Saturday, July 27, 2024
होमकवितासरिता सैल की कविताएँ

सरिता सैल की कविताएँ

1) युद्ध
युद्ध के ऐलान पर
किया जा रहा था
शहरों को खाली
लदा जा रहा था बारूद
तब एक औरत
दाल चावल और आटे को
नमक के बिना
बोरियों में बाँध रही थी
उसे मालूम था
आने वाले दिनों में
बहता हुआ आएगा नमक
और गिर जाएगा
खाली तश्तरी में
वह नहीं भूली
अपने बेटे के पीठ पर
सभ्यता की राह दिखाने वाली
बक्से को लादना
पर उसने इतिहास की
किताब निकाल रख दी
अपने घर के खिड़की पर
एक बोतल पानी के साथ
क्यों कि,
यह वक्त पानी के सूख जाने का है..!
2) विस्थापन
विस्थापितों के कोलाहल से
भरी पडी है
महानगरों की गलियां,
चौराहे, दुकानें
सोंधी मिट्टी सी देह
सन रही है काले धुँऐं से
थके हुए मन को
फुर्सत नहीं लौटने की
पंछी को मिल रहा है
बना बनाया घर
वे भूल रहे हैं
हुनर घोंसलों का
मुर्गे ने छोड़ दी है
पहरेदारी समय की
जैसे सूरज की परिक्रमा
नहीं करती पृथ्वी
हो गई है हद !
अब पीठ भी
विस्थापित हो रही हैं
बोरियां उठा रही हैं मशीने
खाली पीठ को याद आती है
गेहूँ की बोरियाँ
भूसे की गंध
डीज़ल की गंध से मिट रही है
हरियाली के बचे खुचे निशान
सुना है अब
कि कंक्रीट का जंगल
पसर रहा है अमरबेल की तरह
गाँव -गाँव, घर -घर
खेती की नाज़ुक देह पर
देखे जा सकते हैं,
लौह अजगर के
दांतों के निष्ठुर निशान..!!
3) कविता
कविता लिखी नही जाती
वह तो बुनी जाती है
कभी नेह के धागों से
तो कभी पीड़ा की सेज पर
जैसे एक स्त्री बन जाती है मिट्टी
रोपती है देह में नंवाकूर को
वैसे ही कविता का होता है जन्म
ह्रदय है उसके पोषण का गर्भ
जब उतारती है पीड़ा कागज़ पर
कुरेदता है एक कवि कछुवे की पीठ
बैठता है आधी रात को कलम के साथ
घसीटता है खुद को बियाबान की नीरवता में
देख नहीं सकता अपने इर्द गिर्द
जिन्दा लाशें मरे हुये वजूद की
कचोटता है अपने कलम से
उन्हकी आँखो की पुतलियाँ को
रखना चाहता है अपनी आत्मा पर
एक कविता रोष और आक्रोश की
जब प्रेम झडने लगता है कलम से
नदी की देह पर उतर आता है चाँद
प्रेमिका का काजल बहता है इन्तजार में
और कवि जीता है प्रेम की सोंधी सोंधी खुशबू को
4) रौशनी का एक टुकड़ा
अंधेरे से लड़कर
जीत आई है वह
रौशनी का एक टुकड़ा |
रौशनी के इस टुकड़े से
मिटा दो जगत का
और भर लो आभा प्रेम की
थोड़ी रोशनी बाँट आओ उस झोपड़ी में
जहाँ रो रही हैं अज्ञानता ,गरीबी, लाचारी…
रौशनी की धीमी किरण
उस नन्हे के हाथ थमा आना
जो बिखेर रहा है स्नेह
चौराहें पर बेच चंद फूल |
रौशनी का एक क़तरा
छोड़ आना विरहिनी के नैन में
और जगा आना
उसे अंधे प्रेम से |
एक कण रौशनी का
उस टूटे तरु को दे आना
जो सह रहा है विरह पत्तों का
थमा आना उसके हाथ
आगमन बसंत का |
फिर देखना तुम
एक टुकड़ा रौशनी
मिटा देगा अनगिनत
जीवन के अँधियारे को
प्रेम की आभा बन
सूरज चमकेगा |

सरिता सैल
जन्म : 10 जुलाई ,
शिक्षा : एम ए (हिंदी साहित्य)
सम्प्रति : कारवार  कर्नाटक के एक प्रतिष्ठित कालेज में अध्यापन
मेरे लिए साहित्य मानव जीवन की विवशताओं को प्रकट करने का माध्यम है।
*कोकणीं, मराठी ,  आसमी, पंजाबी एवं अंग्रेजी भाषा में कविताएँ  अनुवादित हुई है।
कही नामी मंचों से ओनलाइन काव्यपाठ
प्रकाशन :  मधुमति, सृजन सारोकार , इरावत ,सरस्वती सुमन,मशाल, बहुमत, मृदगं , वीणा, संपर्क भाषा भारती,नया साहित्य निबंध और, दैनिक भास्कर , हिमप्रस्त आदि पत्र पत्रिकाओं में कविताएं एवं अनुवादित कहानियाँ प्रकाशित।
कविता संग्रह
1 कावेरी एवं अन्य कवितायें
2. दर्ज होतें जख्म़
3. कोंकणी भाषा से हिन्दी में चाक नाम से उपन्यास का अनुवाद प्रकाशाधिन
साझा संग्रह – कारवाँ, हिमतरू, प्रभाती , शत दल में कविताएँ शामिल
पुरस्कार- परिवर्तन साहित्यिक सम्मान  २०२१
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest