चैया की दादी गाँव से पहली बार अकेली शहर आ रही थीं। चैया बेसब्री से उनके आने का इंतज़ार कर रही थी। दादी उसके जन्मदिन के लिए नुमाइश से खरीदी हुई सुंदर सी गुड़िया लाने वाली थीं। चैया को अपनी दादी के साथ साथ उनकी बातों कहानियों, सुझावों और उपहारों से भी बहुत लगाव था।
इधर दादी हाथों में अटैची थामे अपनी सीट पर बैठी थीं। सामने की सीट पर एक महिला अपने दो बच्चों के साथ बैठी थी। हाथ मे गुड़िया पकड़े हुए बेटी तो चैया की उमर की सी लग रही थी पर बेटा छोटा था … और शक्ल से ही बड़ा नटखट लग रहा था। थोड़ी ही देर में सामने बैठी बच्ची सोनी, दादी माँ से बातें करने लगी।
अचानक सोनी के शैतान भाई ने उसके हाथ से गुड़िया छीन के खिड़की से नीचे फेंक दी। सोनी गुड़िया- गुड़िया करके रोने लगी। माँ के समझाने से भी वो चुप नहीं हुई।
दादी का हाथ अपनी अटैची पर गया … पर ज्यादा देर तक वो अपने हाथ को रोक नही पाईं। कुछ देर बाद उन्होंने अपना हाथ ढीला छोड़ा और एक लंबी साँस भर के दूसरे हाथ से अटैची का ताला खोल दिया। उसमे सबसे ऊपर वही सुंदर सी गुड़िया रखी हुई थी जो उन्होंने चैया के लिए नुमाइश से खरीदी थी।
“आखिर सोनी भी तो चैया जैसी ही है बल्कि उस से भी छोटी है। बार बार मुझे दादी माँ भी कह रही है, पर चैया को क्या कहूँगी।”  दादी ने बुदबुदाते हुए कुछ बुझे से मन से वो गुड़िया सोनी को पकड़ा दी।
“मैं आपको सुबह होते ही ये गुड़िया वापिस दे दूँगी अम्मा जी। सुबह जब आपका स्टेशन आएगा तब सोनी सो रही होगी तभी मैं आपको…. ” सोनी की माँ ने कहा –
“कोई नहीं …” दादी ने मुस्कुराती हुए सोनी को प्यार से देखते हुए कहा।
सुबह जब दादी स्टेशन पर उतरने लगी तो सोती हुई सोनी के हाथ से माँ ने गुड़िया ले कर दादी को दे दी। पर दादी का मन न माना और उन्होंने गुड़िया वापिस सोती हुई बच्ची के हाथ मे थमा दी। स्टेशन पर चैया अपने पापा के साथ दादी को लेने आई थी। पापा ने दादी को रेल गाड़ी से सहारा दे कर उतारा। दादी को देखते ही चैया ख़ुशी से उनसे लिपट गयी।
घर आते ही चैया ने गुड़िया देखने की ज़िद की तो दादी को रेलगाड़ी वाली सारी बात बतानी पड़ी। चैया को अपनी दादी पर गर्व हो रहा था। उसे आज अपनी दादी हमेशा से भी ज्यादा प्यारी लग रहीं थीं।
‘एक काम करो न दादी, मेरे लिए वैसी ही हैंडमेड गुड़िया बना दो जैसी गांव में बनाई थी… रंग बिरंगे कपड़े वाली।’ चैया बोली
दादी को याद आया पिछले साल जब चैया गाँव आयी थी तो उन्होंने उसे बहलाने के लिए रुई,  कपड़े और रँगबिरंगी कतरनों से एक गुड़िया बनाई थी जो चैया को बहुत पसंद आयी थी। चैया ने उसे नाम दिया था हैंडमेड गुड़िया।
चैया, दौड़ कर मम्मी की अलमारी से कपड़ा, रुई, कुछ कतरनें, कैंची और सुई धागा ले आई। दादी ने कुछ ही देर में चैया के लिए एक सुंदर सी कपड़े की गुड़िया तैयार कर दी।
शाम को केक काटते समय चैया के हाथ में अपनी प्यारी हैंडमेड गुड़िया थी। जिसे वो अपनी सभी सहेलियों को बड़ी खुशी से दिखा रही थी और इसके पीछे की रेलगाड़ी वाली कहानी भी सबको गर्व से सुना रही थी।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.