Saturday, July 27, 2024
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एस. भाग्यम शर्मा की कहानी – अद्भुत श्रद्धा

राजेश्वरी बहुत ही खुशी और उत्साह के साथ घर के अंदर और बाहर चल रही थी। वह खुश नहीं होगी क्या? आज ही तो अमेरिका से उसका बेटा राजेश, बहू ममता और पोती  चमकू आ रहे हैं। और यहां एक महीने तक रहेगे। :ऐसा उनके कहते ही राजेश्वरी को लगा जैसे उसकी उम्र कम हो गई है।  उसमें एक नई ऊर्जा आ गई है।’ 
राजेश का  जयपुर के पास दौसा डिस्ट्रिक्ट के लालसोट गांव उनका अपना पैतृक गांव है। शादी के बाद उन्हें अमेरिका में नौकरी मिली है उसके बाद वहीं वे रहने लगे। भारत में  अपना पैतृक गांव खेती-बाड़ी और घर होने की वजह से उनके मां-बाप उस गांव में ही रहते रहें थे। उनके पिताजी के देहांत हो जाने के बाद भी अम्मा को भी गांव में है रहना ही उन्हें अच्छा लगता था। अतः वे बेटे के साथ अमेरिका नहीं गई।
जयपुर के एयरपोर्ट से राजेश कार से पत्नी और बेटी के साथ कार से अम्मा को देखने के लिए रवाना हुए। गांव के जाने के रास्ते में चारों तरफ हरियाली और खेत ही खेत थे। रास्ते में कल-कल करती हुई बहती हुई नालें और बड़े-बड़े पेड़ और उसमें पक्षियों का कलरव बहुत ही सुंदर वातावरण लग रहा था। प्राकृतिक वातावरण तीनों के मन को बहुत आकर्षित किया।
बड़ी खुशी के साथ यात्रा करके घर के सामने ही गाड़ी आकर रुकी। सबसे पहले कार के दरवाजे को खोलकर चमकू भागकर उनका इंतजार कर रही दादी के पास गई। “अरे मेरी प्यारी चमकू तू कैसी है? तेरी पढ़ाई खत्म हो गई?” कहकर चमकू को छाती से लगाकर उसे चूमने  लगी। अपने बेटे और बहू को अंदर लेकर आई राजेश्वरी। राजेश्वरी बहुत खुश थी कि अपने बेटे बहू और पोती के साथ बेटा उन्हें देखने आया!  बहुत ही खुश होकर वे लोग आपस में बात कर रहे थे और स्वादिष्ट खाना खाते हुए दो दिन बीत गए थे। तीसरे दिन सुबह किसी के बुलाने की आवाज आने पर चमकू बाहर आई।
एक बुजुर्ग औरत बालों को बांधकर  साधारण  साड़ी पहने हुई वहां  खड़ी हुई थी, चमकू ने उसे आश्चर्य से देखा। उसी समय जल्दी से राजेश्वरी वहां आकर खड़ी हुई “कौन अरे! तुम हो क्या? आजी। तुम्हें आने के लिए मैं कहने वाली थी। विदेश से मेरी पोती आई हुई है। कल घी बनाने के लिए आ जाना आजी।” कहकर उसे भेजा।
“यह कौन है आजी” चमकू ने पूछा। चमकू के साथ ही ही ममता और बेटे ने भी प्रश्नवाचक चिन्ह से राजेश्वरी जी को देखा।
“यह खेती बाड़ी और जानवरों को संभालती हैं। इनका एक ही लड़का था वह गलत लोगों के संगत में पड़ गया था। पीने लगा था और उसने सारे संपत्ति को नष्ट कर दिया। उन्होंने  सोचा “इसकी शादी कर दूं तो यह ठीक हो जाएगा। और अपनी जिम्मेदारी को महसूस करेगा। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और एक दिन खूब पीकर रास्ते में एक्सीडेंट से वह मर गया।
“आजी बहुत अच्छे मन की वाली साफ-सुथरी औरत है। इसकी बहू बहुत छोटी उम्र की लड़की थी। उसे एक अच्छी जिंदगी जीने का हक है सोच कर उसकी उन्होंने दूसरे शादी कर दी। उसका एक बेटा जो था उसे इसने अपने पास ही पोते को रख लिया। उसको स्वयं ने ही पाल-पोस कर पढ़ा लिखा कर बड़ा किया।  बड़े शौक से उसे सेना में भर्ती कराया। मेहनत करके अपनी जिंदगी चला रही है।
इस तरह के लोह-महिला को उसका पोता ‘आजी’ कहकर बुलाता था।
तभी से सभी गांव वाले लोग ‘आजी’ कहकर बुलाने लगे।”
दूसरे दिन आजी आकर मक्खन का घी बनाया  तो पूरे घर में असली घी की खुशबू फैल गई।
राजेश्वरी अपने बेटे के परिवार के साथ ही वे सब लोग विभिन्न दूसरे राज्यों में घूमने के लिए गए । 10 दिन कैसे निकल गए पता ही नहीं चला।
उनके घर पहुंचते ही, दूसरे दिन पड़ोस का रमेश दौड़ा-दौड़ा उन लोगों को ढूंढता हुआ आया । “क्या बात है रमेश! तुम इतने घबराए हुए क्यों हो? क्या बात हो गई?”
