Tuesday, October 8, 2024
होमकहानीसतीश सिंह की कहानी - केबिन वाला सीएम

सतीश सिंह की कहानी – केबिन वाला सीएम

प्रेम की शुरू से ही ऑफिस से लौटने के बाद स्नान करने की आदत थी। ठंड के दिन में भी वह नहाने के बाद ही डिनर करता था। आज भी घर पहुंचते ही हमेशा की तरह वह मास्टर बेडरूम के अटैच बाथरूम में स्नान करने के लिए घुस गया। हालांकि, छोटी बेटी ने हर दिन की तरह दरवाजा खोलने के बाद अपने पुराने सवाल को दोहराया, “डैड; आपका आज का दिन कैसा रहा?” हर दिन प्रेम का जबाव होता था, “हैक्टिक”, लेकिन आज वह बिना जबाव दिए मुस्कराते हुए बाथरूम में घुस गया।
बाथरूम से बाहर आने के बाद भी प्रेम मुस्करा रहा था। वाइफ, स्मृति बहुत देर से प्रेम के चेहरे को वॉच कर रही थी, जब प्रेम का मुस्कराना बंद नहीं हुआ और न ही मुस्कराने की आवृति कम हुई तो स्मृति को लगा, प्रेम की अपनी पुरानी प्रेमिका भानुमति से मुलाक़ात हो गई है या उससे बात हुई है या उसके दिमाग का कोई स्क्रू ढीला हो गया है। प्रेम का जीवन एक खुले किताब की तरह था। कुछ भी स्मृति से छुपा नहीं था। 
प्रेम; अमूमन डिनर जमीन पर बैठकर करता था, हालांकि, तोंद ज्यादा निकल जाने के कारण उसे थाली हाथों से पकड़कर डिनर करना पड़ता था या फिर वह थाली को स्टूल पर रखकर डिनर करता था। ऑफिस में लंच दोपहर के 1 बजे के आसपास करने के कारण, रात्रि के 9 बजते-बजते उसे जोर की भूख लग जाती थी। इसलिए, डिनर करने में प्रेम कभी भी देर नहीं करता था। अगर डिनर तैयार नहीं रहता था तो वह घर में खाने का जो भी खाद्य पदार्थ रेडीमेड उपलब्ध रहता था, उसे खाने लगता था। फ्राई काजू उसका सबसे प्रिय स्नैक्स था। महीने में 3-4 किलो काजू वह खा जाता था। तेज भूख लगने के कारण वह डिनर के लिए बीबी-बच्चों का भी इंतजार नहीं करता था, लेकिन आज सबकुछ उल्टा हुआ, क्योंकि घर में कदम रखते ही प्रेम ने कहा, “आज वह सभी के साथ डिनर करेगा।“ 
डिनर करने के समय भी जब प्रेम का मुस्कुराना बंद नहीं हुआ तो स्मृति पूछने के लिए मजबूर हो गई, “क्या बात है, क्यों लगातार मंद-मंद मुस्करा रहे हो, आज क्या भानुमति से तुम्हारी बात हुई है या फिर मुलाकात।“ “अरे नहीं यार, तुम हमेशा मजे लेती रहती हो, आज कहानी का एक उम्दा शीर्षक दिमाग में आया है, पहले तुम्हें फोन करके बताना चाहता था, फिर सोचा, घर पहुँचकर तुम्हारे साथ उसके गुण-दोष की चर्चा करूंगा, वैसे, इसे कई लोगों के साथ साझा किया हूँ, सभी तारीफ कर रहे हैं, मुझे भी शीर्षक को याद करके अप्रतिम खुशी हो रही है, दिल खोलकर हंसने का मन कर रहा है, चूंकि हंसने पर लोग पागल समझेंगे, इसलिए, सिर्फ मुस्कराकर काम चला रहा हूं।“, प्रेम ने हँसते हुए कहा।
“क्या है तुम्हारी प्रस्तावित कहानी का शीर्षक” स्मृति ने पूछा। डियर, उसका नाम है, “केबिन वाला सीएम”. प्रेम, स्मृति को कई बार प्यार से डियर के नाम से संबोधित करता था। स्मृति ने जबाव दिया, “यस, यह कैचिंग नाम है”। कहानी या कविता या लेख की सफलता में या फिर उसके लोकप्रिय होने में शीर्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए, प्रेम; कहानी या कविता या लेख के शीर्षक को चुनने में बहुत ज्यादा सावधानी बरतता था। 
प्रेम की दिनचर्या अन्य नौकरीशुदा लोगों से अलग थी, दिनभर ऑफिस के काम में बिजी रहता था, लेकिन उसका मस्तिस्क चौबीस घंटे और 365 दिन रचनात्मक बना रहता था। वह बाथरूम में हो या फिर लंच या डिनर कर रहा हो, सफर में हो या फिर कार या बाइक चला रहा हो,   उसके दिमाग का कहानी, कविता या लेख आदि के लिए प्लॉट या बिंब का ढूंढना जारी रहता था और वह इंसान, वस्तु, जगह आदि में से किसी न किसी पात्र को खोज निकालता था।  
प्रेम, स्मृति से बोला “अरे यार ऑफिस में एचआर विभाग में पदस्थ एक ऐसा सीएम है, जिसका कैरेक्टर बहुत ही इंट्रेस्टिंग है, सबसे दिलचस्प उसके चलने का अंदाज एवं बोलने का लहजा है, जिसमें घमंड के पुट को साफ-साफ देखा जा सकता है, कहते-कहते प्रेम फिर से हंसने लगा”. प्रेम के हावभाव से स्मृति समझ गई, कहानी बहुत ही दिलचस्प है, अन्यथा प्रेम इतना ज्यादा खुश नहीं लेता। प्रेम अंतर्मुखी था। कम्यूनिकेशन स्किल की कमी थी उसमें। अंजान व्यक्ति से संवाद करने में हमेशा उसे दिक्कत होती थी। इसलिए, उसके गिने-चुने मित्र थे। रिशतेदारों से भी वह बहुत ही कम बातचीत करता था।   
