अब क्या बताएं गुलशन जी के बारे में.1960- 1970 के दशक के लोगों के लिए आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र की वो मधुर आवाज, हर रविवार, बच्चों के कार्यक्रम से बच्चों के लिए मनोरंजन और ज्ञान का मिश्रण, फिर दोपहर मे ‘आपकी पसंद’ मे फिल्मी गीतों की माला को अपनी कविताओं मे पिरो कर पूरे हिन्दी श्रोता जगत को हर मौसम झेलने की शक्ति प्रदान करता गीत संगीत।
मेरी निजी पहचान गुलशन जी के संग शायद 1969 मे हुई थी – जब मैंने आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र से कैजुअल अनाउन्सर के रूप मे काम करना शुरू किया था, और 1977 तक उनके संग काम करना एक निजी मित्र स्वरूप, जिसने रेडियो उद्घोषणा के कुछ तौर तरीके भी सिखाए | उनके चेहरे की वो मनमोहक मुस्कान व बिल्कुल अनोपचारिक सा व्यक्तित्व ढीले ढाले से कपड़े पहने वो रेडियो माइक माध्यम से असंख्य श्रोताओं को बांधता वो स्वर|
1977 मे मैं यू के चल आया और 1978 मे गुलशन जी वॉयस ऑफ अमेरिका मे काम करने वाशिंगटन मे जाकर बस गए| और इस प्रकार उनसे संबंध लगभग टूट गया|
और फिर भला हो फेसबुक का के अचानक फिर उनसे फेसबुक के माध्यम से संपर्क हो जाना|
v o a से रिटाइर होने के बाद, गुलशन जी ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी कविताओं अपने विचारों से बांधे रखा| और अब अचानक ये के गुलशन जी हमें छोड़ चले गए, और अपने पीछे छोडे जा रहे हैं मधुर स्मृतियाँ, वो बातें और एक
विस्तृत काव्य – आपार कविताएँ|
पुरवाई के माध्यम से उस मित्र-बंधु-सखा को उसकी ही एक कविता से – विनम्र श्रद्धांजलि:
वो जो कुछ लम्हे मेरी पलकों के दरीचों से
बंद आंखों में झांकते हैं रोशनी की तरह
और वो इक लफ़्ज़ जो आता नहीं ज़ुबां पे कभी
घुलता रहता है मगर होंटों में मिसरी की तरह
——— गुलशन मधुर
आपके माध्यम से गुलशन जी से परिचय हुआ। शुक्रिया आपका! ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।
आपके माध्यम से गुलशन जी से परिचय हुआ। शुक्रिया आपका।ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।