वह हर दिन संपादकीय लिखने के बाद थोड़ी देर के लिए चश्मे को खोलकर पास की टेबुल पर रख देती है। मोबाइल में बेंजामिन की सेव करके रखी गई तस्वीर को देखती है और लगातार उसकी आँखों से आँसू बहता रहता है। अचानक से कोई फ़ोन आ जाता है या कोई दरवाज़े पर दस्तक देता है।वह तनकर कुर्सी पर बैठ जाती है। झट से हथेलियों से आँसू को पोंछती है और टीसू को हाथ में पकड़े कहती है :
कम इन प्लीज़।
वह रोज़ समाचार बताता है। दुनिया भर के समाचार सुनाते वक़्त वह ख़ुद के दिले-हाल से आजकल‌ बेख़र नहीं हो पाता है।
समाचार पढ़कर निकलता है तो न्यूज़ रूम में घुसते ही बहुत-सी आँखें पूछती हैं –
तुम आजकल काली कमीज़ नहीं पहनते?
वह जब इस प्रश्न को अनसुना कर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तब उसके मन में रेशम के धागे लिपट जाते हैं।हर बढ़ते कदम के साथ ,वे धागे पहले से कहीं अधिक टाइट और सख़्त हुए जाते हैं।मन हुक-हुक कर, सुबक-सुबक कर टहक उठता है।वह बैग उठाकर बाहर आता है।एक सिगरेट धुँकता है और सीधे कार में बैठ जाता है।
उस एक रात के बाद उसकी काली कमीज़ कहीं चली गई।
क्या वह रेचल  के पास चली गई।उसने उसे अपना काला कुर्ता समझकर अपने कपड़ों में रख लिया होगा।
रेचल हर दिन प्राइम टाइम देखने के लिए टी वी खोलती है। बेंजामिन की खड़ी नाक,चाँदी बाल ,चाँद हँसी और कलम को थामे सुंदर उंगलियाँ उसके जेहन में घुमड़-घुमड़ कर शोर मचाती हैं।बेंजामिन समाचार कहता जाता है ।रेचल कुछ नहीं सुनती। बेंजामिन सबकुछ कहता है देश‌ की ख़बरें,दुनिया की ख़बरें,हर तरह की बातें।रेचल प्राइम टाइम ख़त्म होते ही टी वी बन्द कर देती है।फिर हर रात वह यही सोचते हुए गुज़ार देती है कि बेंजामिन ने काली कमीज़ क्यों नहीं पहनी?
रेचल अपना काला कुर्ता खोज-खोजकर बेहद परेशान हैं।ज़रूर ही वह बेंजामिन की काली कमीज़ के साथ चली गई होगी।
बेंजामिन रेचल के संपादकीय और सोशल प्रोफाइल पर सूक्ष्म नज़र रखता है।वह किस मंच पर क्या बोल रही है और क्यों बोल रही है? से ज़्यादा वह इस बात से परेशान हैं कि रेचल ने काला कुर्ता पहनना क्यों छोड़ दिया?
रेचल सोचती है बेंजामिन ने उससे प्रेम तोड़ लिया।वह उसके बारे में नहीं सोचता होगा। बेंजामिन समझता है कि रेचल ने उसे छोड़ दिया वह उसके बारे में नहीं सोचती होगी।
दोनों नहीं जानते प्रेम से स्थाई कुछ भी नहीं,न यह ब्रह्मांड,न इस जड़-चेतन की उपस्थिति,न ही समय की व्याप्ति।जिससे मन जुड़ जाए उससे जुड़ा ही रहता है।हम आदतानुसार इस सच को नकारने के लिए सभी प्रकार के स्थूल प्रयासों में  लगे रहते हैं।हम एक दूसरे से पहले की तरह बातें करना छोड़ देते हैं।हमें लगता है जो बात करने की आदत लग गई तो घर वालों को ख़बर हो जाएगी फिर महाभारत… क्योंकि हम किसी न किसी के कुछ न कुछ तो लगते ही है न?इस डर से हम बात करना छोड़ देते हैं।जब बात करने का मन करे तो छटपटाहट महसूस होती है।फिर रेचल सोचती है :कितना निर्दयी है मुझसे बातें नहीं कर रहा।कम से कम पूछ तो ले कि मैं कैसी हूँ?
बेंजामिन सोचता है :कल तक हर दिन इतनी सारी बातें, इतना प्यार ,आज एक बार हाई (Hi)भी नहीं कहा।कोई एक दिन में ऐसे कैसे बदल सकता है?
