बारिश से ठीक पहले वह आता था।डगमग-डगमग करते,संभलते-संभालते दर्जनों छातें पीठ पर लादे।वही एक था जो इतने रंगबिरंगे बांस के ,पत्तों के छातें बनाता और बेचता था ।वह छातें सिर्फ़ और सिर्फ़ स्त्रियों को बेचता था। छतरियों के बंडल के साथ वह एक झोला भी अपने दायें कंधे पर लटकाये रहता था और जो स्त्री उसका मन मोह लेती उसे वह छतरी के साथ पत्थर के चिकने सुंदर खिलौने देकर जाता था।
जिन्हें भी वे खिलौने मिलें उन्हें सुंदर स्वस्थ शिशु सालभर के भीतर प्राप्त हुएं।उसने कभी अविवाहित युवतियों को नहीं बेची अपनी छतरियाँ, न ही उन्हें कभी उपहार में दिए खिलौने।
छाते को पहाड़, झील और जंगल वाले येनपक कहते थें और उस छोटे से प्यारे आदमी को येनपक वाला जादूगर। जादूगर इसलिए कि हर स्त्री के मन में वह बस सा गया था ,सबके पति ‘येनपक वाला’ कहकर अपनी-अपनी पत्नियों से मनोहार करते थे।
स्त्रियां बारिश के उतरने से पहले उसका इंतज़ार शुरू कर देती थीं।कितने भी पैसै दे दो ,वह पुरूषों को छाते नहीं बेचता था।वह कहता था :भीम देव बारिश लाते हैं और स्त्रियों से बहुत प्रेम करते हैं। वे बड़े नटखट हैं और उन्हें स्त्रियों से फुहारों वाली ठिठोली करना ख़ूब भाता है। स्त्रियों के खरीदे छाते टूट न जाएं, पुराने न हो जाएं इस चिंता में भीम ज़रूरत से ज्यादा बारिश नहीं करते और जंगल-पर्वत-पहाड़ डूबने से बच जाते हैं।
पुरूषों की खरीदी चीज़ों का कोई मोल नहीं भीम के सामने।पुरूष का वश चले तो वे अपनी पत्नियों को भी जुए की दांव पर लगा दें फिर दूसरी चीजों को वे कितना महत्व देंगे, ज़रा सोचो?
स्त्री जतन से बुनती या खरीदती हैं छाता ।वे बचा-बचा कर रखती हैं एक-एक आना और पैसे जोड़-जोड़ कर खरीदती हैं छाता।वह छाता जो धूप और बारिश से रक्षा करता है उनकी,उनके बच्चों की और उनके गोद में बैठे मेमनों और पंक्षियों की।
लोकतक झील के पास था उस बूढ़े छाते वाले का झोपड़ा था।झील के किनारे चांदनी रात में बैठकर वह पुलही बजाता था ।इतना सुंदर और मधुर की अंडे धीरे-धीरे फूटते और नन्हें सुंदर चूज़े निकलकर झांकने लगते, द्रौपदी माला की कलियां चटक उठती, बांस के फूल मद्धम ताल पर झरते …
झील उसकी मां थी और बांस के वन उसके पिता।किसी चांदनी रात में एक सुंदर टोकरी में बहता हुआ वह बांस के वन से टकराया और सुबह एक बुझी आंखों वाली सुंदर स्त्री उसे उठाकर ले आई।भात के माड़ को पिला पिला कर उसे बड़ा किया।
एक बार उसे एक सुनहरी बाल वाली लड़की से प्रेम हो गया।पूरे इलाके में बस उसके ही बाल सुनहरे थें ।लोग कहते हैं उसकी परदादी की मां अंग्रेज़ थी जिसके बाल सुनहरे थें।उस कबीले में पहली बार किसी ऐसी लड़की का जन्म हुआ था जिसके बाल सुनहरे थें।वह सबके आंखों में भगजोगनी सी भुकभुकाती रहती थी।
एक दिन वह सुनहरे बालों वाली लड़की गायब हो गई।लड़की क्या गायब हुई, लोग कहते हैं पुलही वाला वैरागी हो गया और छाते बुनने और बेचने लगा।
राग- रौशनी से विराग-छाया तक की दूरी नाप चुका वह बूढ़ा वैरागी …
वैरागी कैसा?
