वे कविता के दुश्मन हैं
दुश्मन हैं किताबों के
पेड़ों के दुश्मन हैं
सफदर हाशमी के दुश्मन हैं
फिलिस्तीन के आदमी के दुश्मन हैं
वे प्रेमी के दुश्मन हैं
दुश्मन हैं
वे दुश्मन हैं
तुम्हारे दुबले-पतले जीवन के
मौलिक सोच विचार के सोत के
वे फेंकना चाहते हैं तुम्हें
तुम्हारी कविताबीड़ी माचिस सहित
तुम्हारे कमरे से दूर
तुम्हारे काम से बाहर
वे हर रोज़ प्रताड़ित करते हैं तुम्हें
यातना देते हैं
अगर वे तुमको मार भी देते हैं
तभी भी तुम मर नहीं सकते कभी
तुम हो कवि
तुम्हारी कविताओं से
देश के लोग जानते हैं तुम्हें
अभी भी बहुत हैं लोग ऐसे
आशा करता हूं रहेंगे भी
जो सचमुच में
पृथ्वी के लायक हैं
कटे हुए पेड़ को जिया देने वाले प्यारे पानीदार इन्सान।
2 – मेरे गीत मेरे ही सीने में दम तोड़ते हैं
मेरे गीत मेरे ही सीने में दम तोड़ते हैं
गन्ने काटते हुए हांफते हैं
और हार जाते हैं
सांझ ढलते ढलते
गन्ना काटने वाला औजार कहता है
बस करो रहम करो और रहने दो
मैं लोहे का औजार थक गया हूं
गन्ने के पत्ते बहुत छिला चुके हैं
गन्ने बहुत मशीनों में पेरे जा चुके हैं
गन्ने का रस बहुत बह चुका है
लेकिन इससे कुछ नहीं बना
मेरे गीत इससे अधिक पीड़ादायक क्या होगा
मनुष्यता के हत्यारों
युद्ध के सरदारों के
हथियार
थकते नहीं
दम नहीं तोड़ते
हारते नहीं —-सांझ ढलते ढलते।
3 – तुम्हें पेड़ देखेगा तुम क्या कर रहे हो पृथ्वी पर?
उन्हें नारियल के पेड़ों को रोपते हुए
आपने देखा है
मैंने देखा है
उनकी आंखों में कितनी उम्मीदें जाग रही होती हैं
हालांकि उनके खुरदुरे जीवन का सोता सूख चुका होता है
मरने से पहले वे अपनी संतानों से कहते हैं
हम तो मर जाएंगे
इन पेड़ों में तुम गोबर-पानी डालते रहना और इनमें जब रसदार फल आने लगे तब तुम ही देखना
तुम्हें पेड़ देखेगा तुम क्या कर रहे हो पृथ्वी पर?
4 – श्रमिक ब्रह्मपुत्र है
श्रमिक ब्रह्मपुत्र है
मजूरी – मछली के लिए
दूर दूर देश घुमता रहता है
हाथ में फेंका जाल लिए
श्रमिक मल्लाह है
और मछली पकड़ने का काम
पीड़ा भरा..
श्रमिक ब्रह्मपुत्र है
इसे पुरखों से मिली है
उत्थान और पतन
5 – विदा
एक)
विदा कितना छोटा सा सबद है
लौट आना कितना बड़ा और अरथ आसरा भरा
दो)
निर्जन पुल पर मुझसे
नदी ने कहा विदा
मैंने कहा अच्छा?
नदी सुरज को अंकवार भर
मिल रही थी
तुम्हारी तरह प्रिया तुम्हारी तरह