Monday, May 20, 2024
होमकहानीदीपक गिरकर की कहानी - गाँव की खुशबू

दीपक गिरकर की कहानी – गाँव की खुशबू

अमृतलाल जी मन ही मन मनसूबे बाँधने लगे, जैसे ही वे रिटायर होंगे अपने गाँव चले जाएंगे और हमेशा वहीं रहेंगे। अमृतलाल जी अपने गाँव जाने की कल्पना मात्र से पुलकित हो उठे थें, यह उनके चेहरे की रौनक बता रही थी। अमृतलाल जी को अपना बचपन याद आने लगा… कितने सुहाने थे वे दिन… कृष्णा भैया, कमला और वह तीनों मिलकर कितना हुड़दंग मचाया करते थे। कुछ ही पलों में हिरन की तरह छलांग लगाता बचपन उनकी स्मृति में तैरने लगा था।
अमृतलाल जी अपनी ज़िद पर अड़े हुए थे कि वे अपनी सेवानिवृत्ति के बाद अपने गाँव में जाकर रहेंगे। जबकि उनकी धर्मपत्नी कामिनी हैदराबाद में अपने बड़े बेटे के यहाँ रहकर नाती पोतों के साथ जीवन व्यतीत करना चाहती थी। अमृतलाल जी नौकरी की वजह से शहर ज़रूर आ गए थे लेकिन गाँव से उनका मोह जस का तस बना हुआ था..
अमृतलाल जी के दोनों बेटे और बहुएं बड़े सौम्य, मिलनसार और स्नेहिल हैं। बड़ा बेटा हैदराबाद में एक मल्टीनेशनल कंपनी में वाईस प्रेजिडेंट है और छोटा बेटा दिल्ली में एम्स में एक बड़ा डॉक्टर है। बड़े बेटे को एक बेटी और एक बेटा है जबकि छोटे बेटे को एक ही बेटी है। दोनों बहुएं नौकरी नहीं करती हैं, वे अपना घर संभालती हैं। दोनों बेटों, बहुओं और नाती-पोतों ने बाबूजी की सेवानिवृत्ति के पश्चात माँ-बाबूजी को साथ में रहने का बहुत बार निवेदन किया था।
“अजी सुनते हो, मैं तो अपने बेटे-बहू, नाती-पोते को छोड़कर आपके साथ गाँव नहीं जा पाउंगी। गाँव में अब अपना रिश्तेदार तो कोई नहीं बचा है तो गाँव जाकर क्या करेंगे?”
“गाँव में रहेंगे तो चार आदमी बोलने बतियाने वाले मिल जाएंगे। समय आराम से कट जाएगा और गाँव का शुद्ध हवा-पानी तो मिलेगा ही।”
अचानक ही गाँव अमृतलाल जी की आँखों के समक्ष किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगा। “गाँव का जीवन शहर की लाइफस्टाइल से बहुत अलग होता है। गाँव शहर की भागमभाग वाली जिंदगी से बहुत दूर होते हैं। गाँव में भोर होने पर सुबह की अलार्म की जगह कोयल की कूक सुनाई देती है या फिर मुर्गी की कुकडू कु। गाँव में ना तो शहर वाला भारी ट्रैफिक होता है और ना ही भागदौड़ भरी जिंदगी। गाँव में जीवन की गति धीमी और सहज रहती है। गाँव में कोई दिखावा नहीं होता। गाँव के लोगों में आपस में अपनत्व और प्रेम होता है। वह आपस में सुख और दुख को बांटते हैं। सादा जीवन उच्च विचार यही गाँव की पहचान है।
पेड़ों की ताजी हवा, ताजा और शुध्द दूध, रसायनों से मुक्त ताजी-ताजी सब्जियाँ, गाँवो के चौपालों की रौनक हर किसी को गाँव की ओर खिंच लेती है। मैं जब गाँव में रहता था तब गाँव में उन दिनों चारों ओर असीम शांति थी। सभी ग्राम वासियों का एक दूसरे के लिए लगाव, उनका एक दूसरे की मदद के लिए सदैव तत्पर रहना यही तो हमारे गाँवों की विशेषता है। गाँव के लोग बड़े ही सौम्य, मिलनसार और स्नेहिल होते हैं। शहर के लोगों में यह खूबी कोसों दूर होती है। गाँव में जब भी बारिश होती है तो मिट्टी की खुशबू से दिन बन जाता है। मिट्टी की खुशबू मन को आनंद देती है। वहां की मिट्टी से हमारे दिल का रिश्ता जुड़ जाता है। गाँव की मिट्टी की सोनी गंध में ही तो जीवन की गरिमा है। गाँव मेरे लिए नया न्यारा नहीं है। मैं गाँव में ही पैदा हुआ और इण्टर तक की शिक्षा मेरी गाँव में ही हुई है।” यादों की पिटारी खोल वे बहुत देर तक बतियाते रहें।
