तीन कविताएं….
– अमित कुमार मल्ल
1
जिस दिन ,
तुम्हारे हँसने पर फूल न झरे
तुम्हारी टेढ़ी भृकुटियों से कहर न बरपे
तुम्हे लगे कि नियम नीति न्याय नही रहा
उस दिन,
अपने घर के
स्टोर रूम के कोने में
धूल में पड़े किताब को उठाकर
उसका गर्दा झाड़कर ,
पन्ना पलटकर
पढ़ना,
उसमे मौजूद
मेरी एक कविता बताएगी,
जिंदगी!!
अब शुरू हो गयी है
2
हर बार
उम्मीद का टूटना
मन का टूटना
बुरा नही होता
उम्मीदे विश्वास दिलाती है
अच्छा करने पर अच्छा ही होगा
कर्म बेकार नही जाता है
उम्मीदे मन को बांध लेती है
वह नही देखने देती
जो है
वह नही सुनने देती
बिलखती आवाजो को
उम्मीदे और
मन,
दोनो का भोलापन
देता है
जिंदगी में,
बहुत धोखे।
3
नियम
प्रक्रिया
व्यवस्था
आदर्श
समाज
की आग में,
आदमी को
उलट कर
पलट कर
सीधा
बेड़ा
हर तरह से
सेंका गया
भूना गया
पकाया गया
सूख गयी संवेदना
जल गया जमीर
राख हो गयी
शरीर के भीतर की आत्मा,
रह गया
चलता फिरता बोलता शरीर ।
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