प्रेम ने कहा, “राज चोपड़ा नाम है उसका, उसकी लंबाई लगभग 5 फीट 3 इंच की है, गोल- मोल कद-काठी है, दिखने में ठिगना सा है, आगे से तीन चौथाई गंजा है, सिर के पिछले हिस्से में कुछ बाल जरूर बचे हैं, मूँछ भी घनी नहीं है, आसानी से बालों को गिना जा सकता है, फिर भी, वह बड़ी तन्मयता से उन्हें कंघी से हमेशा संवारता रहता है, थोड़ा कनैचा भी है, एक आंख से तिरछा देखता है, गर्दन नहीं के बराबर है, तोंद भी निकली हुई है, लेकिन नितंब सिकुड़ी हुई है, पैर बेहद ही पतले हैं, लगता है कि पतले बाँस के ऊपर घड़ा रखा हुआ हो, कुल मिलाकर उसका व्यक्तित्व ऐसा है, जिसे कोई भी एक बार देखने के बाद कभी नहीं भूल सकता है। 
राज की एचआर में पोस्टिंग डिप्टी मैनेजर में प्रोन्नति होने के बाद हुई थी और अब सीएम बनने के बाद भी वह वहीं बना हुआ है। काम में भले उसकी पकड़ नहीं थी, लेकिन बॉस को मैनेज करने में वह माहिर था। गज़ब की ठसक थी उसमें। डेप्युटी जनरल मैनेजर से भी सीधे मुंह बात नहीं करता था।  
कंट्रोलर के कंधे पर हाथ रखकर फ्लोर पर चहलकदमी करते हुए उसे अक्सर देखा जाता था।  15 मंजिल की ऑफिस में वह इकलौता सीएम है, जिसके पास एक शानदार केबिन है। उसे केबिन देने की भी एक कहानी है। कहा जाता है कि एक एजीएम से छीन कर केबिन उसे दी गई थी, अन्यथा केबिन पाने का पात्र वह नहीं था। संस्थान के निर्देशानुसार सिर्फ एजीएम और उसके ऊपर के अधिकारी को ही केबिन आवंटित की जा सकती थी।   
केबिन के चक्कर में एचआर में पदस्थ दूसरे सीएम भी नाराज थे। ईर्ष्या और द्वेष की आग बहुत लोगों के मन-मस्तिष्क में जल रही थी और जलने की महक बहुत सारे विभागों में फैली हुई थी। फिर भी, किसी ऑफिसर की हिम्मत चू-चाँ करने की नहीं थी। लोगों के मन में राज का जबर्दस्त खौफ़ था। विरोध का सीधा अर्थ था तबादला और हर कोई इस खतरे से बचना चाहता था।       
सीएम और एजीएम की ट्रांसफर-पोस्टिंग की जिम्मेवारी राज के कंधों पर थी। वैसे, संस्थान को उससे यह भी उम्मीद थी कि वह ऑफिसर के स्ट्रेंथ और वीकनेस, विभागों, शाखाओं और कार्यालयों की जरूरत व प्रकृति को भी समझे, ताकि स्टाफ को उसके अनुभव और स्किल के अनुरूप ट्रांसफर या पोस्टिंग किया जा सके। 
राज के पास ऐसी कोई समझ, अनुभव व जानकारी नहीं थी और न ही वह सीखने व समझने के लिए उत्सुक था। उसकी मानसिकता इतनी ज्यादा नकारात्मक थी कि वह स्पाउज़ ग्राउंड पर भी हसबैंड और वाइफ को एक जगह पोस्टिंग या ट्रांसफर नहीं करता था। उसके मन-मस्तिष्क में अहम कूट-कूट कर भरा था। हालांकि, ऑफिसर के स्किल के प्रतिकूल उसकी पोस्टिंग या ट्रांसफर करने के कारण ऑफिसर और संस्थान दोनों के प्रदर्शन में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी, लेकिन इस बीमारी को कोई समझ नहीं पा रहा था।  
एचआर विभाग का सीधे तौर पर बिजनेस से कोई लेना-देना नहीं होता है, लेकिन किसी भी संस्थान के मुनाफे, उसके अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने और उसके विकास को सुनिश्चित करने में एचआर मैनेजर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन राज जैसे लोगों को और उसके पैरोकारों को यह बात कभी भी समझ में नहीं आयेगी। बंदर के हाथों में उस्तरा दे दिया गया है, अब नुकसान किसका होगा का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है।
सतीश सिंह
अहमदाबाद
मोबाइल- 8294586892
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

  1. अच्छी कहानी है आपकी सतीश जी!
    आपकी इस कहानी को पढ़कर पता लगा कि लेखन का जुनून किस-किस तरह का होता है।

  2. कथा तत्व का अभाव सा लगा कथा में।पढ़ते समय संस्मरण पढ़ने जैसी अनुभूति हुई।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest