आमतौर किसी वैक्सीन को बनाने में दो से पांच साल का वक्त लगता है। इसके बाद वैक्सीन इस्तेमाल करने से पहले सर्टिफिकेशन के लिए छह चरणों में टेस्ट किया जाता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक ये छह चरण एक्सप्लोरेट्री, प्री-क्लिनिकल, क्लिनिकल डेवलपमेंट और इसके बाद के तीन चरण में मानव पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है।

यह संपादकीय लिखे जाने तक विश्व भर में 1,41,03,810 (एक करोड़ इकतालीस लाख तीन हज़ार आठ सौ दस) लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। 83,93,723 लोग इलाज से ठीक हुए हैं औऱ लगभग 5,95,914 लोगों की मृत्यु हुई है। ज़ाहिर है कि हर देश के प्रत्येक नागरिक के दिमाग़ में केवल एक ही बात है कि इस बला के लिये वैक्सीन कब तैयार होगी?
भारत के लिये ये आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं – संक्रमित लोग 10,40,457, ठीक हुए 6,54,078 और मृत्यु 26,285। यानि कि भारत में मृत्यु दर विश्व के अन्य देशों के मुक़ाबले ख़ासी कम है।
अमरीका, ब्रिटेन, इटली, इज़राइल, रूस और भारत में इस विश्वमारी के लिये वैक्सीन बनाने की पुरज़ोर कोशिशें की जा रही हैं। भारतीय दवा कंपनी जायडस कैडिला ने कहा है कि कोविड-19 के वैक्सीन बनाने के लिए मानव परीक्षण शुरू कर दिया गया है। वॉलिंटियर्स को पहले और दूसरे चरण के लिए कोरोना वायरस से बचाव का संभावित टीका विभिन्न स्थानों पर दिया जा रहा है। 
रूस ने हाल में घोषणा की है कि उसने कोरोना वायरस का वैक्सीन बनाने की दिशा में मानव परीक्षण को सफलतापूर्वक पूरा किया है। यही कारण है कि इस दौड़ में रूस आगे निकलता लग रहा है, हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, चीन, इज़राइल और ऑस्ट्रेलिया कई संभावित वैक्सीन पर कार्य कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) ने कोविड-19 पर बयान देते हुए कहा कि वह दुनिया भर के देशों को 2 अरब से ज़्यादा टीके उपलब्ध करा देगा, लेकिन ये अभी तुरंत नहीं होने जा रहा है… विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ ये टीका 2021 के अंत से पहले दुनिया को मिलेगा। इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन बड़ी तैयारी कर रहा है। मगर साथ ही एक चेतावनी भी दी है कि इसके लिये उसे अतिरिक्त धनराशि की आवश्यक्ता पड़ेगी।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका का प्रायोगिक वैक्सीन क्लीनिकल टेस्ट के अंतिम चरणों में प्रवेश करने वाले पहला वैक्सीन है। यहां टेस्ट किया जाना है कि ये वायरस से संक्रमित होने से बचाने में कितना अच्छा काम करता है।
ऑक्सफोर्ड के प्रमुख प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड ने कहा, “क्लीनिकल ​​अध्ययन बहुत अच्छी तरह से प्रगति कर रहा हैं और हम अब यह मूल्यांकन करने के लिए अध्ययन शुरू कर रहे हैं कि वैक्सीन बुजुर्गों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को कितनी अच्छी तरह से प्रेरित करता है, और यह परीक्षण करने के लिए कि क्या यह व्यापक आबादी में सुरक्षा प्रदान कर सकता है”।  यदि परीक्षण सफल होता है, तो ऑक्सफोर्ड वैक्सीन समूह इस वर्ष के अंत तक कोविड -19 वैक्सीन लॉन्च करने की उम्मीद करता है। 
आमतौर किसी वैक्सीन को बनाने में दो से पांच साल का वक्त लगता है। इसके बाद वैक्सीन इस्तेमाल करने से पहले सर्टिफिकेशन के लिए छह चरणों में टेस्ट किया जाता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक ये छह चरण एक्सप्लोरेट्री, प्री-क्लिनिकल, क्लिनिकल डेवलपमेंट और इसके बाद के तीन चरण में मानव पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है।
किसी भी वैक्सीन को पहले जानवरों पर टेस्ट किया जाता है। उसके असर देखने के बाद ही इन्सानों पर टेस्ट करने की बारी आती है। मगर इन्सानों पर वैक्सीन टेस्ट करने के भी तीन चरण होते हैं। पहले चरण में वैक्सीन का इस्तेमाल चयनित समूह के गिने चुने लोगों पर किया जाता है। वैक्सीन के ज़रिए व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में 90 दिन लग जाते हैं।
दूसरे चरण में अधिक लोगों पर वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में 180-240 दिन लग जाते हैं। इस चरण में यह देखा जाता है कि दवा का असर बीमारी पर कितना प्रभावशाली है। इसमें सावधानियां भी बरती जाती हैं कि कहीं कोई विपरीत प्रतिक्रिया न हो। 
कोरोना विश्वमारी के चलते इस अवधि को काफ़ी हद तक कम किया जा रहा है। फिर अंतिम चरण में वैक्सीन को एक साथ हजारों लोगों पर इस्तेमाल किया जाता है। इस समय यह टेस्ट किया जाता है कि इम्यून सिस्टम कमज़ोर अथवा अधिक होने पर वैक्सीन किस तरह काम करता है। इस प्रक्रिया में भी तकरीबन 200-240 दिन लग जाते हैं। जब वैक्सीन इस चरण में सफल हो जाती है तभी उसे मैन्युफ़ैक्चरिंग के लिये भेजा जा सकता है। 
अमरीका, ब्रिटेन, रूस, इज़राइल और चीन सभी इस प्रयास में लगे हैं कि जल्दी से जल्दी कोविद-19 के लिये वैक्सीन तैयार कर ली जाए।… उम्मीदें बहुत हैं… बस देखना है कि ख़ुशख़बरी किस ओर से आती है।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

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