Tuesday, October 8, 2024
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सूर्यकांत शर्मा की कविता – आँखें

अनंग ख़्वाब की प्यास
जगाती आँखें।
अभिसार आमंत्रण देती
आँखें।
आप्त काम सी
काम कमान आँखें।
भविष्य आंकती आँखें
जीवन बरगद ताकती
आँखें।
जीवन समर झांकती
आँखें।
सृजन विहंगम दृश्य
निहारती आँखें।
साहिर की सहर का इंतज़ार करती आँखें।
आधी आबादी को
समान अधिकार का
सपना संजोती आँखें।
कितने कितने सपनों को
संवारती आँखें।
आँखों को आँखों से
बुहारती आँखें।
आँखों ही आँखों
में समझाती आँखें।
सूर्यकांत शर्मा
संपर्क – [email protected]
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1 टिप्पणी

  1. अच्छी कविता है सूर्यकांत जी आपकी!आपकी कविता को पढ़कर आंखें पिक्चर की याद हो आई !उसमें गाना था -उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता।……
    उसकी एक पंक्ति है-
    “हर तरह के जज़्बात की है ऐलान हैं आंखें”
    वही भाव महसूस हुआ।

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