होम कविता सूर्यकांत शर्मा की कविता – आँखें कविता सूर्यकांत शर्मा की कविता – आँखें द्वारा Editor - March 9, 2024 63 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet अनंग ख़्वाब की प्यास जगाती आँखें। अभिसार आमंत्रण देती आँखें। आप्त काम सी काम कमान आँखें। भविष्य आंकती आँखें जीवन बरगद ताकती आँखें। जीवन समर झांकती आँखें। सृजन विहंगम दृश्य निहारती आँखें। साहिर की सहर का इंतज़ार करती आँखें। आधी आबादी को समान अधिकार का सपना संजोती आँखें। कितने कितने सपनों को संवारती आँखें। आँखों को आँखों से बुहारती आँखें। आँखों ही आँखों में समझाती आँखें। सूर्यकांत शर्मा संपर्क – suryakant_sharma03@yahoo.co.in संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं शोभा प्रसाद की तीन कविताएँ सावित्री शर्मा ‘सवि’ की कविता – चुनावी रंग दीपमाला गर्ग की कविता – ज़िंदगी के इम्तहान 1 टिप्पणी अच्छी कविता है सूर्यकांत जी आपकी!आपकी कविता को पढ़कर आंखें पिक्चर की याद हो आई !उसमें गाना था -उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता।…… उसकी एक पंक्ति है- “हर तरह के जज़्बात की है ऐलान हैं आंखें” वही भाव महसूस हुआ। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
अच्छी कविता है सूर्यकांत जी आपकी!आपकी कविता को पढ़कर आंखें पिक्चर की याद हो आई !उसमें गाना था -उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता।…… उसकी एक पंक्ति है- “हर तरह के जज़्बात की है ऐलान हैं आंखें” वही भाव महसूस हुआ। जवाब दें
अच्छी कविता है सूर्यकांत जी आपकी!आपकी कविता को पढ़कर आंखें पिक्चर की याद हो आई !उसमें गाना था -उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता।……
उसकी एक पंक्ति है-
“हर तरह के जज़्बात की है ऐलान हैं आंखें”
वही भाव महसूस हुआ।