नित्यानंद तुषार – तीन ग़ज़लें…

1.

मैंने कुछ समझा नहीं था,तुमने कुछ सोचा नहीं

वरना जो कुछ भी हुआ है ,वो कभी होता नहीं

उससे मैं यूँ ही मिला था,सिर्फ़ मिलने के लिए

उससे मिलकर मैंने जाना,उससे कुछ अच्छा नहीं

आप माने या न मानें ,मेरा अपना है यक़ीन

खूबसूरत ख़्वाब से बढ़कर कोई धोखा नहीं

जाने क्यूँ मैं सोचता हूँ,उसको अब भी रात दिन

मेंरी ख़ातिर जिसके दिल में प्यार का जज़्बा नहीं

मेरी नज़रों से जुदा वो,मेरे दिल में है ‘तुषार’

वो मेरा सब कुछ,मैं जिसकी सोच का हिस्सा नहीं

 

2.

तुम्हें ख़ूबसूरत नज़र आ रहीं हैं

ये राहें तबाही के घर जा रहीं हैं

अभी तुमको शायद पता भी नहीं है

तुम्हारी अदाएं सितम ढा रहीं हैं

कहीं जल न जाए नशेमन हमारा

हवाएँ भी शोलों को भड़का रहीं हैं

हम अपने ही घर में पराए हुए हैं

सियासी निगाहें ये समझा रहीं हैं

ग़लत फ़ैसले नाश करते रहे हैं

लहू भीगी सदियाँ ये बतला रहीं हैं

‘तुषार’ उनकी सोचों को सोचा तो जाना

दिलों में वो नफ़रत ही फैला रहीं हैं

 

3.

मेरा अपना तजुर्बा है ,इसे सबको बता देना

हिदायत से तो अच्छा है,किसी को मशवरा देना

अभी हम हैं ,हमारे बाद भी होगी ,हमारी बात

कभी मुमकिन नहीं होता ,किसी को भी मिटा देना

नयी दुनिया बनानी है ,नयी दुनिया बसाएंगे

सितम की उम्र छोटी है ,ज़रा उनको बता देना

अगर नुक्सान हो अपना,बड़ी तकलीफ़ होती है

बहुत आसान होता है, किसी का घर जला देना

मेरी हर बात पर कुछ देर तो वो चुप ही रहता है

मुझे मुश्किल में रखता है ,फिर उसका मुस्कुरा देना

‘तुषार’अच्छा है,अपनी बात को हम ख़ुद ही निपटा लें

ज़माने की है आदत सिर्फ़ शोलों को हवा देना

 

 

 

नित्यानंद ‘तुषार’,  ग़ाज़ियाबाद (उ.प्र.), भारत

मोबाइलः 09958130425

 

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