Saturday, July 27, 2024
होमग़ज़ल एवं गीतमुहम्मद आसिफ अली की ग़ज़लें

मुहम्मद आसिफ अली की ग़ज़लें

1
वाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी
बुढ़ापे के लिए मुझको जवानी चाहिए थी
समंदर भी यहाँ तूफ़ान से डरता नहीं अब
फ़ज़ाओं में सताने को रवानी चाहिए थी
नज़ाकत से नज़ाकत को हरा सकते नहीं हैं
दिखावट भी दिखावे से दिखानी चाहिए थी
बचाना था अगर ख़ुद को ज़माने की जज़ा से
ख़ला में ज़िंदगी तुझको बितानी चाहिए थी
लगा दो आग हाकिम को जला डालो ज़बाँ से
यही आवाज़ पहले ही उठानी चाहिए थी
हुकूमत चार दिन की है, अना किस काम की फिर
तुझेआसिफ़सख़ावत भी दिखानी चाहिए थी
2
हिदायत के लिए मैं कुछ बताना चाहता हूँ सुन
निज़ामत के लिए मैं कुछ सुनाना चाहता हूँ सुन
पड़ेगी ख़ाक मुँह पर और दामन चीख़ जाएगा
नज़ाकत के लिए मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ सुन
सज़ा दौर-ए-फ़लक की झेलना बस में नहीं तेरे
ख़यानत के लिए मैं कुछ जताना चाहता हूँ सुन
ज़मीं का रंज भी बर्बाद करना जानता है अब
‘अदावत के लिए मैं कुछ दयाना चाहता हूँ सुन
निशाँ यूँ ज़ख़्म का दे दूँ भला कैसे तुझे मैं अब
फ़ज़ाओं के लिए मैं कुछ ख़ज़ाना चाहता हूँ सुन
सख़ावत भी दिखानी चाहिए ‘आसिफ़’ कभी तुझको
ज़माने के लिए मैं कुछ ज़माना चाहता हूँ सुन

3

ज़िन्दगी से मुझे गिला ही नहीं
रोग ऐसा लगा दवा ही नहीं
क्या करूँ ज़िन्दगी का बिन तेरे
साँस लेने में अब मज़ा ही नहीं
दोष भँवरों पे सब लगाएंँगें
फूल गुलशन में जब खिला ही नहीं
कौन किसको मिले ख़ुदा जाने
मेरा होकर भी तू मिला ही नहीं
मेरी आँखों में एक दरिया था
तेरे जाने पे वो रुका ही नहीं
मुहम्मद आसिफ अली
मुहम्मद आसिफ अली
कवि और लेखक। काशीपुर, उत्तराखंड के निवासी। साथ ही, Youtreex Foundation के संस्थापक और सीईओ और Prizmweb Technologies के सह-संस्थापक हैं।
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest