होम कहानी नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – ऑनलाइन कहानी नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – ऑनलाइन द्वारा नीरजा हेमेन्द्र - February 27, 2022 86 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet ’’ कहाँ हो बेटा? उठ जाओ। तुम्हारी क्लास का समय हो गया है। ’’ मैंने अपने बेटे अंश को रसोई से आवाज लगाई। ’’ मम्मा, उठ रहा हूँ। छुट्टियों में भी आप सोने नही देती हो। ’’ अंश ने नींद में ही बड़बड़ाते हुए कहा। ’’ बेटा, अभी आठ बज रहे हैं। तुम्हे रेडी होते–होते नौ बज जाएंगे। उधर मैडम क्लास शुरू देंगी। ’’ मैंने अंश से कहा। पैरों में स्लीपर डालते हुए, अधखुली आँखंे मिचमिचाते हुए अंश बाथरूम में चला गया। पन्द्रह–बीस मिनट के बाद फ्रैश हो कर बाहर आया। तब तक मैंने अंश के लिए नाश्ता और दूध तैयार कर डायनिंग टेबल पर रख दिया था। ’’ मैं अभी नही नहाऊंगा, न ही दिन में क्लास के बाद नहाऊंगा। ’’ अनमने भाव से अंश ने कहा। ’’ अच्छा….अच्छा……ठीक है। ’’ मैंने कहा। ’’ इस समय नाश्ता नही करूँगा। सिर्फ दूध लूँगा। ’’ अंश ने कहा। वह अभी तक सुस्त था। ’’ कुछ तो खा लो बेटा। दो घंटे की लगातार क्लास है। ’’ मैंने पुचकारते हुए अंश से कहा। ’’ सो कर उठते ही कोई खाने लगता है क्या? ’’ ब्रेड–मक्खन की ओर मुँह बिचका कर देखते हुए अंश ने कहा। अंश ने एक साँस में दूध पी लिया तथा अपने पढ़ने के कमरे में चला गया। कमरे में जाकर अंश ने रात में पहनी हुई स्लीपिंग सूट की शर्ट उतार कर आलमारी से निकाल कर स्कूल की शर्ट पहन ली। ट्राउजर उसने वही रहने दिया। तत्पश्चात् उसने लैपटाॅप को चार्जिंग पर लगा कर पढ़ने की मेज पर बैठ कर लैपटाॅप खोल कर बैठ गया। लैपटाॅप खुल गया। अंश ने चश्मा लगाकर स्वंय को ईक्लासेज से कनेक्ट कर लिया। कुछ मिनटों तक अंश यूँ ही बैठा रहा। क्लास का समय हुआ और उसकी इंग्लिस की मैम सामने स्क्रीन पर दिखने लगीं। अंश स्क्रीन की ओर देखते हुए मैंम का बातें ध्यान से सुन रहा था। इस बीच कभी–कभी वह चश्मा ठीक कर लेता। कभी चश्मे के लेंस को पोंछ कर साफ कर लेता तथा ध्यान से लैपटाॅप के स्क्रीन की ओर देखने लगता। अंश को मैंने इस प्रकार करते देखा तो सोचने लगी कि कदाचित् अंश के चश्में का नम्बर बढ़ गया है। इसीलिए वह बार–बार चश्मा ठीक कर रहा है। दो घंटे तक लगातार अंश लैपटाॅप के सामने बैठा रहा। एक मैम पढ़ाकर जातीं तो दूसरी मैम आ जातीं। दो घंटे पश्चात् आॅन लाइन पढ़ाई पूरी कर लैपटाॅप बप्द कर अंश उठा और अपने बिस्तर पर जाकर पुनः लेट गया। अंश मेरा छोटा बेटा है। इस वर्ष प्रमोट होकर वह सातवीं कक्षा में गया है। इसी वर्ष की बात है। मार्च में इसकी परीक्षाएँ हो रही थीं। कुछ ही पेपर हुए थे कि करोना नामक एक नई बीमारी सुनने में आयी। जिसके कारण स्कूल काॅलेज सब बन्द कर दिये गये। कुछ समय बाद सुनने में आया कि यह वायरसजनित बीमारी है जो पूरी दुनिया में महामारी के रूप में फैल गयी है। स्कूल–काॅलेज आदि बन्द होने की तिथि आगे बढ़ती जा रही थी। बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो, तब से बच्चे आॅनलाईन शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। चार माह हो गए अंश को इसी प्रकार पढ़ाई करते हुए। ’’ मम्मी मेरा टैबलेट ठीक से नही चल रहा है। ’’ आज मेरी बेटी ने पुनः मुझसे अपना टैबलेट खराब होने की शिकायत की। मेरी बेटी तान्या नौवीं कक्षा में पढ़ती है। अंश से तीन वर्ष बड़ी तान्या की भी पढ़ाई आॅनलाईन हो रही है। अंश और तान्या के पढ़ने का समय भी लगभग एक ही है। घर में एक ही लैपटाॅप था जिस पर अंश के पापा कभी–कभी अपने आॅफिस के कार्य करते थे। तथा एक टैबलेट था, जो दो वर्ष पुराना है। टैबलेट ठीक ही चल रहा था। इसलिए उसे तान्या को पढ़ने के लिए दे दिया गया। तीन महीने टैबलेट ठीक चला। अब तान्या कई दिनों से कह रही है कि टैबलेट ठीक नही चल रहा है। बीच–बीच में रूक जा रहा है। आज शाम को अंश के पापा घर आएँगे तो मैं उनसे बात करूँगी। ’’ मम्मा मेरी पढ़ाई ठीक से नही हो पा रही है। टैबलेट खराब हो गया है। ’’ तान्या ने आज पुनः कहा। ’’ ठीक है, आज ही मैं पापा से बात करती हूँ। ’’ मैंने तान्या से कहा। ’’ तान्या कह रही है कि उसका टैबलेट खराब हो गया है। चलते–चलते बन्द हो जाता है। आप तो जानते ही हैं कि लैपटाॅप से अंश पढ़ाई करता है। ठीक वही समय तान्वी की पढ़ाई का भी है। ’’ शाम के जब तान्या के पापा आॅफिस से घर आये तो मैंने बच्चों की समस्याएँ उनके समक्ष रखते हुए कहा। मेरी बात सुनकर अंश के पापा सोच में पड़ गये। ’’ क्या सोचने लगे? ’’ अंश के पापा को चिन्तित देखकर मैंने पूछा। ’’ लोनपर पर पैंतालिस हजार का लैपटाॅप लिया। उसकी कुछ किस्तें अभी शेष हैं। अभी एक सस्ता लैपटाॅप भी लूँ तो वह भी दस–बरह हजार से कम न मिलेगा। कहाँ से इतना बजट निकालूँगा? ’’ अंश के पापा के चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ स्पष्ट थीं। अंश के पापा एक सरकारी कार्यालय में बड़े बाबू के पद पर कार्यरत् हैं। दोनों बच्चे अच्छे अंगे्रजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। उनके स्कूल की फीस, पुस्तकें, डेªस, स्कूल आने–जाने के वाहन का पैसे……यानि कि अंश के पापा की कमाई का अच्छा–खासा पैसा बच्चों की शिक्षा पर खर्च हो जाता है। मैं जानती हूँ कि एक और लैपटाॅप जैसी महंगी चीज के लिए पैस निकालना अंश के पापा के लिए सरल नही है। यह नयी समस्या कि दोनों बच्चों के पढ़ने का समय एक ही है। घर में इतने एंड्राॅइड मोबाईल भी नही है कि बच्चों को अलग–अलग एक–एक दे दिया जाए। एक टच स्क्रीन का एंड्रायड मोबाईल फोन है, जो अंश के पापा आॅफिस ले कर जाते हैं। उनका दूसरा पुराना फोन घर मेरे