दोनों के प्रश्न गुज़रते दिनों के साथ अदला-बदली कर लेते हैं।वहीं प्रश्न रेचल के मन में उठता है जो प्रश्न कभी बेंजामिन के मन में  उठता था।यह उसी सघन प्रेम की छवियां हैं जो दोनों में एक ही है।यह वही भावुकता और संवेदना है जो दोनों में एक-सी हैं। दोनों भिन्न कहाँ हैं ?एक ही तो हैं।प्रेम की यही तो महिमा है,रूह की ऐसी ऐंट-फेंट कर देता है कि पता ही न चले एक-दूसरे का अंश कहाँ है,एकरंगा कर देता है सबकुछ।दोनों के मन, चित्त,समझ और संवेदना को। दोनों का चित्त एक- सा हो जाता है।
जो प्रश्न रेचल के मन में उठते थे, उन्हीं प्रश्नों से आज बेंजामिन का मन बहुत भारी है।
प्रेमियों के बीच होती है प्रश्नों की अदला-बदली। प्रेमियों के बीच होती है चिंताओं की अदला-बदली। प्रेमियों के बीच होती है हुक की अदला- बदली। प्रेमियों के बीच जो स्थिर रहता है,वह होता है प्रेम ।
साझापन बचा रह जाता है
एक ही बारिश में दो जगहों पर भीगते हुए
एक ही आकाश तले ,एक ही समय आकाश ताकते हुए
एक ही समय एक दूसरे की खैरियत मांगते हुए
एक ही समय चाय पीते हुए
एक ही समय में अलग-अलग जगहों पर उदास होने से…
रेचल का मन बेंजामिन से कहता है:
“ऐसा करो तुम आकाश ताकना छोड़ दो
मैं बारिश में भीगना छोड़ देती हूँ
तुम उदास होना छोड़ दो
मैं चाय पीना छोड़ देती हूँ
मैं और तुम एक साथ दुआ और खैरियत मांगना छोड़ देते हैं
कुछ भी साझा नहीं बचेगा हम दोनों बीच”
दोनों आपस में अब भी बातें कर सकते तो यह उदासी और यह हुक उनके हिस्से कभी नहीं आती मगर उन्हें  डर लगता है परिवार से, समाज से, धर्म-देवता से और सबसे ज़्यादा किसी बिगाड़ से।
वे प्रेम की रक्षा करना नहीं जानते।उसका गोपन-संपादन और संतुष्ट होकर पृथ्वी पर खुश रह पाने का सूत्र उन्हें नहीं पता …
वह ठुड्डी पर उंगलियाँ रखकर,हथेली फैलाकर बहुत-सी बातें कहता है,वह साक्षात्कार लेता है, राजनीति पर बोलता है।वह कई रंग की फार्मल कमीज़ पहनता है।कभी आसमानी ,कभी सफेद, कभी हल्की बैंगनी,कभी राख रंग की,कभी गहरी नीली और आसमानी पर नीले रंग की चेक वाली भी,कभी कोट,कभी शेरवानी,कभी-कभी जैकेट और बंडी भी ।उसने भूरी कमीज़ भी पहनी जिस पर धारियां थी।मगर प्रश्न फिर भी वही कि उसने काली कमीज़ क्यों नहीं पहनी?
वह आज भी तेजतर्रार संपादक और सोशल एक्टिविस्ट हैं।वह साड़ी पहनती हैं,सलवार कमीज़ भी,सभी रंगों की साड़ियां,सभी रंगों के सलवार और कुर्ते भी।वह बच्चों के अपहरण और उनके अंगों की तस्करी पर सरकार को घेरती है।वह बाल-वेश्यावृत्ति में झोंके गये बच्चियों के लिए पुलिस से भिड़ंत करती है।वह गली-गली में रतजग्गे कर फुटपाथ पर रह रहे लोगों के सुख दुःख की टोह लेती है उन तक मदद पहुँचाती है।वह सबकुछ करती है ,क्या वह बेंजामिन को याद करती है?वह आख़िर क्यों नहीं पहनती काला कुर्ता?
बेंजामिन के अलमीरे के नीचे की टाइल के नीचे एक काठ का डिब्बा है जिसे वह मध्यरात्रि में खोलता है और उससे काला कुर्ता निकालकर पहन लेता है।वह आईने में खुद को देखता है और भोकार पारकर रोता है।नि:शब्द ,मूक रूदन ,मुँह फाड़कर रोता है मगर बिना आवाज़ निकाले।
रेचल की किताबों के बीच एक बड़ा सा डिब्बा है जिसके भीतरी तह के भीतर एक काग़ज़ का थैला है। सुनसान समय में वह उस थैले से काली कमीज़ निकालकर  पहन लेती है।
न वह कुर्ता रेचल का है जिसे बेंजामिन ने एकांत में पहन रखा है फिर उस कुर्ते से रेचल के देह की गंध क्यों आ रही है?