उसे हर स्त्री से प्रेम था
हर स्त्री को उससे छाया मोलना पसंद था
हर स्त्री को उसके नाम की उलाहना सुनना पसंद था
हर स्त्री बारिश के आने से पहले उससे मिलना चाहती थी
हर स्त्री पिछली बारिश से अब तक के किस्से उसे सुनाना चाहती थी और अपने जन्मे शिशु को उसे दिखाना चाहती थी।
वह हर बार एक ही स्त्री को प्रस्तर के खिलौने देता था वह उस मौसम की मां होती थी जो अगले वर्ष इस मौसम के फिर से आने के ठीक पहले तक लोरियां गाकर रात गुजारती थी।
वह साठ वर्षों से हर साल बारिश से पहले आता है।
वह वृद्ध हो चुका है मगर पहले से ज़्यादा सुंदर और निश्चल…
एक दिन बारिश से ठीक पहले एक और छाते वाला आया।वह बेहद सुंदर और युवा था।सभी स्त्रियां उसे घेरकर खड़ी हो गई।उसके पास भी झोले में थी कई मूर्तियां और गहने। ढेर सारे खुडंगयाई (कंगन) और खुबोमयाई ( पायल)।उसने ख़ूब सारे छाते बेचें और कई स्त्रियों को दी मूर्तियाँ और गहने ।वह बहुत मनमोहिनी बातें करता था और उसकी मूर्तियां बहुत चिकनी और सुघड़ थीं।
अब किसी को बूढ़े छाते वाली की प्रतीक्षा नहीं थी।एक दिन पहाड़ियों से उतरकर बूढ़ा छाते वाला आया।उसने आवाज़ लगाई, कोई नहीं आया।सबके पास नई छतरी थी ,सबों ने उसे अनदेखा और अनसुना कर दिया।वह लौटकर देर रात झील के पास गया।उसने भोर होने तक लगातार पुलही बजाई।आज की पुलही में कौन सा दर्द था कि अमावस्या की रात में में पूर्ण चांद निकल आया।झील में असंख्य सुनहरी मछलियां तैर उठीं।लगा बूढ़े छाते वाले की प्रेमिका के सुनहरे बाल चारो तरफ तैर रहे हैं।झील झिलमिला उठी।
भोर में भयंकर बारिश हुई । स्त्रियों ने अपने नये छाते निकाले वे घर से बाहर आई और छाते धीरे-धीरे गल ग ए।वे बर्फ के छाते थें।स्त्रियाँ दौड़कर अपने नये खिलोने देखने गई।वे चिकने सुंदर खिलोने गल चुके थें, वे भी बर्फ के निकले।वह नया छाते वाला काला जादूगर था…
साल भर का जोड़ा गया पाई पाई बर्बाद…
स्त्रियां मूसलाधार बारिश में भीगती रहीं
और अचानक सब पुलही की आवाज़ की ओर बढ़ने लगीं ,वे धीरे-धीरे झील की तरफ़ मुड़ीं।जैसे-जैसे वे झील की तरफ़ बढ़ती जाती थीं वैसे-वैसे ही बारिश और तेज होती जाती थी।जब वे झील के पास गईं तो देखा वहां सैकड़ों सुंदर छतरियां पड़ी थी।झील से पुलही की आवाज़ आ रही थी।दूर-दूर तक कोई नहीं था। स्त्रियों ने एक-एक छतरियां उठा ली और गांव लौट आईं।ये उनका पहला बिना मोल चुकाया गया छाता था और बूढ़े छतरी वाले के द्वारा उन्हें मिला अंतिम छाता भी।
वे छाता ओढ़कर घर की तरफ बढ़ी ,बारिश धीमी होती गई।पुलही की आवाज़ गुम होती चली गई।
स्त्रियां घर आकर बूढ़े छाते वाले के दिए खिलौने तलाशने लगी ,वे खिलौने भी उन्हें कहीं नहीं मिले।सब के सब विलुप्त हो गये थें।सब स्त्रियां आपस में एक दूसरे से हफ़्ते भर पूछती रही :
उनके खिलौने मिले कि नहीं?
किसी को कोई खिलौना नहीं मिला।
एक दिन गोधूली की बेला में पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर स्त्रियां खिलौने के लुप्त हो जाने के रहस्यों पर चर्चा कर रही थीं कि उनकी नज़र उनके खेलते कूदते बच्चों पर पड़ी। उन्हें उनके खिलौने मिले गये,वास्तव में वे कभी नहीं खोएं थे…सभी स्त्रियां एकसाथ मुस्कुरा उठीं।
बूढ़ा छाते वाला झील हो गया ,उसका देह झील का पानी।सुनहरी बालों वाली लड़की की हर कोशिका मछली बन गई जो उम्र भर झील में समायी रही।
छाते ,गोबर छत्ते बन गए और मूर्तियां बांस-वन के जीव। स्त्रियों के आंखों से निकली आंसू की लरी कोप्पू के फूल…
आज भी बारिश से पहले झील के चारों तरफ़ गोबर छत्ते उग आते हैं जिसे हर विवाहित स्त्री तोड़ कर लाती है और अपने घर में खिलौनों की तरह सजा देती हैं।
उस गांव के लोगों ने कभी भी झील में मछलियां नहीं पकड़ी ।बूढ़े छाते वाले की याद में बारिश के आने से ठीक पहले वे लोग रंग बिरंगे फूल झील में बहा आते हैं ।तब उन सभी लोगों के हाथों में छतरियाँ होती हैं और स्त्रियों की आंखों में होता है आंसू…