1- चौराहा और पुस्तकालय
चौराहे पर खड़ा आदमी
बरसों से,
खड़ा ही है चौराहे पर
टस से मस भी नहीं हुआ !
जबकि पुस्तकालय में खड़ा आदमी
खड़े–खड़े ही पहुँच गया
देश–दुनिया के कोने–कोने में
जैसे हवा–सूरज, धूप–पानी और बादल
फिर भी देश में
सबसे अधिक हैं चौराहे ही।
2- विदा हो रहा हूँ
चाबी ने बस इतना ही कहा
जब तक आ न जाऊँ–
किसी के समक्ष प्रिय…मत खुलना
फिर कई चाबियाँ आईं- चली गईं
लेकिन न खुला ताला
न ताले का मन
यहाँ तक कि
हथौड़े की मार से टूट गया
बिखर गया
लहूलुहान हो गया
मर गया पर अपनी ओर से खुला नहीं !
पर उसके अंतिम शब्द
दुनिया के सामने खुलते चले गए–
प्रिय… तुमसे जो भी कहा, मैंने सुना
बस उसी कहे–सुने की लाज रखते हुए
विदा हो रहा हूँ!
प्रेम आकंठ डूबा हुआ
यकीनन… लाज रखता है
कहे–सुने गए,
अपने शब्दों की ।
3- बहुत बुरा महसूस किया
डिकैथनॉल,
ट्रेंड्स,
बिग बाजार और विशाल मेगामार्ट की धरती से
खरीदारी करने के बाद उन्होंने
महसूस किया रंग–रंगा
चाँद–तारों को बता–बतियाकर
उतनी ही ऊँचाई पर पाया अपने आपको
पाया अपने सम्मान में बढ़ोत्तरी
महसूस किया बहुत–बहुत अच्छा
बस…बहुत–बहुत बुरा महसूस किया
सब्जी वाले, राशन वाले और
रिक्शे वाले के साथ लेन–देन करके।
तीनों कविताएं बहुत जबरदस्त शानदार जानदार बहुत-बहुत बधाई मित्र