सुबह-सुबह अपनी सासू मां को चाय नाश्ता की प्लेट देते हुए ” माँ जी, मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं..” विनम्र  आवाज में अवनी ने कहा। अवनी को बिना देखे ‘चाय हाथ में लेते हुए ‘ हू….हू  कहो क्या कहना चाहती हो ‘ मां जी ने कहा। मैं… मैं आर्मी में जाना चाहती हूं यह कहते हुए अवनी की जीभ भी लड़खड़ा रही थी , उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी अपनी सास की दुखती रग पर हाथ रखने की जिस आर्मी में मां का इकलौता जवान बेटा शहीद हुआ हो वह मां आर्मी में जाने के लिए कैसे हां बोल सकती है? यह सुनते ही मां जी का हृदय कांप गया अवनी का हाथ पकड़कर कुर्सी पर बैठा कर और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए ‘  सुबह-सुबह तुम यह क्या बोल रही हो अवनी बेटा ? शिबू को खोने के बाद अब मुझ में और हिम्मत नहीं है कि मैं तुम्हें आर्मी में जाने की कह सकूं, अब मैं तुम्हें भी  नहीं खोना   चाहती..”  इतना  कहते-कहते उनका गला रूंध गया और आंखों से आंसू टपकने लगे।
मां जी के आंसू पोंछते  हुए उनका हाथ पकड़कर अवनी ने कहा  ” मैं आपके बेटे का सपना पूरा करना चाहती हूं वह अक्सर मुझसे कहा करते थे ‘अवी ! तुम्हें जो अच्छा लगे वही करना मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंगा, तुम तो एक मेजर की पत्नी हो तुम्हें भी जीवन में आगे बढ़ना है और कुछ करना है, यह कहते हुए आंखों से आंसुओं की लड़ियों को पोछ  कर गहरी सांस लेते हुए उनके जाने के बाद उनकी यादें एवं यह घर मुझे काटने को दौड़ता है.. मैं उन्हें भूलने की कितनी भी कोशिश करूं वो मेरी आत्मा में बस चुके हैं.. मैं आंखें बंद करूं तो मुझे ऐसा लगता है कि वह मेरे आस पास हैं, वह मेरे कानों में कुछ कह रहे हों जैसे अवी.. तुम तो एक बहादुर मेजर की पत्नी हो इतनी जल्दी कैसे टूट सकती हो  ? तुम इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं हो,  तुम इतनी जल्दी निराश होने वालों में से भी नहीं हो,……… तुम्हें अकेले ही आगे के जीवन का सफर तय करना है ।”
मां जी चाय का घूंट लेते हुए  ‘ तुम्हारे ससुर जी के जाने के बाद मैं ही जानती हूं मैंने अपने बच्चों को कैसे पाला था.. हमारे यहां एक कहावत भी है ‘राड़ को देखकर भीत  भी मुंह  फाड़ती है’ तुमने तो भला इस दुनिया को समझा भी नहीं है.. कैसे सामना करोगी इस समाज से? तुम घर से निकलोगी  तो लोग तुम पर तरह-तरह के तंज कसेंगे, तुम पर उंगली उठाएंगे और कहेंगे कि पति को गुजरे हुए कम ही समय हुआ है और यह महारानी पढ़ने के बहाने बाहर गुलछर्रे उड़ाने लगी, कोई तुमसे कुछ कहेगा तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगी और फिर हम किस-किस का मुंह बंद करेंगे?’ भगवान के मंदिर की ओर देखते हुए ‘भगवान की भी बड़ी विचित्र लीला है, तीन तीन बेटियों के बाद बेटे का सुख मिला लेकिन मेरे ही कर्मों में कुछ कमी रह गई होगी जिसकी सजा भगवान ने मुझे दी जो उसने मुझे जीते जी मार डाला।’ हृदय की पीड़ा को व्यक्त कर देने से पीड़ा कुछ कम हो जाती है इसलिए अवनी भी मां जी की बातें चुपचाप सुन रही थी । मां जी अपने आप को कोसते हुए बोलीं, “यह मेरे ही कर्मों का फल है कि बेटा भी मुझे छोड़ कर चला गया लेकिन वह भी अपनी वंशवेल न दे पाया, अगर तुम्हारी गोद हरी भरी होती तो उसके जाने का गम थोड़ा कम हो जाता  ,अपना माथा होते हुए  खैर ! इसमें तुम्हारी भी कोई गलती नहीं है जो कुछ होता है सब ईश्वर की मर्जी से होता है,  अब मेरी तीन नहीं चार बेटियां हैं ।” अवनी कुछ बोलती इससे पहले ही मां जी का कलेजा भर आया, “बेटी ! अब इस घर की इज्जत तुम्हारे हाथ में है  ।शिबू! शिबू ! मेरे कलेजे का टुकड़ा इस बूढ़ी मां पर भी तरस   खा इस मां को भी अपने पास बुला ले अब मैं और नहीं जीना चाहती..” सिसकियां लेते हुए मां जी अपने कमरे में चली जाती हैं ।”
