उसदिनकोयलेसेभरीट्रकजोकोलडिपोपरशामकोलोडखड़ीथीचारबजेभोरजंगलरास्तेसेचोरीकाकोयलालिएभागखड़ीहुई।थानेकेबड़ाबाबूनेउसेधरदबोचाथा।फिरभीउसपरकोईआंचनहींआनीथी–नहीआई।लापरवाहीकाआरोपलगासीसीएलगार्डपर –होमगार्डपरभीनहीं।दोसीसीएलगार्डसस्पेंडकरदियेगये।परलालजीसाहूकोएकवार्निंगलेटरतकनहींमिला।उसकेकामऔरकाबिलियतपरअधिकारियोंकाभरोसाबनारहा।लालजीसाहूभीअपनेकोलियरीअधिकारियोंकोखुशरखनेवालेतरहतरहकेनुस्खेआजमातेरहा।किसकोवियर–दारूपसंदहैकिसकोचिकेनचिल्लीऔरकिसकोचमड़ीपसंदहैयहलालजीसाहूकोभली–भांतिपताथा।इसीदमपरतोवहअपनीजगहटिकाहुआथा।पीओ– मैनेजरबदलतेरहे, एरियाजीएमबदलतेरहे।लालजीसाहूका भीकार्यस्थलबदलता रहालेकिनकमाई नहीं बदला-कमनहींहुआ।चारसालकांटाघरमेंकामकियाऔरपांचसालपरमिटआफिसमें।इधरछःसालसेसेलआफिसमेंअंगदकीतरहजमेहुएथावो।ऐसीबातनहींथीकिआंखमूंदसभीउसकासपोर्टकर रहेथे, क्षेत्रकेकईसंगठनोंकीदर्जनोंशिकायतेंविजिलेंसआफिसकेफाइलोंमेंदबीपड़ीहुईथी।परकोईउसेउठाकरपढ़ताभीहोगामुझेनहींलगताथा।विजिलेंसआफिसपहुंचनेवालेअधिकांशपत्रडिस्पैचथ्रोआताथा।लालजीसाहूडिस्पैचबाबूकोभीपटारखाथा।जिसपत्रकोविजिलेंसअधिकारीकेपासजानाचाहिएवोडस्टबिनमेंपहुंचजाताथा।
इधरबहुतदिनोंसेविजिलेंसटीमकीनजरलालजीसाहूपरलगीहुईथीपरइसबातकीखबरकिसीकोनहींथी।साप्ताहदिनपहलेएरियाजीएमकाट्रांसफरहोचुकाथाऔरनयेजीएमडांडेसाहबनेकार्यभारभीसंभाल लिया था ।
बहारोंका एक खुशहाल जीवनजीनेवालेलालजीसाहूकेजीवनमेंउसवक्तवज्रपातहुआजबहेडक्वार्टरकीविजिलेंसटीमनेतारापुरकोलियरीकेकांटाघर, परमिटआफिसऔरसेलआफिसतीनोंजगहोंपरएकसाथछापेमारीकरबही–खातेजब्तकरसाथलेतेचलेगए।
जो अखबार इसके खिलाफ मुंह नहीं खोलता था और हर माह हजारों खाते और डकार तक नहीं लेते थे वही आज लालजी साहू को लंपट तक लिखने से नहीं चूक रहे थे । ऐसे अखबारों पर लालजी साहू को मूतने का मन कर रहा था और एक दिन मूतेगा भी पर इसके लिए आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा ।
यधपि निशाने पर लालजी साहू आ गया था ।अभी तक उसे काबिल और बेदाग समझने वाले भी एक एक कर किनारे होने लगे । एक साथ सभी का जमीर जैसे जाग उठा था खांशी की भी दवा पहुंचाने वाला लालजी साहू अब दाद खुजली वाला कुत्ता नजर आने लगा था ।
इसी बीच एक दिन लालजी साहू घूमता हुआ उस “ संम्प “ एरिया में चला गया था । जहां दो मोटर पंप लगातार खदान का पानी बाहर फेंकते मिला । पर एक भी आदमी काअता पता नहीं । भांय -भांय सी करती वह जगह बेहद डरावनी लगी थी उसे । इस जगह किसी को मार कर फेंक दिया जाए या किसी को कुछ हो जाए तो कोई ढूंढने भी नहीं आयेगा ।
ऊफ ! कुछ ही देर में वह वहां से भाग खड़ा हुआ था ।
कोलियरी मे संडेय –पी एच डी की महिमा और सत्यनारायण कथा की महिमा अपरम्पार ! मतलब कि कोलियरी में संडेय-पी एच डी का उतना ही महत्व है जितना कि बीबी के भाई साले की । अगर आप कोलियरी में कार्यरत है और संडेय-पी एच डी आपके पेमेंट स्लीपमें नहीं जुड़ता है तो आपके घर का नेटवर्क ठीक से काम नहीं करेगा । यह भी लालजी साहू कहा करता था -मैं नहीं !