कामिनी उनके तर्क के सामने निरुत्तर हो गयी और अमृतलाल जी के साथ गाँव जाने के लिए तैयार हो गयी। अमृतलाल जी का मन तो जैसे बल्लियों उछल रहा था… अमृतलाल जी वर्षों के लंबे अंतराल के बाद गाँव आये थें। गाँव अब कस्बे में बदल चुका था, जहाँ लोगों का आपस में जैसे कोई लेना-देना न था। घरों के भीतर घुटन और घरों के बाहर मायूसी मँडराती! गाँव में युवा वर्ग नशे में धूत रहता है। इस गाँव के युवा गैर कानूनी मादक द्रव्यों, चरस, गांजा, हेरोइन जैसे ड्रग्स की तस्करी में संलिप्त थें। यहाँ आए दिन शहर से पुलिस आती रहती और नशे के कारोबारियों को अपने साथ ले जाती रहती।
35 वर्षों में गाँव में कितने परिवर्तन हो गए। गाँव के अधिकाँश लोगों के शहर में मकान बन गए। गाँव में नदी गायब हो चुकी थी। अमृतलाल जी को गाँव के लोगों का बर्ताव बेहद रूखा लगा। अमृतलाल जी अपने बचपन के दोस्तों की दशा देखकर विचलित हो गये। उनके अधिकाँश मित्र अपनी उम्र से बहुत ज्यादा के लग रहे थें, वे सभी बीमार थें और व्हीलचेयर पर या बिस्तर पर थें। गाँव की दशा देखकर वे असमंजस में पड़ गए थे। गाँव आकर उनके मन में कुछ दरक सा गया था। अमृतलाल जी गाँव में चार दिनों में ही स्मृतियों के सुखद कल्पनालोक से यथार्थ के धरातल पर आ गये थें। एक सप्ताह के अंदर ही वे गाँव के माहौल में ऊबने लगे थें। उन्हें गाँव की वह खुशबू नसीब न हो पाई जो उसकी यादों में बसी थी। गाँव में अमृतलाल जी एक महीना ही रहें। यह एक महीना अमृतलाल जी के लिए और भी तनाव भरा साबित हुआ। वे सोच कर गये थें कि वहां शायद मन को सुकून मिलेगा या जिंदगी के नए अर्थ उन्हें भी मिल जाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। गाँव पहुँचकर अमृतलाल जी का सारा उत्साह कपूर सा उड़ गया। भादों का महीना। कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात। ज़ोरों की बारिश। हमेशा की भाँति बिजली का गुल हो जाना। अंधकार में डूबा गाँव तथा अपने घर में सोये-दुबके लोग! पूरे गाँव पर खौफ़ का कहर था क्योंकि आज भी गाँव में पुलिस आयी थीं और तीन लड़कों को रंगे हाथ पकड़ लिया था और उन्हें अपने साथ ले गयी थीं। उन तीनों लड़कों ने गाँव वालों को धमकी दी थी कि जिसने भी पुलिस से मुखबिरी की है उसे और उसके परिवार को छोड़ेंगे नहीं। अमृतलाल जी और कामिनी रात भर सो नहीं सकें।
अगले दिन सुबह आकाश साफ हो गया था। बादल छंट गए थे। गाँव की जो खुमारी अमृतलाल जी पर तारी रही थी उसका अंत हो गया था। अमृतलाल जी और कामिनी अपने बड़े बेटे के पास हैदराबाद जाने के लिए सुबह पहली बस से ही शहर की ओर निकल चुके थें।

दीपक गिरकर
कथाकार
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मोबाइल : 9425067036
RELATED ARTICLES

1 टिप्पणी

  1. गांव से मोहभंग की कहानी है दीपक गिरकर जी की। पहले के वातावरण, ग्राम्य जीवन v रिश्तों की डोर से बंधे नायक की जिद कि वे सेवानिवृत्त होते ही गांव में ही बसेंगे, उनकी पत्नी की इच्छा पर भारी पड़ती है।
    कस्बे में तब्दील गांव में n अब पहले डे रिश्ते रहें, न ही निच्छलता।
    नशे के आदी लड़के और नशे के धंधे ने उनकी आंखों का पर्दा हटा दिया।
    अंत दूसरी तरह से करने पर कहानी का प्रभाव बढ़ जाएगा।
    बहाने तो आम हो गए, शहर में ही बस जाना समाधान नहीं।
    कोई अनुकरणी बदलाव लाया जा सकता था।
    फिर भी कहानी पठनीय है। साधुवाद!

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest

Latest