पुनरागमन
———————-
आज की दोपहर
कितनी तारी रही हम पर
कि दूर होकर भी तुम
बहुत नजदीक आ गए थे
आज तुम्हारे शब्दों की कंपन
और मेरी मन्नतों के पथराए होंठ
चीख- चीख कर अपने होने की
गवाही दे रहे थे
आज उदासी के हक में
बोलना मना था
आज ठहर कर सोचना और
पीछे मुड़कर देखना भी
मना था
तुमको आंसू गंवारा न था
और मैं आरजुओं की बरसात में
दरिया बनी जा रही थी
इससे पहले की मैं
तुम्हारे प्रति कृतज्ञ होती
दर्प की एक खनक
रह-रह कर खनखना रही थी
मेरे भीतर ही भीतर
आज आंखों में सपने नहीं
महत्वकांक्षाएं चमक रही थी
और मन में बेचैनी की जगह
 तसल्ली ने ले ली थी
आज अपनी तमाम कोशिशों के
बावजूद तुम्हारे अंतहीन
प्रेम की भंगिमाओं के बीच
लताओं सी लिपटी मैं
उदित और अस्त होती रही
अब जब ढलती हुई शाम के साथ
सब लौट रहे हैं
तो क्या मुमकिन नहीं
तुम्हारा पुनरागमन………..!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~
अलविदा
—————-
सांझ का मटमैलापन और
अर्से बाद अंतर्नाद करता हुआ
अंतर्मन …….
आज जहां
दूर कहीं मंदिर की
घंट-ध्वनियां और
आरती नगाड़ों के बीच
आत्मपीड़ा और आत्महीनता की
विद्रोहात्मक परिणति में
डूबता जा रहा है
वहीं तेजाब से खौलते
मन के समुद्र में
निरंतर जल रही भावुकता
चिथड़े-चिथड़े हो कर
उड़ती जा रही थी…..और
सारी संवेदना पिघल कर
मोम बनती जा रही है
आत्मविश्लेषण की इस
दोधारी तलवार से
जब-जब तुम्हारे नाम की
लकीरों को काटना चाहा
अनगिनत नई लकीरों
ने जन्म ले लिया…
जाने किस बाबत
घृणा और प्रेम पर सोचते हुए
बांध लिया पत्थर
खुद की उड़ान पर
कस दिया फंदा
अपनी ही आत्मा के गले पर
आज मीरा के हृदय की
बेधक पीड़ा
मन को बेचैन तो कर रही
पर पूरी तरह सहभागी
बनने से इंकार करती है
आज हृदय समंदर
संदेह की झाग से
अटता चला जा रहा है
कितना कुछ
जलकुंभी की तरह
फैलता हुआ अतीत की
सारी घटनाओं को
निगलता जा रहा है
ऐसे में क्या खोजना और क्या पाना
आज प्रश्न ??
दुःख से नही आश्चर्य से है
क्या जीना चाहिए ऐसे भ्रम को
जिस पर स्वयं को ही विश्वास न हो…?
अब मातम में डूबी और
कृपा पर जीती हुई
अपहरित की गई चाहनाओं के पार
जाने का आसान रास्ता होगा…..   ‘अलविदा’
नंदा पाण्डेय
फ़्लैट नंबर 2 बी,  सूरज अपार्टमेंट , हरिहर सिंह रोड मोरहाबादी रांची झारखंड।
मोबाईल नंबर- 7903507471
पिन- 834008

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.