों के लिये अधिक गीत लिखने को मिले। उन्हें कभी भी राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनन्द, शम्मी कपूर, सुनील दत्त, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों के लिये गीत लिखने का मौक़ा नहीं मिला। उनके हीरो रहे – महीपाल, फ़िरोज़ ख़ान, देव कुमार, दारा सिंह, किशोर कुमार, जगदीप, सुबीराज, प्रदीप कुमार आदि आदि। शायद उनके सबसे बड़े हीरो रहे सलमान ख़ान वो भी उनकी अंतिम फ़िल्म में। मगर उस समय तक सलमान ख़ान सुपर स्टार नहीं बने थे। 
यही वजह है कि उनके कई सुपरहिट गीत उन फिल्मों के हैं, जो बॉक्स ऑफ़िस पर नाकामयाब रहीं। फिल्म भले ही नहीं चलीं, लेकिन उनके गाने खूब लोकप्रिय हुए। असद भोपाली के ऐसे ही कुछ ना भुलाए जाने वाले गीत हैं:-
असद भोपाली के श्रेष्ठ गीत
    1. वो जब याद आए, बहुत याद आए (पारसमणी)
    2. ऐ मेरे दिले नादान, तू ग़म से ना घबराना (टॉवर हाउस)
    3. सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे (उस्तादों के उस्ताद)
    4. अजनबी, तुम जाने पहचाने से लगते हो (हम सब उस्ताद हैं) 
    5. आप की इनायतें, आप के करम (वंदना)
    6. हम तुम से जुदा होके, मर जाएंगे रो रो के (एक सपेरा एक लुटेरा)
    7. दिल दीवाना बिन सजना के माने ना (मैंने प्यार किया)
    8. ईना मीना डीका, डाय डामा नीका (आशा) 
    9. दिल की बातें, दिल ही जाने (रूप तेरा मस्ताना)
    10. दिल का सूना साज़… (एक नारी दो रूप) 
    11. ‘हम कश्मकश-ए-ग़म से गुज़र क्यों नहीं जाते’ (फ्री लव)। 
असद भोपाली के लिखे गीत ‘दिल दीवाना बिन सजना के माने ना’ का एक दृश्य (साभार : NDTV)
उनका एक नहीं, कई ऐसे गीत हैं, जिसमें शायरी अलग ही नजर आती है। शायद इसीलिये असद भोपाली ने अपनी साहित्यिक शायरी लिखनी कभी बन्द नहीं की। उनके भीतर का शायर मरने को तैयार नहीं था। उनकी शायरी का केवल एक ही संकलन प्रकाशित हुआ – ‘रोशनी, धूप, चांदनी’।  जिसमें उनकी ग़ज़लें शामिल हैं।
असद भोपाली की मुहब्बत और जुदाई के रंग में डूबी हुई कुछ लोकप्रिय ग़ज़लें हैं-  ‘‘कुछ भी हो वो अब दिल से जुदा हो नहीं सकते /  हम मुजरिम-ए-तौहीन-ए-वफ़ा हो नहीं सकते / इक आप का दर है मिरी दुनिया-ए-अक़ीदत / ये सज्दे कहीं और अदा हो नहीं सकते।’’, और  ‘‘जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए / बार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए / ऐ मिरे वादा-शिकन एक न आने से तिरे / दिल को बहकाने कई तल्ख़ तवहहुम आए।’’
एक तो असद भोपाली की फक्कड़ तबीयत और दूसरा परिवार का ख़र्चा चलाने के लिये फ़िल्मी दुनियां में उनकी व्यस्तता और संघर्ष, बस इसीलिये उनकी शायरी किताबों के रूप में अधिक नहीं दिखाई देती।
जब इस बारे में असद भोपाली के पुत्र ग़ालिब असद भोपाली से उनके पिता की शायरी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया, उन दिनों हम मुंबई में नालासोपारा के जिस घर में रहा करते थे, वह पहाड़ी के तल पर था। वहाँ मामूली बारिश में भी बाढ़ कि स्थिति पैदा हो जाती थी। ऐसी ही एक बाढ़ अब्बा की सारी शायरी बहा कर ले गयी। 
असद भोपाली ने इस मौक़े पर जो कहा वो उनके दिल के दर्द को पूरी शिद्दत से बयां करता है, ‘‘जो मैं बेच सकता था मैं बेच चुका था, और जो बिक ही नहीं पाई वो वैसे भी किसी काम की नहीं थी।’’ एक ऐसा शायर जो फ़िल्मी दुनियां के व्यवहार से टूट चुका था, उसने एक ही वाक्य में अपनी ज़िन्दगी का पूरा फ़लसफ़ा बयां कर दिया था।
हिन्दी सिनेमा के इस सफल गीतकार ने असफल ज़िन्दगी जीते हुए 9 जून 1990 को अपनी आख़री साँस लेते हुए इस संसार से विदा ली। उनका अपना ही गीत उनकी याद दिलाता है और हम बेसाख़्ता कह उठते हैं – वो जब याद आए, बहुत याद आए।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

3 टिप्पणी

  1. आपने बहुत ख़ूबसूरती से असद जी को याद किया, उनके नाम की “इक राह मेरे शहर में है “जिसपर से गुज़रते हुए कोई भी
    शायर असद होने का ख़्वाब बुनता है ।
    प्रभा मिश्रा
    भोपाल
    भारत

  2. वाक़ई असद होना आसान नहीं था। असद भोपाली के दर्द और शायरी से परिचय कराने के लिए दिली शुक्रिया।
    मेरे पसंदीदा नग़मों में हमेशा से शामिल है….. “वो जब याद आये”

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