लालजीसाहूनेभीऐसाहीएकनिर्णयलियाथा। विजिलेंस टीम रिपोर्ट पर कफ़न ओढ़ाने और चरित्रवान अफसरों को नंगा करने का निर्णय । इसके लिए वो सब कुछ दांव पर लगाने को उतावले हो उठा था । ऐसा उतावलापन कभी कभी ही किसी में देखा जाता है तो लालजी साहू ने एकदांवखेलाथा – एकजुआ ! चालसहीपड़ीतोलौटेदिनबहारके,उल्टेपड़ेतोलोगोंकोमुंहदिखानेकेकाबिलनहींरहेगा।उसस्थितिमेंआत्म्हत्याकेलिएसम्पएरियाकेबंदखादानसेबेहतरजगहदूसरानहींहोसकताथाउसकेलिए…!
स्कॉर्पियो सीधे जी एम डांडे साहब के बंगले के बाहर जाकर रूकी । लीलावती गाड़ी से नीचे उतरी और गेट के पास जाकर खड़ी हो गई । स्कॉर्पियो कुछ आगे जाकर खड़ी हो गई थी ।
कुछ देर बाद ही गेट खुल गया था। सामने छियालिस वर्षीय डांडे साहब खड़ा था ।हाथ बढ़ाकर उसने लीलावती को अंदर लिया और गेट बंद कर दिया । बिरयानी की खुशबू थी या बदन की महक ! डांडे साहब बेकाबू हुए जा रहा था । चलते चलते सहसा लीलावती के पांव रूक सा गया । डांडे साहब ने कोंचा-“ रूक क्यों गई? घबराओ नही,अपना ही घर जैसा लगेगा ..!”
अंदर कमरे की सजावट बेहद शानदार थी । ऐशो आराम की सारी चीजों से सुशोभित ! आलिशान बंगले का आलिशान कमरा ! लीलावती ने अपने घर के कमरे को याद किया । कई कमियां नजर आई । अंदर से एक आह ! निकली । काश ! अपना वाला भी ऐसा ही होता !तो रानी लगती-रानी !
डांडे साहब ड्रींक बनाने में मग्न था । तभी लीलावती के कानों में आवाज पड़ी –“ क्या करने जा रही हो लीलावती ? घर में किटी पार्टी और तुम्हारा ब्यूटी पार्लर का दौर चलता रहे, इसीलिए यह सब तुम करने चली आई । जरा सोचो, आज डांडे साहब के बिस्तर की बिरयानी बनोगी,कल पांडेय साहब की और फिर आगे किसी ओर की ? एक बार खुली तो फिर साड़ी समेटने का मौका नहीं मिलेगा । क्या औरतें सिर्फ भोग्या वस्तु और बिस्तर की रौनक बढ़ाने के लिए ही पैदा होती है ? उसका अपना कोई जीवन नहीं होता है ? सदियों से हमें छला गया है, आज भी तुम उन्हीं का साथ देने जा रही हो । रूको ! मेरी बात सुनो। तुम पढ़ी लिखी हो समझदार भी हो । तुम्हारे पति को मालदार पद से हटाया गया है, नौकरी से नहीं । कोलियरियों में ऐसे हजारों वर्कर काम करते हैं जिनको कभी संडेय पी एच डी नहीं मिला -पता करो, उसके घर की बीवी-बेटियां यह सब कुछ करती है-फिर तुम क्यों? संडेय पी एच डी के बगैर केवल तनख्वाह के पैसों से रूखी सूखी दाल-रोटी खाकर एक आजाद जिंदगी जिया जा सकता है! निर्भर करता है आदमी की सोच पर पर ! अब तुम्हें तय करना है कि तुम कौन सी जिंदगी पसंद करती हो ……..? “
नशे में झूमता डांडे साहब लीलावती को लीलता कि लीलावती ने उसे रोक दिया-“ रूको ! दूर हटो ! मुझे जाना है-जाने दो …!”