पास रहता है जिसकी बैट्री पुरानी हो गयी है। अधिकांशतः वह चार्जिंग में लगा रहता है। अपनी आज की आॅनलाईन पढ़ाई कर के अंश लेट गया। ’’ अंश उठो बेटा। ब्रश करो। नाश्ता कर लो। समय हो गया। पापा भी आॅफिस चले गये। ’’ अंश से मैंने कहा। ’’ अभी उठता हूँ मम्मा। भूख नही है। ’’ अनमना होते हुए अंश ने कहा। मेरे बार–बार उठाने पर किसी प्रकार अंश उठा औश्र नहा–धोकर बाथरूम से बाहर आया। ’’ बेटा खाना लगा रही हूँ। खाना खा कर ही अब कुछ करो। ’’ मैंने अंश से कहा। ’’ अभी भूख नही है मम्मा। ’’ अंश ने पुनः कहा। ’’ डेढ़ बज रहा है। लंच का समय हो रहा है। चलो कुछ खा लो। ’’ मैंने घड़ी की ओर देखते हुए कहा। न–नुकुर करते किसी प्रकार अंश उठा और डायनिंग टेबल पर बैठकर भोजन करने लगा। मैंने देखा कि अंश ने एक भी रोटी नही ली। उसने छोटी कटोरी में थोड़े से चावल और दाल लेकर किसी प्रकार खाया। भोजन करने के उपरान्त अपने स्टडी रूम में आ गया। कमरे आकर उसने अपना लैपटाॅप चार्जिंग पर लगाया और लैपटाॅप खोल कर बैठ गया। मैं जानती हूँ कि इस समय उसकी कोई ई क्लासेज नही है। समय व्यतीत करने के लिए वो कोई कार्टून देखेगा…नही कुछ तो अपने दास्तों के साथ कुछ देर चैटिंग करेगा। ’’ अंश बेटा, लैपटाॅप लेकर मेरे कमरे में आ जाओ। ’’ मैंने अंश से कहा। ’’ नही माँ। मैं ठीक हूँ। यही बैठूँगा। ’’ अंश ने कहा। मैं चाहती थी कि अंश मेरे सामने बैठ कर लैपटाॅप चलाए। दोस्तों से चैट भी करे। मैं जानती हूँ कि ये चीजें बच्चों के लिए जितनी लाभप्रद हैं गलत उपयोग करने से उतनी ही हानिकारक भी। सोशल मीडिया का प्रयोग बच्चे समझदारी से करें तो ही उसका लाभ ले पाएंगे। क्यों सोशल मीडिया पर अनेक अवांछित चीजें भी उपलब्ध होती हैं। जो बच्चों को ग़लत दिशा की ओर ले जा सकती हैं। आजकल के बच्चे कुछ दशक पूर्व के बच्चों की तुलना में बहुत आगे हैं। उन्हें इन यन्त्रों की समझ हम बड़े लोगों से कहीं अधिक है। मोबाईल और लैपटाॅप के प्रयोग करते समय यदि कोई समस्या आती है तो मैं और अंश के पापा अपने बच्चों की मदद लेते हैं। मुझे खुशी होती है जब बच्चे इस समस्या का समाधान झट से कर देते हैं। इन यंत्रों के बारे में बच्चे हम बडों से कहीं अधिक जानते हैं। अंश बढ़ती उम्र का बच्चा है। मुझे उसका बहुत ध्यान रखना है। अंश को मैंने स्टडी रूम में रहने दिया। बीच–बीच में उसके कमरे किसी काम के बहाने से चक्कर लगा आती। यह देख लेती कि कहीं वह अवांछित साइट या वीडियों तो नही खोल कर देख रहा है। अंश कार्टून ही देख रहा था। तथा कभी–कभी किसी दोस्त से चैट भी कर ले रहा था। मेरा बेटा अंश ऐसा कोई काम नही करता। वह अभी बहुत छोटा है। मैं सावधानी वश अपने बच्चों पर ध्यान देती हूँ। सब कुछ ठीक लगा फिर भी मैं स्टडी रूम के चक्कर लगा ले रही थी। ’’ सुनो! आॅनलाईन पढ़ाई के जितने फायदे हैं उससे अधिक हानि हैं। ’’ अंश के पापा शाम को कार्यालय से घर आये तो फ्रैश होकर चाय पीते हुए मुझसे कहा। ’’ क्यों..क्या हुआ? ’’ मैंने पूछा। ’’ मेरे आॅफिस में मेरे साथ जो काम करता है रितेश? ’’ अंश के पापा ने कहा। ’’ हाँ….हाँ….मैं जानती हूँ। दो वर्ष पूर्व अपनी पत्नी और बेटी के साथ हमारे घर आया था। ’’ अंश के पिता की बात पूरी भी नही हुयी थी कि मैं बीच में बोल पड़ी। ’’ हाँ….हाँ….वही। उसकी बेटी है। तीसरी क्लास में पढ़ती है। अच्छे इंग्लिस मीडियम स्कूल में है। ’’ अंश के पापा बताते जा रहे थे। उनके चेहरे पर कुछ–कुछ निराशा के भाव थे। ’’ हाँ…क्या हो गया? ’’ मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। ’’ हुआ कुछ नही। कल वो उसकी आँख टेस्ट कराने डाॅक्टर के पास ले गया था। बच्ची कई दिनों से आॅखों में कोई समस्या बता रही थी। उसकी एक आँख से पानी आ रहा था। आँख पूरी खुल नही रही थी। कोरोना का समय चल रहा है। कुछ डाॅक्टर क्लिनिक खोल रहे हैं, कुछ नही। बड़ी मुश्किल से एक डाॅक्टर से अप्वाइंट मिला। देखने की फीस भी डाॅक्टर ने खूब बढ़ी दी है। ’’ अंश के पापा बोलते–बोलते चुप हो गए। चेहरे पर वही चिन्ता की रेखाएँ। ’’ फिर क्या हुआ? ’’ मैंने पूछा। ’’ डाॅक्टर ने चेक किया और बताया कि उसकी एक आँख की पुतली घूम कर अपनी जगह से घूम कर हट रही है। इारण उस बच्ची की आँख टेढ़ी होने की सम्भावना है। ’’अंश के पापा ने कहा। ’’ हे भगवान! यह कैसे हो गया? ’’ मेरे मुँह से सहसा निकल गया। बच्ची के बारे में जानकर मुझे दुख हो रहा था। ’’ बच्ची की आॅनलाईन पढ़ाई हो रही थी। एक लैपटाॅप था जिसे लेकर रितेश आॅफिस चला जाता था। बच्ची मोबाईल पर पढ़ती थी। दो–दो घंटे लगातार मोबाईल में देखती थी। उसी का दुष्परिणाम है। डाॅक्टर बता रहा है कि अभी बच्ची को पढ़ाई–लिखाई, मोबईल टीवी0 आदि से कुछ दिनों तक दूर रहना पड़ेगा। ’’ अंश के पापा की बात सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा था। मेरे घर में भी मेरी बेटी और बेटा इसी तरह से पढ़ते हैं। उनको लेकर मेरी चिन्ता बढ़ने लगी थी। ’’ आॅनलाईन पढ़ाई के नाम पर बच्चे सारा दिन मोबाईल देखते रहते हैं। सरकार को चाहिए की आॅनलाईन पढा़ई का एक समय निर्धरित कर दे। पढ़ने का समय भी कम रखें। ’’ मैंने अंश के पापा से कहा। ’’ आॅनलाईन पढ़ाई में मैडम आवश्यक दिशा निर्देश दें। शेष पढ़ाई बच्चे पुस्तकों से करें। ’’ आगे मैंने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा। ’’ हाँ, सुना है शीघ्र ही इस पर कोई विचार होगा। ’’ अंश के पापा ने कहा। ’’ हमारे यहाँ भी तो तान्या का टैबलेट खराब हो गया है। एक लैपटाॅप से अंश पढ़ रहा है। तान्या कई बार कह चुकी है कि उसकी पढ़ाई छूट रही है। क्या करें? एक समस्या हो तो दूर हो जाये?। इन सबमें नेट के पैसे भी जल्दी–जल्दी खत्म हो जाते हैं। ’’ मैंने अंश के पापा से कहा। ’’ पढ़ने के लिए तो तान्या को एक सस्ता मोबाईल फोन दिला सकते हैं। किन्तु छोटे–से मोबाईल में दो–दो, तीन–तीन घंटे आँखें गड़ाकर देखने के दुष्परिणाम भी तो होते हैं। इसीलिए मैंने उसे अपना टैबलेट दे दिया था। जिसकी स्क्रीन अपेक्षाकृत बड़ी होती है।… किन्तु वो खराब हो गया है। ’’ कुछ क्षण चुप रहने के पश्चात् अंश के पापा ने कहा। अंश के पापा सही कह रहे हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार दो बच्चों के लिए अलग–अलग लैपटाॅप व नेट के पैसों का अतिरिक्त खर्च कैसे वहन कर पाएगा? वह भी तब जब सरकारी आदेशों की अवहेलना कर स्कूल भी अपनी पूरी फीस ले रहा है। मध्यम वर्गीय परिवार यह अतिरिक्त खर्च कैसे अफोर्ड कर पाएगा? अंश के पापा बता रहे थे कि स्कूल से बार–बार नोटिस आ रही थी। समय पर फीस जमा नही हुई तो बच्चों का नाम काट दिया जाएगा। इसलिए उन्होंने दोनों की तीन–तीन महीने की फीस इकट्ठी जमा कर दी है। अब इधर बच्चों के स्कूल बन्द है। उसकी भी फीस जमा करने की नोटिस आएगी। उसकी भी व्यवस्था करनी है। मैं जानती हूँ कि इंगलिश मीडियम के प्राइवेट स्कूलों की फीस अन्य स्कूलो बहुत अधिक है। स्कूल छोटे हों या बड़े इन स्कूलों में फीस बढ़ोत्तरी की होड़ लगी रहती है। शिक्षा प्रदान करने में बराबरी हो या न हो। फीस बढ़ाने में बराबरी रहती है। आॅनलाईन शिक्षण चल रही है। कोरोना के कारण स्कूल–काॅलेज बन्द हैं। सही भी है। छोटे बच्चे हों या बड़े, काॅलेज में कहाँ तक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पाएंगे? समय इसी प्रकार भय के साये में बीत रहा है। लाॅकडाउन धीरे–धीरे अन..लाॅकडाउन की ओर बढ़ने लगा है। व्यापारिक प्रतिष्ठान, आवश्यक वस्तुओं की दुकानंे कुछ–कुछ खुलने लगी हैं। स्कूल–काॅलेज अब भी बन्द हैं। ’’ सुनो, तुम अंश पर ध्यान नही दे रही हो। उसका वजन बढ़ रहा है। ’’ कुछ ही दिन व्यतीत हुए थे कि अंश के पापा ने एक दिन मुझसे कहा। ’’ क्या? वज़न बढ़ रहा है? ’’ मैंने अंश की ओर देखते हुए कहा। ’’ हाँ, देखो तो। ’’ अंश के पापा ने कहा। ’’ हाँ, लग तो रहा है। किन्तु इसमें मैंने क्या किया है? दिनभर बैठा रहता है। दो से तीन कमरों तक चलना–फिरना सीमित है। बाहर निकलना नही है। खेल–कूद जैसी शरीरिक श्रम वाली चीजें बन्द हैं। स्कूल जाता था तो वहाँ फिजीकल एक्सरसाईज पी0टी आदि की कक्षाएँ होती थीं। अब सब कुछ बन्द है। आॅललाईन पढ़ना, टी0वी0 देखना, आराम करना, सोना यही तो रह गया है पूरे दिन का बच्चों का शेड्यूल। ’’ अंश के पापा से मैंने कहा। इस बीच ध्यान से मैं अंश की ओर देख रही थी, जो हमारी बातों से अनभिज्ञ कमरे मैं बैठा इस समय टी0वी पर कार्टून देखने में लगा था। आज पहली बार मैंने ध्यान से देखा……हाँ, पहले की अपेक्षा अंश का वेट बढ़ा लग रहा था। वह गोल मटोल, गदबदा–सा, प्यारा–सा हो गया है। मैं माँ हूँ। अपने बेटे को मैं एक माँ की दृष्टि से देख रही हूँ, तो सब ठीक है। यह भी सत्य है कि अभी कुछ माह पूर्व अंश दुबला–पतला सा था। उसके खाने–पीने को लेकर मैं सजग रहती थी। समय≤ पर कुछ न कुछ खाने को देती रहती थी, कि कहीं वह कमजोर न हो जाये। अब ना–नुकुर कर कुछ खा–पी ले रहा है तो उसका वजन बढ़ रहा है। अंश का वजन बढ़ना मेरे मातृत्व के लिए भले ही प्रसन्नता का विषय हो। किन्तु अंश के स्वास्थ्य की दृष्टि मेरी चिन्ता का कारण भी। अभी वह इतना बड़ा नही है कि मैं उसके लिए जिम में प्रयोग होने वाला कोई उपकरण लाकर दे दूँ। न ही हमारे पास इतना बजट। जैसा कि मैंने सुना है कि आजकल लोग ऐसा करते हैं….जिम वगैरह जाते हैं। मैं क्या करूँ? बच्चों के स्वास्थ्य को कैसे सही रखूँ? इनके पापा ने तो अपने मन की बात कह दी और काम में व्यस्त होे गये। इस स्थिति को मुझे ही सम्हालना है। ’’ अंश और तान्या बेटा तुम लोग मेरे पास आओ। ’’ दोनों बच्चों को आवाज लगाकर मैंने उन्हें अपने पास बुलाया। ’’ जी मम्मा, बताईये? ’’ दोनों मेरे सामने आकर खड़े हो गये। ’’ बेटा आप लोग कल से…..कल से नही बल्कि आज से ही एक काम करो।…. ’’ क्या मम्मा? ’’ दोनों एक साथ बोल पड़े। ’’ आप लोग प्रतिदिन अपने घर के बरामदे में टहलेंगे। समय सुबह या शाम का कोई भी हो सकता है। बस, करना ये है कि पहले दिन पाँच मिनट से शुरू करेंगे। धीरे–धीरे थोड़ा समय और बढ़ा देंगे। ये तुम्हारी फिटनेस ने लिए एक अच्छी और सुरक्षित एक्सरसाईज है। ’’ मैंने अपने घर के छोटे–से बरामदे की ओर देखते हुये कहा। बच्चे आश्चर्य से मेरा मुँह देख रहे थे। ’’ बेटा, ऐसा करने से आपकी हेल्थ सही रहेगी और मसल्स स्ट्रंाग होंगे। मसल्स स्ट्रंाग होंगे तो माइण्ड स्ट्रंाग होगा। पढ़ने में मन लगेगा। धीरे–धीरे मैं एक–दो योग के तरीके भी बताऊँगी जो थोड़ा–सा समय निकाल कर आप करेंगे। ’’ मेरी बात सुनकर बच्चों ने स्वीकृति में सिर हिलाया। ’’ ठीक है बेटा, आज से शुरू कर दीजिए। पहले दीदी करेगी फिर अंश करेगा। ’’ बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए मैंने कहा। ’’ पहले मैं…..पहले मैं…. कह कर अंश मचलने लगा। ’’ ठीक है, पहले तुम टहल लो फिर दीदी टहलेगी। ’’ मैंने कहा। अंश टहल रहा था और तान्या तालियाँ बजा रही थी। ’’ ओह…..ये कोरोना भी कैसे–कैसे दिन दिखा रहा है…..? बच्चे, बड़े, बूढ़े सब जीवन के अजीबोग़रीब रंग–ढंग में ढ़लते जा रहे है। सबकी लाइफस्टाईल बदलती जा रही है।….’’ मन ही मन सोचती हुयी मैं बच्चों के लिए नाश्ता बनाने रसोई की ओर बढ़ गयी। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि लहर की कहानी – शिरीष दीपक शर्मा की कहानी – झँकवैया अंजू शर्मा की कहानी – पालना कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. 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