“आपको समाचार नहीं मालूम है क्या? सभी पेपर में और न्यूज़ चैनल में आया था ना ! बॉर्डर के युद्ध में एक तमिलनाडु का युवक मारा गया। बोला था ना! वह अपनी घी वाली आजी का ही पोता था! अभी थोड़ी देर में ही उसकी बॉडी को अपने गांव में लेकर आएंगे! पूरे गांव वाले परेशान होकर आजी के घर के पास की इकट्ठा हो गए!”
“क्या! कह रहे हो रमेश! वह बहुत ही बेचारी है। उसने अपने पोते को सेना में है ऐसे जब भी घी बनाने  के लिए आती तब भी अपने पोते के बारे में ही तारीफ करती थी! उस बेचारी को इतना बड़ा दुख कैसे आया? ” इस तरह राजेश्वरी बड़ी दुखी होकर बड़बड़ा रही थी।
रमेश के बोलकर जाने से घर के सभी लोग बहुत ही ज्यादा दुखी हुए। राजेश्वरी का लड़का अपने पूरे परिवार के लोगों को साथ लेकर तुरंत ही उनके  घर की तरफ जाने लगा। थोड़ी देर में ही घर के सामने सेना का वेन आकर खड़ा हुआ। उसमें से आजी के पोते के बॉडी को उतारा। पूरे गांव वाले लोग अपने घर का ही कोई आदमी मर गया हो जैसे बहुत ही दुखी होकर बुरी तरह से रो रहे थे।
परंतु आजी चुपचाप अपने पोते के बॉडी को घूर कर देखती ठोस पत्थर जैसे दिखाई दें रही थी। 
बाड़ी को बकायदा फौजी अंदाज में बड़े इज्जत के साथ उसको शमशान ले जाकर सारे  क्रियाक्रम पूरे किए गए।
इन सब कार्यक्रम खत्म होने के दो हफ्ते बाद, राजेश्वरी जी अपने परिवार के साथ मंदिर जाकर लौट रही थी, तब उसे आजी रास्ते में मिली। बहुत दुखी होकर राजेश्वरी ने आजी को देखा।
“कैसी हो आजी? तुम्हें बहुत बड़ा सदमा लगा है! पर क्या करें तुम्हें इस तरह अपने दुख को अंदर ही अंदर नहीं रखना चाहिए? उस दिन तुम अपने पोते के डेड बॉडी को देख कर भी बिना रोए चुपचाप रहीं! तुम्हें इस हालत में देखकर मैं बहुत दुखी हुई। बहुत बड़ा दुख हुआ तो सही पर इसे  मन के अंदर ही मत रखो। तुम्हारा बेटा मरा था तब भी तुम बहुत बुरी तरह रोई थी और अपने दुखों को घुला दिया।” बहुत ही अपनत्व  से राजेश्वरी संकोच से बोली।
अपने चेहरे पर बिना किसी लाग लपेट के उसने राजेश्वरी को देखा।
“पृथ्वी पर जो भी प्राणी आया है वह किसी न किसी कार्य के निमित ही  उसे भगवान ने उसे पैदा किया है! हम जब तक जिंदा है तब तक हमारे चारों तरफ जो लोग हैं वे भलाई के लिए, अपने देश के लिए और घर के लिए जो भी हो सकता है… हमें उनके लिए उपयोगी होना चाहिए।  इस तरह बिना कोई अच्छा काम किए ही गलत आदतों को करते हुए पीते रहना जैसे  मेरे बेटे ने किया था ! तो  इसलिए जब वह मरा तब उसके बारे में सोच कर क्या मैं गर्व महसूस कर सकती थी ? तुम पैदा हुए उसके लिए तुमने जिम्मेदारी का कोई काम नहीं किया और ऐसे ही अपनी जिंदगी को खत्म कर दिया रे पापी !यही बोलते तो मैं रोई थी। परंतु मेरा पोता हमारे देश के लिए अपने जीवन को निछावर कर दिया। उसने अपने देश के लिए बड़ा महत्वपूर्ण कार्य किया था उसके लिए मैं गौरवान्वित हूं। बेटे की वजह से मेरा सर झुक गया था ! वह सिर अब पोते ने देश के लिए युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त होने से उसके इस त्याग से मेरा झुका सर ऊंचा हो गया! इतने दिनों से वह नार्थ में कहीं है वह मुझे देखने आएगा इसका मैं इंतजार कर रही थी। अब जहां वह चला गया उस जगह मैं भी जाकर उससे मिलने के लिए इंतजार कर रही हूं।” वह बोली।
उसके जवाब में जो दृढ़ता, आत्मविश्वास था उसे चारों तरफ जो लोग खड़े थे उनकी आंखों में भी आश्चर्य से दिखाई दे रहा था। वह पढ़ी-लिखी नहीं थी ।फिर भी कितनी सरल उच्च कोटि की उसकी सोच है और अपने देश के प्रति कितना प्रेम और गर्व है। उस दिन से आजी की इज्जत उस गांव में और भी बढ़ गई थी।
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