वाणी रोज की तरह स्कूल से घर आकर फ्रेश होने चली गई । फिर अपने लिए एक कप चाय बनाकर ड्राइंग रूम में लेकर आ बैठी। चाय की चुस्की लेते हुए उसकी नजर सामने टेबल पर पडे इन्विटेशन कार्ड पर पड़ी ।उसने इन्विटेशन कार्ड को उठाकर देखा। वह किसी क्रैच संस्था के उद्घाटन समारोह में सम्मिलित होने के लिए था उसने पत्र को ध्यान से देखा,पत्र भेजने वाली का नाम सरोज लिखा था सरोज नाम पढ़कर उसकी पुरानी स्मृतियां ताजा हो गई।
बात आज से दस वर्ष पूर्व की थी ।जब उसकी नई- नई सरकारी नौकरी लगी थी अध्यापिका के रूप में ।वह भी शहर से 35 – 40 किलोमीटर दूर बीहड़ों के बीच बसे एक गांव में। जहां पहुंचने के लिए आवागमन का कोई साधन नहीं था। गांव से मुख्य सड़क को जोड़ने वाला मार्ग अत्यंत ऊबड़खाबड़ और संकरा था। शहर से स्कूल के लिए जाते हुए उसने जिंदगी के कई रंग देखें । सड़क पर सवारी वाहन के इंतजार में घंटों किसी तपस्वी की भांति खड़े रहना ।उस पर भी कोई सवारी वाहन मिलेगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं । सवारी वाहनों के नाम पर भी उसने ना जाने कैसे-कैसे वाहनों की सवारी की । हवाई जहाज के इस युग में उसने बैलगाड़ी, ऊंटगाड़ी, ट्रेक्टर, जीप ,ऑटो रिक्शा ,लोडिंग वाहन ,बस, ट्रक इत्यादि की सवारी की।। वैसे उसे किसी अनजान शख्स से लिफ्ट लेना कतई पसंद नहीं था लेकिन शाम को स्कूल से लौटते हुए देर होने पर मजबूरीवश आशंकित मन से उसने लिफ्ट भी ली ।
कई बार उसे लगता कि वह सही सलामत इज्ज़त के साथ घर पहुंच जाए ।यही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
उसे महसूस होता कि वह आत्मनिर्भर होने की जगह दूसरों पर आश्रित अधिक हो गई है । उसके मन में ख्याल आता क्यों न अपनी स्कूटी से स्कूल चली जाया करें तो उसे इन तमाम झंझटों से मुक्ति मिल जाए
लेकिन स्कूल जाने वाले रास्ते में अक्सर लूटपाट की घटनाएं होती रहती। जिससे उसकी अकेले स्कूटी से स्कूल जाने की हिम्मत नहीं पड़ती ।
उसे हाल में ही हुई लूटपाट की एक घटना याद आ गई जिसमें बदमाशों ने अपने बीमार रिश्तेदार को देखने आए एक युवा दंपत्ति को कट्टे की नोक पर दिनदहाड़े गांव के समीप ही लूट लिया था और पुलिस उन लुटेरों का नाम तक पता नही लगा पाई थी।
वैसे उसने इस स्कूल से ट्रांसफर करवाने की भी काफी कोशिश की ।शायद ही कोई मंत्री या अधिकारी बचा होगा। जिसके पास वह ट्रांसफर की अर्जी लेकर ना गई हो लेकिन परिवीक्षा अवधि समाप्त होने तक सबने ट्रांसफर करने से हाथ खड़े कर दिए।
जब तक वह अकेली थी तब तक तो घर से स्कूल जाने की इस जद्दोजहद को वह झेलती रही। लेकिन बेटे के जन्म के बाद उसकी परेशानियां और बढ़ गई । छः माह तो मेटरनिटी लीव मिल जाने के कारण आराम से गुजर गए लेकिन उसके बाद बेटे को कौन संभाले यह समस्या उसके समक्ष सुरसा के मुंह की तरह मुंह बायें खड़ी थी। कहने को तो उसकी विधवा सास भी उसके साथ रहती थी लेकिन बेटे को संभालने के नाम पर उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए और दो टूक शब्दों में उसे सुना दिया।
