प्रकाशित उपन्यास - 'मन्नू की वह एक रात, बेनज़ीर- दरिया किनारे का ख़्वाब, वह अब भी वहीं है
प्रकाशित कहानी-संग्रह - मेरी जनहित याचिका, हार गया फौजी बेटा, औघड़ का दान, नक्सली राजा का बाजा. मेरा आखिरी आशियाना, मेरे बाबू जी; नाटक– खंडित संवाद के बाद
कहानी एवं पुस्तक समीक्षाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. "हर रोज़ सुबह होती है" (काव्य संग्रह) एवं "वर्ण व्यवस्था" पुस्तक का संपादन. संप्रति : लखनऊ में ही लेखन, संपादन कार्य में संलग्न
सम्पर्क : pradeepsrivastava.70@gmail.com
पिछले सप्ताह ही दिनेश माली जी के द्वारा प्रदीप जी के उपन्यास बेनजीर की समीक्षा पढ़ी थी। समीक्षा ने ही हमें बहुत प्रभावित किया था, पर टिप्पणी में हमने यह लिखा था कि समीक्षा से अधिक प्रदीप जी के परिचय ने हमें प्रभावित किया था। आज उनकी कहानी भी एक साँस में पढ़ गए।
*हॉरर कहानी* कुछ भय, कुछ आश्चर्य, बहुत जिज्ञासा व उत्सुकता के साथ अपने को पढ़ाकर अंत तक ले गई।
शीर्षक सुमन पढ़ कर तो ऐसा लगा था इसलिए प्रधान कहानी होगी पर पता नहीं था कि यह एक हॉरर कहानी है।
कहानी को पढ़कर ऐसा लगा कि कुछ आत्माएँ ऐसी होती हैं, जो मृत्यु के पश्चात भी जीवन के कुछ अनसुलझे विषयों को सुलझाने में मदद कर ही देती हैं।
जैसे इस कहानी में सुमन के आकर्षण ने उसके पिता की गुमशुदगी और उसके माध्यम से ऐसे क्रूर गिरोह का भंडाफोड़ किया जिसमें महिलाएँ पुरुषों को बहला- फुसलाकर अपने वश में करती हैं, उनका गिरोह उन्हें धमकाकर उन्हें मुसलमान बनाकर मानव -अंगों की तस्करी करने का अमानवीय कृत्य करता था। यह एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय गिरोह था। जो एक-एक करके सारे अंगों को निकाल के अंत में बॉडी को जला दिया करते थे।
और अंत में पता चलता है कि वह सुमन की ही आत्मा थी जिसने उसे भी मुश्किल से बाहर निकाला, मानो वह उसका धन्यवाद कर रही हो।
बहुत अच्छी कहानी लगी और सच कहें तो सच्ची भी, क्योंकि हम मानते हैं कि ऐसा संभव है कि आत्माएँ मदद करती हैं। बस वो वास्तव में अच्छी आत्माएँ हों।
पिछली बार बेनजीर की समीक्षा के पूर्व में दिनेश जी ने प्रदीप जी के स्वास्थ्य का हवाला दिया था कि उनका ऑपरेशन होने वाला था उसके पूर्व लगातार अपनी अधूरी कहानी को पूरा करने में लगे थे। संभवत: ऑपरेशन हो चुका होगा और आशा ही नहीं विश्वास है कि वह पूर्णतया स्वस्थ होंगे.
ईश्वर उन्हें सदा स्वस्थ रखे और इसी तरह वे अच्छी-अच्छी कहानी रचते रहें और हम लोग पढ़ते रहें। बहुत-बहुत सारी शुभकामनाएँ।
पुरवाई व तेजेन्द्र जी का आभार तो बनता है इस बेहतरीन कहानी को पढ़वाने के लिए।
बेहतरीन कहानी
वर्तमान का कठोर यथार्थ
समसामयिक परिवेश का सजीव चित्रण
बहुत बढ़िया और बधाई के साथ भविष्य के लिए शुभकामनाएं