मित्रो, पुरवाई पत्रिका और कथा यूके को निरंतर तलाश रहती है कि ब्रिटेन में युवा साहित्यकारों को खोजा जाए और उन्हें साहित्यिक मंच प्रदान किया जाए ताकि पूरे विश्व को ब्रिटेन के हिन्दी साहित्य की युवा पीढ़ी से परिचित करवाया जा सके। कोरोना काल में मिलना तो कम संभव हो पाता है मगर हाल ही में फ़ेसबुक के माध्यम से मेरा परिचय पूर्व लंदन की युवा कवयित्री धरती वसानी से हुई। उस मुलाक़ात के नतीजे में उनकी दो कविताएं आपके समक्ष हैं। भविष्य में भी आपको धरती की रचनाएं पुरवाई में पढ़ने को मिलती रहेंगी। आप सब भी ब्रिटेन की इस युवा कवयित्री का स्वागत करें।
“कविता लिखने के लिए मेरा प्रिय विषय है ‘ज़िंदगी’। इसलिए मेरी दोनों कविताओं के केंद्र में ज़िंदगी ही है। मैं एक उभरती हुई कवयित्री हूँ अगर कुछ कमी रह गयी हो तो माफ़ कर दीजिएगा।” – धरती…
1 – चलो ना शान से जियो ये ‘ज़िंदगी’
पहेली है ज़िंदगी , सहेली है ज़िंदगी ।
ज़िंदगी की हर मोड़ पर चुनौती है ज़िंदगी ।।
हँसाती है तो रुलाती भी है ।
जाने कितने रंग दिखाती है ये ज़िंदगी ?
जैसी करनी है वैसी ही है भरनी ।
फिर भी कैसे कैसे हिसाब लगाती है ज़िंदगी ।।
कभी चलती है तो कभी ठहर जाती है ।
ना जाने कैसे हमें सँवार लेती है ज़िंदगी ?
यूँ तो देती है कई मौक़े
मंज़िलों तक पहुंचने के ।
पर साहिल पे आते ही
क्यूँ कश्ती डुबोती है ज़िंदगी ।।
जीना ही है तो क्यूँ ना मुस्कुरा के जियो ।
आख़िर रोने में क्यूँ गँवानी ये ज़िंदगी ।।
कितनी मन्नतों से मिली है हमें यारा ।
तो चलों ना शान से जियो ये ज़िंदगी ।।
2 – ऐ ‘ज़िंदगी’…
ऐ ज़िंदगी, तू कितनी ख़ूबसूरत हे ।
जितनी डूबती जाती हूँ तुझ में,
उतनी ही तुझे चाहने लगी हूँ ।।
पाया इतना हे कि और कुछ पाने की चाह नहीं ।
खोया भी इतना हे के और कुछ भी,
खोने का कोई ग़म नहीं ।।
क्या खोया क्या पाया , ये सब की अपनी क़िस्मत हे।
पा के खोना और खो के पाना, यही तो ज़िन्दगी की रीत हे।।
सही क्या और क्या ग़लत, ये अपनी अपनी सोच हे ।
दिल से लिया हुआ हर एक क़दम, बस वही एक सच हे।।
दिल और दिमाग़ के बीच,कभी कभी होती हे जंग।
लेकिन जब दिल की सुनती हूं ,
तो खुशी से रह जाती हूं दंग ।।
इतना भी आसान। नहीं है, हर पल दिल की सुन ना।
दिमाग़ वाले तो उसको पागलपन कहते हें ।।
हाँ पागलपन ही सही दोस्तों ।
लेकिन ज़िन्दगी जीनी हे सिर्फ़ ज़िंदादिली से ही।।