कितनी खुशी हुई थी ये जानकर कि अब नियोजित शिक्षिकाओं को भी विशेषावकाश मिलेगा। रेखा ने इस खुशी में पूरे स्टाफ में मिठाई बंटवाई थी। आखिर सबसे ज्यादा परेशान तो वही रहती थी। माहवारी के पहले दो दिन तो बिस्तर पर पड़ी छटपटाती रहती है। अगर रविवार या कोई छुट्टी पर हुआ तो ठीक, वरना दो सी० एल० (आकस्मिक अवकाश) तो कट ही जाते हर महीने। अक्टूबर आते आते सभी सी० एल० समाप्त हो जाते।बेचारी को उतने दर्द में भी विद्यालय आना पड़ता। प्रधानाचार्य ने बहुत दया की तो एक दो घण्टी बाद घर जाने दिया।अब किसी की चिरौरी, दया की जरूरत नही पड़ेगी। हक से छुट्टी मिलेगी।
अचानक पेट के निचले हिस्से में जोर से दर्द ( पीरियड क्रैम्प्स) हुआ और रेखा ख्यालों से बाहर आई। एक छात्रा की बेंच पर बैठ गई। परीक्षा ड्यूटी थी, छुट्टी मांग नहीं सकती। घड़ी की ओर नजर घुमाई अभी परीक्षा समाप्त होने में एक घंटा शेष है। कॉपी जमा करवाते करवाते पंद्रह- बीस मिनट और लग जाएंगे। उसने पर्स से हाजमोला निकाला और चुभलाने लगी। डकार आई, थोड़ी गैस निकली तब थोड़ी राहत हुई। खड़ी होकर टहलने लगी। आज से तीन वर्ष पहले जब पहले पहल नियोजित शिक्षिकाओं के विशेष अवकाश के लागू होने की खबर सुनी थी, सब महिलाएँ कितनी खुश थीं। एक दूसरे को बधाई दे रही थीं। श्वेता जी बोलीं मुझे तो कुछ खास दिक्कत नहीं होती है। ऐसा करूंगी अपना विशेषावकाश रेखा को दान कर दूंगी, ये बहुत परेशान रहती है। पूरे स्टाफरूम में ठहाके गूंज गए थे।
तभी वार्निंग बैल बजी। परीक्षा हॉल में हलचल होने लगी। पन्नों के फड़फड़ाने की आवाजें सुनाई देने लगी। बच्चों के हाथ जल्दी-जल्दी चलने लगे। दस मिनट बाद अंतिम घंटी बजी। रेखा ने “मैम प्लीज एक मिनट”, “मैम बस थोड़ा सा” की गुहार को नजरअंदाज करते हुए फटाफट कॉपियां एकत्रित की और जाकर नियंत्रण कक्ष में जमा करवा दी। फटाफट तेज कदमों से चलते हुए रोड पर आ गई। जरा सी देर में पूरा शहर रुक जाएगा विद्यार्थियों की भीड़ रोड पर आ जाएगी और जाम लग जाएगा। जाम लग गया तो फिर घंटो लग जाएंगे शहर से निकलते निकलते। एक ऑटो मिला।फरवरी आ गयी थी फिर भी हवा में कनकनी थी। ऑटो में ठण्ड लग रही थी। वो तो भला हो कि घर ज्यादा दूर नही था। शहर से निकले कि 15 मिनट में घर। रेखा का विवाह हुआ तो कितनी खुश थी वो। शहर से सटा गाँव होने के कारण गाँव और शहर दोनों का मजा आता था। सड़क के दोनों ओर पीले फूलों की चादर बिछी थी। मह मह सरसो महक रही थी।किनारे किनारे तीसी के फूल! मानों पीले चादर की नीली बार्डर हो। फरवरी का महीना कितना अच्छा लगता है, रेखा ने सोचा। घर आ गया। चार कट्ठा में फैला घर। बड़ा अहाता। रेखा गेट खोलकर भीतर गयी। दोनों ओर गेंदे, गुलाब की कतारें। एक ओर टमाटर, धनिया, हरी मिर्च, बैगन की क्यारियां। भीतर जाकर मुंह हाथ धोया।कपड़े बदलकर नाइटी डाली । दोनों बच्चे स्कूल से आकर खाना खा चुके थे। वह बेडरूम में जाकर लेट गई। तभी माँ जी कमरे में आईं।
“क्या हुआ बहु? खाना नहीं खाओगी?”
“नहीं माँ जी पेट में दर्द है।”
“तो दवा ले लेना। दवा है या नहीं?”
“है माँ जी।”
दवा लेकर रेखा बिस्तर में लेट गई। लेटते ही अतीत के ख्यालों में खो गयी । शुरुआत के छः महीने तक तो वह समय पर छुट्टियां लेती रही। घर वालों को विशेषावकाश के बारे में नहीं पता चला । पर सातवें महीने ईद की छुट्टियों में पीरियड्स आ गए। उसने उसके बाद दो दिनों का विशेष अवकाश ले लिया ताकि अगले महीने समय पर ले सके। घर के लोग दंग थे। स्वस्थ रहते हुए या घर का कोई खास काम ना होने पर रेखा कभी छुट्टी नहीं लेती! फिर आज क्या बात है! माँ जी को पता चला अभी दो दिन छुट्टी है, तो उन्होंने फटाफट गेहूँ धोने सुखाने का काम लगा दिया। माँ जी सत्तर वर्षीय बुजुर्ग महिला थी। जवानी में बहुत मेहनती थी। अब शरीर साथ नहीं देता, पर मन तो हार नहीं मानता था। कोई भी काम पूरे जोश से शुरु कर देती, पर थोड़ी देर में थक जाती । फिर रेखा को मजबूरी में सब समेटना पड़ता। उस दिन भी गेहूँ लेकर फटकने लगी। रेखा ने साथ-साथ दो दिनों में पूरा गेहूँ फटक कर धो- सुखाकर रख दिया। अब तो माँ जी की लॉटरी लग गई । दो दिनों का विशेष अवकाश उनके नाम जाने लगा। कभी अचार बनाना, कभी बड़ियाँ बनवाना, कभी घर की पूजा, कभी जाले उतारकर घर की पूरी सफाई, कभी किचन की धुलाई, हर महीने कोई ना कोई काम आ जाता। पीरियड्स के लिए वही पुराना एक दिन का आकस्मिक अवकाश और दूसरे दिन किसी तरह दर्द झेलती चली जाती विद्यालय। कभी रविवार या कोई छुट्टी पड़ गई तो राहत होती।
तभी माँ जी गर्म पानी, अजवाइन और काला नमक लेकर आ गयीं। “लो बहु, गर्म पानी के साथ खा लो। राहत मिलेगी।” रेखा ने खा लिया तो माँ जी उसका पेट धीरे-धीरे सहलाने लगी। राहत मिली तो रेखा सो गई। पता नहीं कब तक सोई रही। अचानक तेज आवाज सुनकर उसकी आँख खुली।
“लाल मिर्च पड़ने लगी बाजार में ?
बेटे से पाँच किलो मंगवा लूंगी। भरुआ आचार के लिए। दो किलो सीमा को भेज देंगे, दो किलो रीमा को। एक किलो घर के लिए रहेगा।”
आवाज सुनकर रेखा की आंख खुली। माँ जी बाहर किसी से कह रही थीं। अंदर आकर बोलीं “उठ गई बहु? चाय पियोगी? दोपहर में खाना भी नहीं खाया। कुछ खा लो।”
“जी अभी उठती हूँ।”
रेखा उठी चाय बनाई। बच्चों को दूध दिया। अपनी और माँ जी की चाय लेकर आ गई।
“बहु , अब की विशेष अवकाश कब ले रही हो?
बता देना । एक दिन पहले मिर्ची मंगवा लूंगी। अचार बनाना है।”
“नहीं माँ जी। मैं इस महीने विशेष अवकाश नहीं लूंगी। पीरियड्स तो परीक्षा के दौरान ही आ गए हैं।”
“अरे! तो क्या दो दिनों की छुट्टी छोड़ दोगी?”
“हाँ। छोड़ दूंगी। विशेष अवकाश जिस काम के लिए मिला है, उसी काम के लिए लूंगी। अगले महीने से कोई गड़बड़ नहीं होगी। मुझे विशेष अवकाश पीरियड्स में आराम करने के लिए दिया गया है। दर्द में मर- मर के विद्यालय जाने, और विशेष अवकाश लेकर आचार बनाने के लिए नहीं मिला है।”
“नौकरी का तेवर मत दिखाओ बहू। मत भूलो, मेरे बेटे ने सब जगह भागदौड़ करके तुम्हारी नौकरी लगवाई थी।”
“जी माँ जी। मैं कुछ नहीं भूली हूँ । घर के काम रविवार को मिलजुल कर करेंगे। और अब आचार, बड़ियां बांटना बंद कीजिए। उतना ही बनाएंगे जितना आसानी से बन जाए। या फिर बना बनाया मंगवा लेंगे। विशेष अवकाश मेरा विशेष अधिकार है यह आप समझ लीजिए अब मैं इस अधिकार को छोड़ने वाली नही।”
दृढ़ निश्चय के साथ रेखा अपने कमरे में गयी। फेसबुक पर पूनम जी और झा जी के आचार की बहुत तारीफ पढ़ी थी। दोनों जगह से भरुआ मिर्च का आचार ऑर्डर करने लगी।
प्रकाशन:- डाॅ० जयप्रकाश कर्दम सृजन, विमर्श एवं विचार (आलोचना)
विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं ( स्त्रीकाल, दलित साहित्य वार्षिकी, अपनी माटी, जानकीपुल, नागफनी, रचनाकार,सम्यक संवाद,साहित्य कुंज, समालोचना) में कहानियाँ, कविताएं एवं की शोधालेख प्रकाशित
रुचि:- साहित्यिक यात्राएं, लोकगीत एवं लोकसाहित्य, समकालीन विमर्श (स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, किन्नर विमर्श, वृद्ध विमर्श)
सम्प्रति:- सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजा सिंह महाविद्यालय सीवान , बिहार
वाह! बहुत बढ़िया!
धन्यवाद मैम