” देखो बहू ईश्वर भजन की इस उम्र में मुझे बच्चे पालने के फेर में मत उलझाओ। मेरी उम्र भी अब ऐसी नहीं रही कि मैं बच्चे को संभाल सकूं। वैसे भी हमने तो तुम्हें नौकरी करने को कहा नहीं अब यह तुम्हारी समस्या है तुम ही जानो कि तुम्हें नौकरी करनी है या बच्चे को पालना है।”
वाणी को सास की कही बातें नश्तर की तरह भीतर तक चुभ गई पर वह मन मसोसकर रह गई।
वह सोच रही थी कि दादा – दादियों को तो अपने नाती पोतों में प्राण बसते हैं। उसके यहां तो कहावत भी कि असल से सूद सभी को प्यारा होता है लेकिन उसके यहां तो उल्टी गंगा बह रही है।
वह और अमित दोनों ही जॉब करते हैं ।ऐसे में बेटे को कौन संभाले है इस बात पर अक्सर दोनों में बहस होती रहती। वह अमित को कई बार कह चुकी है कि बच्चे को रखने के लिए कोई आया ढूंढ दे मगर वह हर बार उसकी बात को अनसुना कर देता मजबूरन उसे बेटे को लेकर स्कूल जाना पड़ता । नन्हा सा बच्चा गर्मी से विकल होकर रोने लगता और वह उसे रोता देखकर परेशान हो उठती।
इधर कुछ दिनों से बेटे की तबीयत भी खराब सी हो गई थी। डॉक्टर से चेकअप कराने पर उसने गर्मी व लू से बचाव रखने को कहा था लेकिन उसे स्कूल ले जाते हुए ऐसा संभव नही था और घर पर रखने वाला कोई नहीं था इसलिए उसे बच्चे को अपने साथ लेकर जाना पडता
बाहर हल्की – हल्की बूंदाबांदी हो रही थी इधर वाणी के आंखों से आंसुओं की बरसात हो रही थी। बच्चे को कौन संभाले इस बात को लेकर आज फिर उसका अमित से झगड़ा हो गया था ।
” अमित तुम बच्चे के लिए कोई आया क्यों नहीं ढूंढते हो । स्कूल जाते हुए मेरे साथ वो बेचारा बहुत परेशान होता है। देखो न लू लग जाने की वजह से वह बीमार पड गया ।फिर भी तुम्हें उसकी परेशानी क्यों दिखाई नहीं देती है ।
“वाणी मैं कोशिश तो कर रहा हूं ।”अमित ने कहा
“अमित कोशिश करते हुए तुम्हें कितने महीने हो गए।” उसने कहा।
” वाणी तुम्हें क्या लगता है मैं जानबूझकर ऐसा कर रहा हूं ।तुम्हें तो पता है ये शहर कोई महानगर नही है जहां कामवाली बाईया आसानी से मिल जाती हो।ये एक छोटा सा कस्बा है। यहां अधिकतर लोग अपना काम खुद करते है । फिर भी मैं आया ढूंढने की कोशिश कर रहा हूं।”
“अमित कोशिश नही मुझे परिणाम चाहिए । उसने थोडे तल्खी भरे स्वर में कहा।”
उसकी बात सुनकर अमित भडक सा गया।
“वाणी मैंने तो तुम्हें नौकरी करने के लिए फोर्स नही किया था। तुमने ही नौकरी करने की जिद की थी ।अब जब तुमसे बच्चा और नौकरी नही संभल रही है। तो तुम अपनी इस दो टके की नौकरी को छोड़ क्यों नही देती हो । मैं अच्छा खासा कमाता तो हूं।”
यह कहकर अमित अपने ऑफिस के लिए निकल गया और वह परकटे पक्षी की तरह घायल होकर जमीन पर गिर पडी ।
कितना आसान है अमित के लिए यह कहना
” नौकरी को छोड़ क्यों नहीं देती हो ?”
वह सोच रही थी कि मैंने नौकरी करके ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया है जिससे मेरे पति और सास मेरे साथ ऐसा बर्ताव करते है जैसे कि वह गुनहगार हो जबकि सैलरी आने पर सबसे पहले वही लपक लेते है।
हा ये सच है कि नौकरी करने के लिये उसे किसी ने फोर्स नही किया लेकिन अपने पैरों पर खडा होना क्या गुनाह है?
उसने खुद को संभाला फिर बच्चे को लेकर स्कूल के लिए निकल पड़ी । वह अभी कुछ दूर पहुंची ही थी कि सड़क के किनारे उसे भीड़ लगी दिखाई दी । वह भी उत्सुकतावश उधर देखने पहुंच गई ।एक गेहुआ रंग की मध्यम कद काठी की बीस बाईस बर्षीय लड़की ,नहीं उसे लडकी नही औरत कहना अधिक मुनासिब होगा। बिलख बिलख कर रो रही थी। उसकी गोद में एक पांच छः माह का शिशु भूख के मारे अपना अंगूठा चूस रहा था तथा दूसरा बच्चा जिसकी उम्र लगभग तीन बर्ष होगी ,भयाक्रांत मुद्रा मे उससे सटकर खड़ा था और भीड़ तमाशबीन बनी उसे देखे जा रही थी। उसने तुरंत पर्स से फोन निकाल कर रघु ठाकुर को फोन कर दिया सो थोड़ी ही देर बाद वे भी वहां आ गए ।वह स्कूल जाने के लिए लेट हो रही थी इसीलिए पूरे मामले को समझे बगैर वहां से स्कूल जाने के लिए निकल चुकी थी लेकिन तसल्ली इस बात की थी कि वह सुरक्षित हाथों में पहुंच चुकी है क्योंकि रघु ठाकुर इस कस्बे के बहुत बडे समाजसेवी है जो पीडित महिलाओ और बच्चों के उत्थान के लिए सखी सेंटर नाम से संस्था चलाते है ।
उस रात उसे ठीक से नींद नहीं आई। रातभर उस स्त्री और उसके बच्चों का रोता हुआ चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमता रहा।
दूसरे दिन रविवार था ।उसने कुछ खाना पैक किया तथा साथ में कुछ चॉकलेट, कपडे और खिलौने लिए और बेटे को लेकर उससे मिलने सखी सेंटर पहुंच गई । जहां रघु ठाकुर पहले से ही मौजूद थे ।वह वाणी से पूर्व से ही परिचित थे सो उस औरत से मिलने में उसे कोई खास दिक्कत नहीं हुई । रघु ठाकुर स्वयं उससे मुलाकात करवाने के लिए उसके साथ चल पड़े ।
वह औरत अभी भी दुख भरी मुद्रा में बैठी थी जैसे अभी रो पडेगी । वाणी ने चॉकलेट उसके बच्चे को दे दी । बच्चा चॉकलेट पाकर खुश हो गया। वह अभी भी सिर झुकाए चुपचाप बैठी थी और उसका छोटा बच्चा जमीन पर बिछे बिछौने पर गहरी नींद में सो रहा था। वाणी के पूछने पर उसने अपना नाम सावित्री बताया हालांकि वाणी उससे बहुत कुछ पूछना चाहती थी लेकिन अभी उसके ताजे जख्म कुरदने की उसमें हिम्मत नहीं हुई । इसलिए वह उसे खाने का पैकेट और बच्चों के लिए कुछ कपडे ,खिलौने देकर घर चली आई ।लेकिन उसकी पनीली आंखें अभी भी उसका पीछा कर रही थी।
अगले रविवार भी वह उससे मिलने सखी सेंटर पहुंच गई ।इस बार वह थोड़ा सहज लगी।बहुत पूछने पर उसने बताया है कि वह यूपी के एक शहर फिरोजाबाद से है । छोटी थी तभी मां बाप गुजर गए। सो बड़े भाई ही ने मां बाप की भूमिका निभाई ।भाई तो फिर भी उसका ख्याल रखते थे लेकिन भाभी न जाने क्यों उससे द्वेष भाव रखती ।वह उसे बेवजह मारती पीटती और उससे घर का सारा काम कराती और । ठीक से उसे भरपेट खाना भी नही देती।आठवीं कक्षा के बाद तो उन्होंने उसकी पढाई यह कहकर छुडवा दी। कि ज्यादा पढ़ लिखकर तुम कौन सी कलेक्टर बनोगी।
शादी में दहेज न देना पडे।इसीलिए भाभी ने उसकी शादी एक अधेड़ आदमी से करवा दी । जो रोज शराब पीकर उसे मारता पीटता और उसके साथ जानवरों जैसा सलूक करता ।शराब के नशे में रात में वह और भी अधिक क्रूर और वहशी हो उठता ।
एक दिन उसके जुल्म सितम से तंग आकर वह बच्चों को लेकर मायके आ गई ।कुछ दिन तो ठीक से गुजरे लेकिन जैसे ही भाभी को पता चला ।वह ससुराल से बिना बताए यहां आई है तो उन्होंने घर में हंगामा खडा कर दिया और भाई से उसे वापस उसके ससुराल भेजने की रट लगा ली । वह भाभी के चरणों में गिर पडी और रोते हुए उनसे वापस उस नरक में न भेजने की गुजारिश करती रही लेकिन भाभी को इससे कोई फर्क नहीं पडा । वह लगातार चिल्लाकर कहे जा रही थी ।इस कलमुंही को चाहे जहां छोड़ कर आओ पर इसे मेरी नजरों से दूर करो दो ।राड़, छिनाल, मनहूस कही की पैदा होते ही अपने मां बाप को खा गई ।अब क्या हमें भी खाना चाहती है? वह गुस्से में लगातार गालियां बके जा रही थी दूसरी ओर भाई उसका बैग उठाकर बाहर चल दिया। वह भी उनके पीछे- पीछे बच्चों को लेकर चल पडी ।
भाई बस से उसे ससुराल इटावा छोडने के लिए आये और इटावा से पहले यूपी बॉर्डर से सटे भिंड शहर में बस से उतरे गये और बच्चों के लिए गन्ने का जूस लाने की कहकर गये तो फिर नही लौटें…बताते हुए वह रो पडीं।
वाणी सोच रही थी युग कोई भी हो स्त्रियों की नियति कभी नहीं बदलती है । आज फिर एक सीता को उसके ही परिजन द्वारा अपने बच्चों के साथ इस अंजान नगर में मरने के लिए छोड़ दिया गया।
“फिर मायके या ससुराल जाना चाहोगी।” वाणी ने उससे पूछा
“नही, कभी नही वहां वापस जाने से अच्छा है मर जाना।” उसने ढृढ़ संकल्पित होकर कहा
“अब आगे क्या करोगी ” वाणी ने फिर उससे पूछा
“पता नही” उसने उंगली से जमीन कुरेदते हुए कहा
“फिर भी कुछ तो सोचा होगा ।”वाणी ने दुबारा उससे पूछा
“समझ मे नही आता दीदी क्या करुं, बच्चे नही होते तो अब तक किसी नदी ताल पोखरे मे समा गई होती लेकिन बच्चों का मुंह देखकर रह जाती हूं।” उसने रुंआसी होते हुए कहा।”
“मेरे पास एक काम है उसे करोगी।”
“बताओ न दीदी”
“मैं स्कूल जाती हूं घर पर बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए उसे भी अपने साथ लेकर जाती हूं बाहर ले जाने से वह बार – बार बीमार पड जाता है।मुझे तुम जैसी एक मां चाहिए जो मेरी अनुपस्थिति में उसकी देखभाल अपने बच्चे जैसी कर सके।”
“क्या तुम मेरे इस काम को करोगी? ” वाणी ने आशा भरे स्वर में उससे पूछा।
“ये भी कोई काम है क्या दीदी जैसे मैं अपने बच्चों का ख्याल रखती हूं वैसे ही उसका भी ख्याल रख लूगी।” उसने बोला
“लेकिन मेरी एक शर्त है ।” वाणी ने कहा
“क्या?”सावित्री ने हैरानी भरे स्वर में पूछा
“तुम्हें मेरे घर पर अपने बच्चों के साथ मेरे बच्चे की भी देखभाल करनी होगी। इसके साथ ही तुम्हारा रहना खाना सब मुफ्त रहेगा और इस काम के बदले तुम्हें पांच हजार रुपए तनख्वाह भी दूगी ।’
“बोलो मंजूर है कि नही ।”वाणी ने हंसते हुए उससे कहा
उसने हा मे सिर हिलाकर अपनी सहमति दे दी।
उस दिन के बाद से सावित्री उसके परिवार का एक अभिन्न अंग बन गई।
सावित्री ने भी अपने शील स्वभाव व सेवाभावी गुण से सबका दिल जीत लिया ।
अब उसका बेटा बडा होकर स्कूल जाने लगा था।
धीरे धीरे सावित्री ने भी एक कमरा किराए पर लेकर उसके जैसी अन्य कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए डे केयर टेकर का काम करना शुरू कर दिया।
कुछ बर्षों से स्कूल की व्यस्तता के चलते वाणी का उससे संपर्क जरूर कम हो गया था परन्तु आत्मीय लगाव आज भी बरकरार था ।
आज इस इन्विटेशन कार्ड को देखकर उसका मन बहुत प्रसन्न हो गया ।
वह नियत तिथि को इन्विटेशन कार्ड में बताये पते पर पहुंच गई। सावित्री उसे देखते ही गले लग गई । फिर उसका हाथ पकडकर उस ओर ले गई जहां उद्घाटन समारोह हो रहा था वहां और भी बच्चों के अभिभावक, अतिथि और रघु ठाकुर आये हुए थे। सावित्री ने उसके हाथों से दीप प्रज्वलित करवाकर उसे कैची पकडाते हुए उससे रिबन काटने का अनुरोध किया । वाणी मन ही मन सावित्री द्वारा दिए गए सम्मान से आहृलादित हो उठी। वाणी ने रिबन काटते हुए बच्चों के लिए खोले गए इस क्रैच सेंटर का नाम सावित्री से पूछा तो वह सकुचाते हुए बोली
“दीदी अभी तो कुछ सोचा नही है।आप ही मेरी मार्गदर्शक हो । आप ही इसका कोई बढिया सा नाम रख दो।”
वाणी ने कुछ देर सोचा फिर सावित्री की तरफ मुखातिब होते हुए उससे कहा जिस तरह तुम मेरे जीवन में नये सबेरे की तरह आई थी। वैसे ही तुम्हारे द्वारा बच्चों के लिए खोला गया ,यह क्रैच सेंटर तुम्हारे और उन तमाम कामकाजी मां ओ के भी जीवन में नया सबेरा लाये । इन्हीं शुभकामनाएं के साथ मैं इस क्रैच सेंटर का नाम ‘नया सबेरा’ रखती हूं।