इंसानी आबादी धरती के एक बड़े भाग पर मौजूद है। सदियों से यहाँ रहते हुए लगभग हर संभव स्थान को हमने खोज लिया है। पानी की गहराई नापने के साथ मनुष्य अंतरिक्ष को भी अपनी ज़द में लेने को लालायित हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स चलाए जाते रहे हैं जिससे सैंकड़ो वर्ष पूर्व की इंसानी सभ्यता को समझने में मदद मिल सके। चंद्रमा पर पानी की तलाश अक्सर समाचारों में प्रमुखता से छाई रहती है। इस सबका मतलब क्या यह है कि हमने सब कुछ जान लिया है? क्या हमने अधिकतर रहस्यों से पर्दा उठा लिया है? और यदि यह सच है तब क्या हमें अपनी खोज को विराम दे देना चाहिए? क्या हमें नित-नवीन की तलाशना रोक देना चाहिए? क्या यह सोच सही है? इस पर मेरा एक ही जवाब होगा – कत्तई नहीं।
प्राकृति के सभी रहस्यों को जानना तो दूर की बात, हम तो अब तक अपने पूर्वजों को भी ठीक से समझ नहीं सके हैं। उनके अर्जित ज्ञान को समझना, अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी वैज्ञानिक खोज को जानना भी अभी शेष है। हमारे तमाम प्रयासों के बावजूद इन सब विषयों पर हमारी जानकारी सीमित है।
नवीन की खोज को भूल से भी रोकना नहीं है। यानी अपने-अपने स्तर पर खोज अथवा खोज के प्रयास जारी रखने हैं। क्योंकि अबूझ को जानने की ललक के बावजूद कुछ ना कुछ नया मिलने की संभावना हमेशा बनी रहती है। अपने विकसित संसाधनों के साथ बीती सदी की जानने का प्रयास आज भी जारी है। यानी अब तक हम जो जान-समझ सके हैं, वह पर्याप्त नहीं है।
वैज्ञानिकों की बड़ी संख्या यह मानती है कि अब भी बहुत कुछ है जो अनजाना है। बुद्धजीवी भी इस बात से सहमती रखते हैं। ऐसी स्थिति में हमें व्यक्तिगत स्तर पर इस बात का भरोसा कर लेना चाहिए कि हम जितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें, और अधिक समझ विकसित करने की संभावना बनी रहती है। हम इतिहास को जितना भी समझ लें, उसके आधार पर वर्तमान और भविष्य की नींव रखते हुए कुछ आशंकाएं हमेशा घेरे रहती हैं। यानी नवीन को जानने की, अनजाने को पहचाने जाने की और अनदेखे को देखने की जिज्ञासा बनी रहे। शारीरिक रूप से और मानसिक स्तर पर हर बार कुछ नया जानने की उम्मीद बनाए रखें। यही उम्मीद आपको किसी दिन अचानक एक ऐसी कामयाबी तक पहुँचा सकती है, जो बिल्कुल अनजानी हो, और उस तक पहले-पहल आप ही पहुँच रहे हों।
हम आज भी अपने क़रीब के पेड़ पौधे दरिंद चरइंद परिंद के बारे में मुकम्मल जानकारी नहीं रख पाते कि आने वाली पीढ़ी कीउत्कण्ठा को कुछ करने के लिये बल दे।
दुर्भाग्य है मेरे देश का जिनके सर ये जिम्मेदारी है वे अपने बच्चों के लिये विदेश में बंगला बना कर देने के जोड़ जुगाड़ में मुब्तिला है किस तरह से नोट छापे जाय दो-चार दस दीवाने ही होंगे जो कुछ सोचते हैं करते हैं बताते हैं लोभी अपने दम पर वर्ना सरकार तो अपनी तारीफ के समाचार बेचने वाले को पद्मश्री देकर देश को धन्य करती है। वन्दना यादव जी का यह लेख समुद्र से कौड़ी ढूंढने का गणित स्पष्ट करती है बधाई साधुवाद
@नीरद THE REBEL
This is an excellent piece of writing. To discover new things and innovate new ideas is good but simultaneously we have to take care of our past knowledge and ancestral traditions. Thanks to the writer for highlighting the issue.
हम आज भी अपने क़रीब के पेड़ पौधे दरिंद चरइंद परिंद के बारे में मुकम्मल जानकारी नहीं रख पाते कि आने वाली पीढ़ी कीउत्कण्ठा को कुछ करने के लिये बल दे।
दुर्भाग्य है मेरे देश का जिनके सर ये जिम्मेदारी है वे अपने बच्चों के लिये विदेश में बंगला बना कर देने के जोड़ जुगाड़ में मुब्तिला है किस तरह से नोट छापे जाय दो-चार दस दीवाने ही होंगे जो कुछ सोचते हैं करते हैं बताते हैं लोभी अपने दम पर वर्ना सरकार तो अपनी तारीफ के समाचार बेचने वाले को पद्मश्री देकर देश को धन्य करती है। वन्दना यादव जी का यह लेख समुद्र से कौड़ी ढूंढने का गणित स्पष्ट करती है बधाई साधुवाद
@नीरद THE REBEL
गोपाल देव नीरद जी, दो-चार दिवाने ही समय की धार मोड़ने का काम किया करते हैं। आपकी टिप्पणी लेखक का हौसला बढ़ाने वाली है। आभार आपका।
Very insightful and thought-provoking! Loved reading it.
Thanks Shivani darling.
This is an excellent piece of writing. To discover new things and innovate new ideas is good but simultaneously we have to take care of our past knowledge and ancestral traditions. Thanks to the writer for highlighting the issue.
Very insightful and thought-provoking! Loved reading it. Congratulations