न वह कमीज़ बेंजामिन की है जिसे रेचल ने विरह के एकांत में जी सकने के लिए पहन रखा है फिर उस कमीज़ से बेंजामिन के डियो की गंध क्यों आ रही है।
समय के पास उत्तर है,उसने देखा है :
रेचल ने अपने कुर्ते को कतरकर कमीज़ बना लिया।उस कुर्ते से बेंजामिन के डियो की गंध आ रही थी जब-जब वह गंध समय के साथ हल्की होती गई  तो रेचल ने बाज़ार से
बिल्कुल वही डियो ख़रीदीं और कुर्ते पर वह समय-समय पर डियो छिड़कती रहती ताकि उसमें वह बेंजामिन वाली गंध बनी रहे।जितना जतन गंध को बचाने,कुर्ते को छिपाने में लगाती है।उससे बहुत कम जतन से वह उस अद्भुत रिश्ते को बचा सकती थी।तब शायद वह बेचैनी और पागलपन की जगह पर शांत और सुकून की ज़िंदगी जी सकती थी।
समय के पास उत्तर है,उसने देखा है :
बेंजामिन ने अपने कमीज़ में काले कपड़े जोड़कर उसे कुर्ता बना लिया है।जिस जतन से उसने पहली बार अपने जीवन में सूई से सिलाई की और जिस जतन वह उस कुर्ते को छिपाकर रखता है उससे कम कोशिश से ही वह उस रिश्ते को बरकरार रख सकता था जिसे प्रेम की जगह और भरोसे का आश्वासन था।
मगर नहीं दोनों परेशान ,पागल और बिना आवाज़ निकाले फफक-फफक कर रोते रहते हैं।कभी झरने के नीचे, कभी मसालों  के डिब्बों को पकड़कर ,कभी कार चलाते,कभी वाॅश रूम में…
हमारा डर ,हमारी शंका कितने दुःख को निमंत्रण देती है मगर चाहकर भी प्रेम की विदाई नहीं कर पातीं।
जब रेचल के पति पूछते हैं:
मैडम !आजकल आप अपना फेवरेट कुर्ता नहीं पहनती?
तो वह‌ धीमे से कहती हैं :
मुन्नार में खो गई।
जब बेंजामिन की पत्नी पूछती है:
साहब की काली कमीज़ कहाँ गई?
तो बेंजामिन कहता है:
मुन्नार में खो गई।
खोया न तो रेचल का कुर्ता,
खोई न तो बेंजामिन की कमीज़,
खोया तो प्रेम भी नहीं,
जो जबरदस्ती भुलाने की कोशिश की गई
वह एक-दूसरे की सुंदर उपस्थिति थी
बीतते समय के साथ एकांत में बेंजामिन काले कुर्ते पर बड़ी लाल बिंदी और काली विग लगाने लगा।आईने में खुद को ऐसे रूप में देखकर कभी रोता और कभी जोर-जोर से हँसता है।
बीतते समय के साथ रेचल ने बाल कटवाकर बेंजामिन की तरह कर लिए और उसी की तरह के कपड़े पहनने लगी।
दो सामान्य लोगों को असामान्य बनते देखकर समय पूछता है:
क्या प्रेम को बचा पाना इससे अधिक मुश्किल था…
दूर से आवाज़ आ रही है :
न्यूज़ रूम से मैं बेंजामिन जैकब !
आज के एडिटोरियल में मैं रेचल नेकपाल!
1 जनवरी 1982 को मुज़फ़्फ़रपुर में जन्मी डाॅ.अनामिका अनु को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार (2020), राजस्थान पत्रिका वार्षिक सृजनात्मक पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ कवि, प्रथम पुरस्कार, 2021) और रज़ा फेलोशिप (2022) प्राप्त है। इन्हें 2023 का ‘महेश अंजुम युवा कविता सम्मान’ (केदार न्यास) मिल चुका है।उनके प्रकाशित काव्यसंग्रह का नाम है ‘इंजीकरी’ (वाणी प्रकाशन,रज़ा फाउंडेशन)है। उन्होंने ‘यारेख : प्रेमपत्रों का संकलन’ (पेंगुइन रैंडम हाउस)का सम्पादन करने के अलावा ‘केरल से अनामिका अनु : केरल के कवि और उनकी कविताएँ ‘का भी सम्पादन किया है। इनकी किताब ‘सिद्धार्थ और गिलहरी’ को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है जिसमें के सच्चिदानंदन की इक्यावन कविताओं का अनुवाद है। उन्होंने हिंदी में महत्वपूर्ण शोधपरक वैज्ञानिक लेख लिखे हैं और डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जीवनी लिखी है।
उनकी रचनाओं का अनुवाद पंजाबी,मलयालम, तेलुगू मराठी,नेपाली,उड़िया,अंग्रेज़ी,कन्नड़ और बांग्ला में हो चुका है।
वह एमएससी (विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक) और पीएच डी (इंस्पायर अवॉर्ड, डीएसटी) भी हैं। अनामिका अनु की रचनाएँ देशभर के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और मीडिया में देखने, पढ़ने और सुनने को मिलती हैं।
उनसे सम्पर्क करने के लिए ई-मेल आईडी है : 
resistmuchobeylittle181220@gmail.com

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