अमीर क़ज़लबाश साहब की एक ग़ज़ल का शे’र कुछ इस तरह है –
यकुम जनवरी है नया साल है
दिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है।
ग़ज़ल कहने, सुनने और पढ़ने वालों पर अपना असर गहराई से छोड़ती है। पूरी ग़ज़ल का यह एक शे’र बहुत कुछ कहने/बताने, समझाने में सफल है।
बात हो रही है नए साल के पहले दिन, पहले सप्ताह, पहले पखवाड़े या शुरू के महीने में जोश में भर कर किए जाने वाले वादों की।
सच बात यह है कि वादे वफादारी मांगते हैं। खालिस जोश से बात नहीं बनती। अपनी बात पर खरा उतरने के लिए जोश के साथ होश की दरकार होती है। जिसने जोश के साथ अपने आप से किए वादों को पूरी निष्ठा से निभा दिया, वह सफल रहा। जो चूक गया, उसने सफल होने का एक मौका गंवा दिया। बात सिर्फ इतनी सी है कि जोश और भावुकता में किए गए वादे, असलियत से कोसों दूर होते हैं।
नए साल के पहले दिन जोश में भर कर किए वादे अधिकतर पहला हफ्ता ख़त्म होने से पहले ही टूट जाया करते हैं। शुरू होने के बाद से आख़िरी दिन तक “नया बरस” टूटे वादों की लाशों का बोझ उठाता है। आपकी ग़लतियों की सजा कोई और भुगतता है। प्यार, जोश-जुजून सब जायज है मगर समंदर के तूफान का शांत हो जाना श्रेयस्कर होता है। तट तोड़कर बहता जल, पूज्यनीय नहीं होता। गंगा भी अपनी सीमाओं में रहते हुए ही तीर्थ है, तटबंध तोड़ने पर वह भी बर्बादी का बायस बनती है।
आइए ऐसे वादे करें खुद से जिनके पूरे होने की जिम्मेदारी अपने उपर हो। ऐसे वादे जिनका सकारात्मक प्रभाव समाज पर पड़े, आपके वादों का असर दूर-पास के इलाकों पर पड़े। ऐसे वादे जिनके सफल होने पर दूर तक ख़बर फैले कि यह किसी ख़ास इंसान का सपना है जो आसपास के लोगों पर भी अपना असर दिखा रहा है। याद रखें कि आपकी एक छोटी सी आदत का बदलना भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में परिवार, समाज और पर्यावरण को प्रभावित करता ही है।
कोशिश करें कि आपका अपने आप से किया गया वादा ही आपकी पहचान बन जाए। आप जहाँ है, दूर तक अपने अनूठे सपने के कारण, सपना पूरा करने के प्रयासों के कारण पहचाने जाने लगें। आइए वर्ष 2023 की सुबह-सुबह एक ऐसा ही वादा अपने आप से करते हैं जो आने वाली तारीख़ में आपकी पहचान बनने वाला है, आपको नई पहचान देने वाला है।
नव वर्ष 2023 की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।