Saturday, July 27, 2024
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रेखा श्रीवास्तव की लघुकथा – सम्मान

उमर ने नेट से देखा कि नवरात्रि की पूजा में क्या क्या सामान लगता है और जाकर बाजार से खरीद लाया । वह बिन्दु के आने का इंतजार कर रहा था और समय है कि कट ही नहीं रहा था । वह आँखें बंद करके लेट गया ।
अतीत में घूमने लगा – वह और बिन्दु फेसबुक पर मिले दो साल वह अरब में था और बिन्दु यहाँ । सिर्फ दोस्ती थी कि अचानक अब्बू का इंतकाल हो गया और वह घर लौट आया । सब कुछ दूर रहते ही तय कर लिया था । बिना किसी को खबर किये दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली ।और अपनी अपनी जगह लौट गये ।
बिन्दु के घर जाकर बात करनी चाही तो घर वालों ने बेइज्जती करके निकाल दिया । अपने घर में भी कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर । दो साल इंतजार किया । आखिर बिन्दु ने वहाँ से नौकरी छोड़कर आने का निश्चय कर लिया । आज नवरात्रि के पहले दिन वह अपने घर आ रही थी ।
अचानक दरवाजे की खटखटाहट ने तंद्रा भंग कर दी । जल्दी से उठकर उसने दरवाजा खोला तो बिंदु सामने खड़ी थी । उसने झुकते हुए उसे अन्दर आने को कहा । एक अलमारी में लाल चुनरी , नारियल , देवी जी की फोटो देख कर वह चौंकी – ये क्या है ?
‘तुम्हारी पूजा का सामान !’
‘क्यों ?
‘बिन्दु तुमने मेरे लिए घर छोड़ा लेकिन जो संस्कार खून में बसे हैं, उनकी मैं इज्जत करता हूँ । तुम अपनी पूजा बरकरार रखना । इसी में हमारी खुशी है ।’
उनके घर में दुर्गा सप्तशती और कुरान एक साथ रखे थे ।
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