अवनी भी पीछे से दौड़ कर उनके कमरे में आकर अपने आंसुओं के सैलाब को रोक नहीं पाती और उनके सीने से लिपट कर वह भी आंसुओं के सागर में डूब जाना चाहती है लेकिन मां जी को संभालते हुए उसने कहा, “मैं आपकी बहू नहीं बेटा बनना चाहती हूं इसलिए मुझ पर विश्वास कीजिए.. मुझे अपने बेटे की जगह दे दीजिए…” अपने  और मां जी के आंसू पोंछते  हुए कहती है, “मां जी, आपको याद है उस दिन उनकी शहादत पर कुछ लोग हम लोगों को बेचारा कह रहे थे , कुछ लोग तो यहां तक कह रहे थे कि सास  की तरह बहू ने भी अपना पति खा लिया । मैं ऐसे ही लोगों को दिखाना चाहती हूं कि मैं कोई ‘ बेचारी ‘ नहीं हूं, मैं तो एक बहादुर मेजर की पत्नी और एक मां का विश्वास और उनका बेटा हूं जो नियति के इस खेल से  टूटने वाली नहीं है ।”
यह सुनते ही मां जी ने अपने दोनों हाथ अवनी के सिर पर रख दिए, “भगवान ! तुम्हारी हर मनोकामना पूरी करें।” मां जी का आशीर्वाद लेते हुए अवनी ने भी मन ही मन संकल्प कर लिया कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दिन रात मेहनत करेगी और समाज की इन झूठी रूढ़ियों की परवाह न करते हुए अपने बहादुर पति की तरह अपना जीवन भी देश की रक्षा के लिए कुर्बान करेगी । घर  एवं मां जी  की देखभाल के साथ-साथ उसका पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर रहता जब कभी पढ़ाई से थक जाती तो आंखें बंद करके कुर्सी पर बैठती तो  शिबू  के साथ बिताए वह एक-एक पल उसकी आंखों में उतर आते कुर्सी पर बैठे-बैठे कब उसकी आंख लग जाती उसे पता ही नहीं चलता । पढ़ाई के साथ-साथ शिबू की यादें उसके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी इसलिए भगवान के साथ-साथ    शिबू  की  भी पूजा करती । शिबू के होने का एहसास उसे हर पल होता इसलिए उसकी तस्वीर के सामने  घंटों बैठकर बातें किया करती ।
जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के बाद अवनी ने शार्ट सर्विस कमीशन( एसएससी) की परीक्षा पास कर ली तो  मां जी की खुशी का ठिकाना ना रहा.. एक पल उन्हें लगा कि उन्होंने अपना खोया हुआ बेटा वापस पा लिया.. ।
 अवनी ने पैर छूकर जब मां जी का आशीर्वाद लिया तो उनके मुख से अनेक आशीर्वाद निकल पड़े, “मेरा आशीर्वाद सदैव  तुम्हारे   साथ है.. सदा सुखी रहो और सफलता के शिखर पर इसी तरह चढ़ती रहो, जीवन में सदैव तरक्की पाओ……… अवनी के मुख की  दोनों हाथ से बलइयां लेते हुए, ‘बेटे की तरह मुझे तुम पर भी गर्व है तुमने सचमुच आज मेरे बेटे का सपना पूरा कर दिया, मैं एक नहीं दो दो बेटों की मां हूं और उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े ।”
आर्मी ऑफिसर की यूनिफॉर्म पहनकर जब अवनी ने अपने बहादुर बलिदानी पति की तस्वीर के सामने  ‘जय हिंद ‘ बोलकर सलूट किया तो उसकी आंखों में सच्चे प्रेम की मिठास झलक रही थी एवं दुश्मनों से देश की रक्षा करने का हौसला बुलंद था।
सहायक प्राध्यापक हिंदी शासकीय महाविद्यालय महगांव भिंड संपर्क - girijanarwaria82@gmail.com

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