“ अरे, क्या हुआ? मान भी जाओ..! मैं तुम्हारे पति को फिर कोई मालदार…!”
“ मैंने कहा न ..यह सब यहां नहीं होगा ! , मुझे आपके बिस्तर की बिरयानी नहीं बननी है । किटी पार्टी, ब्यूटी पार्लर सब बंद ! पर यह धंधा भी नहीं करूंगी…!” और वह दरवाजे की ओर लपकी पर उसके पहले डांडे साहब उस पर लपक गया । दोनों ओर से जोर अजमाइश! कशम कश!
“ कैसे नहीं होगा….? शरीर में उबाल लाकर कहती हो यह सब यहां नहीं होगा…क्यों ..?” और डांडे साहब ने लीलावती को फिर दबोचना चाहा । तभी लीलावती ने उसे जोर से धक्का दे दी-“ नहीं ई ई..!” डांडे साहब संभल न पाए और लड़खड़ाते हुए ड्रींक टेबल से जा टकराये । अगले ही पल लीलावती कमरे से बाहर निकल आई । उसे पति की याद आई । वह दौड़ते हुए गेट तक पहुंची । गेट से बाहर निकली और बेतहाशा स्कॉर्पियो की ओर दौड़ पड़ी । जो कुछ ही दूर पर खड़ी थी । जब वह पति से लिपटी उसकी सांसें उपर नीचे हो रही थी। छाती जोर जोर से फूल पिचक रही थी । कई पल तक पति से लिपटी रही ।तब कहीं जाकर उसकी जुबान खुली । बोली –“ लालजी मैं यह सब नहीं करूंगी । तुम मुझे जिस हाल में रखोगे, मैं तुम्हारे साथ उसी तरह गुजर बसर कर लूंगी । पर यह सब नहीं करूंगी । नौकरी है न । जैसे और जीते हैं हम भी जी लेंगे ….!”और वह फिर पति से लिपट गई। लालजी साहू ने स्कॉपियो घर की ओर मोड़ दिया था ।
श्यामल बिहारी महतो
प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित और “ उबटन “ संग्रह प्रेस में
संप्रति : तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय
कभी-कभी अपने लेखन में प्रादेशिक बोली के कारण कुछ भाषागत व वर्तनी गत दोष नजर आते हैं। कहानी को पढ़ते हुए यही महसूस हुआ।
लालजी का वर्णन कुछ ज्यादा ही खिंच गया।
एक बार पुनः इसे देखिये।
आपकी कहानी को पढ़ते हुए जब आगे बढ़े तब आपके परिचय से यह बात समझ में आई कि कहानी आपके कार्य क्षेत्र से ही जुड़ी हुई है।
क्षेत्रीय बोली या भाषा कई बार हिंदी लेखकों या कवियों के सामने भाषा या वर्तनी की त्रुटि बनकर नजर आती हैं।यह हमने महसूस किया।
वही बात यहाँ भी नजर आई।
पूर्वार्द्ध में लालजी साहू का वर्णन अधिक खिंच गया। ऐसा लगा।
वक्त पर पत्नी की चैतन्यता सकारात्मक संदेश देती है।
बधाई आपको।
आभार पुरवाई।
कभी-कभी अपने लेखन में प्रादेशिक बोली के कारण कुछ भाषागत व वर्तनी गत दोष नजर आते हैं। कहानी को पढ़ते हुए यही महसूस हुआ।
लालजी का वर्णन कुछ ज्यादा ही खिंच गया।
एक बार पुनः इसे देखिये।
आपकी कहानी को पढ़ते हुए जब आगे बढ़े तब आपके परिचय से यह बात समझ में आई कि कहानी आपके कार्य क्षेत्र से ही जुड़ी हुई है।
क्षेत्रीय बोली या भाषा कई बार हिंदी लेखकों या कवियों के सामने भाषा या वर्तनी की त्रुटि बनकर नजर आती हैं।यह हमने महसूस किया।
वही बात यहाँ भी नजर आई।
पूर्वार्द्ध में लालजी साहू का वर्णन अधिक खिंच गया। ऐसा लगा।
वक्त पर पत्नी की चैतन्यता सकारात्मक संदेश देती है।
बधाई आपको।
आभार पुरवाई।