1- एक छुअन भर है
यह दुनिया एक संग्रहालय भी है
तमाम क्षतियां और
वो पल जो हमने खोये
सहेज कर रखा गया जिन्हें करीने से।
मेरी आंख विप्लव है —
झांकती आदि से अंत तक  : आर पार
तब भी  रहा होगा यह समय
आज जैसा व्यग्र औ’ प्रासंगिक
तीव्र और आतुर ।
युद्ध एक स्थगित कर दी गयी स्मृति है
लगभग निर्वासित
आवाज़ एक पेड़ है
अनन्त तक फैली हुई  शाखाएं
पतझड़ में  झरे पत्तों का गट्ठर
उठाये आती है इस सदी की रात।
अनाम अगणित पदचिन्ह गोया
हर मौसम में उग आती घास में
—  पसरे हुए निराकार
यह धरती एक छुअन भर है–
और –;
हो जाते  अंकित सदा के लिए।
2- तुम्हें तो याद होगा
क्या तुम्हें याद है ! दोस्त ?
जब जून की गर्म हवा के थपेडों ने हमारे कदमों को
चाहा रोकना
और लू ने तो हमें झुलसा ही दिया बेरहमी से
फिर भी एक आग हमें वहन करती
अंतिम दिग्विजय  के लिए
संध्या के ढलते सूरज में
लौटते हुए शिविर में
क्लान्त  ; निरूत्तर  से हम
एक दूजे की तरफ पेड़ की टहनियों से झुके हुए
तब तक प्रतिकार औ’ प्रतिरोध के अनगिन चक्रव्यूह
तैयार थे सज-धज कर गर्मजोशी से हमारा पथ रोकने
उन बीहड़ यात्राओं में
सारे व्यूह से गुजरते हुए
कष्टप्रद रात्रियों के दरमियां
हमें याद था हमारा महान स्वप्न
कि–; सारी निरर्थक धारणाओं को चीर कर
रूढ हो चुके मिथ्यात्व की जंजीरों से बाहर
बच रहेगी एक दुनिया
और—  ठोस भ्रान्तियों की जगह स्थापित होगा
एक न एक दिन दमित सत्य
— तुम्हें  तो होगा याद ?

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.