Saturday, July 27, 2024
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खेमकरण ‘सोमन’ की तीन कविताएँ

1- चौराहा और पुस्तकालय
चौराहे पर खड़ा आदमी
बरसों से,
खड़ा ही है चौराहे पर
टस से मस भी नहीं हुआ !
जबकि पुस्तकालय में खड़ा आदमी
खड़ेखड़े ही पहुँच गया
देशदुनिया के कोनेकोने में
जैसे हवासूरज, धूपपानी और बादल
फिर भी देश में
सबसे अधिक हैं चौराहे ही।
2- विदा हो रहा हूँ
चाबी ने बस इतना ही कहा
जब तक जाऊँ
किसी के समक्ष प्रियमत खुलना
फिर कई चाबियाँ आईं- चली गईं
लेकिन न खुला ताला
ताले का मन
यहाँ तक कि
हथौड़े की मार से टूट गया
बिखर गया
लहूलुहान हो गया
मर गया पर अपनी ओर से खुला नहीं !
पर उसके अंतिम शब्द
दुनिया के सामने खुलते चले गए
प्रियतुमसे जो भी कहा, मैंने सुना
बस उसी कहेसुने की लाज रखते हुए
विदा हो रहा हूँ!
प्रेम आकंठ डूबा हुआ
यकीनन… लाज रखता है
कहेसुने गए,
अपने शब्दों की
3- बहुत बुरा महसूस किया 
डिकैथनॉल,
ट्रेंड्स,
बिग बाजार और विशाल मेगामार्ट की धरती से
खरीदारी करने के बाद उन्होंने
महसूस किया रंगरंगा
चाँदतारों को बताबतियाकर
उतनी ही ऊँचाई पर पाया अपने आपको
पाया अपने सम्मान में बढ़ोत्तरी
महसूस किया बहुतबहुत अच्छा
बसबहुतबहुत बुरा महसूस किया
सब्जी वाले, राशन वाले और
रिक्शे वाले के साथ लेनदेन करके।
खेमकरण सोमन
खेमकरण सोमन
संपर्क : 09045022156, [email protected]
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