11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2018 (मॉरीशस)

  • डॉ. निखिल कौशिक

मॉरिशस में हाल ही में (१८से २०अगस्त २०१८) ११वां विश्व हिंदी सम्मेल्लन संपन्न हुआ. इस आयोजन में मैं एक स्वतंत्र प्रतिभागी के रूप समिल्लित हुआ. इस प्रकार के आयोजन हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए किये जाते हैं.

सम्मलेन से लौटने के बाद कुछ उद्गार आपके अवलोकन व् प्रकाशन हेतु:

सम्मेल्लन की मूल भावना क्या है:

हम हिंदी भाषी लोग मानते हैं के हिंदी एक सरल-सुगम-लोकप्रिय-कर्णप्रिय , अनेक गुण संपन्न भाषा है, जो विभिन्न मनुष्यों के बीच संपर्क व् सौहार्द बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इन गुणों के कारण हम मानते हैं के इसका प्रचार प्रसार होना चाहिए और अधिक से अधिक लोगो को इस भाषा को बोलना- समझना- पढना व् लिखना आना चाहिए.

हम हिंदी भाषी लोग अपनी दिनचर्या में इस भाषा का आनंद उठते हैं जो एक टूटी फूटी मिली जुली भाषा से लेकर उत्कृष्ट शुद्ध अकादमिक स्तर पर विभिन्न बोलिओ स्वरुप प्रयोग में लाई जाती है.

भारत के सन्दर्भ में हिंदी:

Mandarin, (चीनी), Spanish, व्  English के बाद हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, विश्व के लगभग 4.46% लोग हिंदी भाषी हैं.

भारत एक बहुभाषीय देश है, ४१.०३% भारतियों की मात्रभाषा हिंदी है; और ५३.६०% लोग विभिन्न स्तर पर हिंदी बोल-समझ सकते हैं. इस प्रकार यह उचित ही है के हिंदी का प्रचार प्रसार हो, ताकि इसके व्यापक प्रयोग से देश के विभिन्न प्रान्तों व् विभिन्न वर्गों के लोगों में आपसी संपर्क सरल व् सुगम बने, और भाषा के माध्यम से भारतवासी एकसूत्र में बंधें.

राजनीती का उद्देश्य देश को एकजुट-एकसूत्र करना हैं

भाषा संपर्क की बुनियाद है, इस प्रकार भाषा के प्रयोग से देश को एकजुट-एकसूत्र करना किसी भी राष्ट्र एक राजनितिक ध्येय है, और इसके लिए सभी राजनीतिक दल एकजुट हैं|

भारतीय संविधान की धारा ३४३ के अनुसार अंग्रेजी के बजाए देवनागरी –हिंदी को राजकीय भाषा बनाना निश्चित  था, किन्तु इसे संघवाद (federalism) के विरुद्ध माना गया और १९६३ में The Official Languages Act, 1963, के तहत अनिश्चित काल तक अंग्रेजी का सरकारी रूप से चालू रहना स्वीकार किया गया. भारतीय संविधान के अनुसार भारत की कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं है.

इस प्रकार हिंदी व् अन्य भारतीय भाषाओँ के प्रचार प्रसार के लिए राजस्व में व्यवस्था है. हिंदी को समर्पित विश्व विद्यालय व् विभिन्न सचिवालय सरकारी अनुदान द्वारा संचालित किये जाते हैं.

हिंदी भाषा के प्रचार –प्रसार के लिए जो कुछ भी किया जाता है उनमे ‘हिंदी दिवस’, ‘हिंदी सम्मलेन’ व् अन्य सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियाँ सम्मिल्लित हैं.

इस सन्दर्भ में “विश्व हिंदी सम्मेल्लन”, एक बड़ा आयोजन है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर हिंदी का प्रचार-प्रसार करना व् भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित करना है.

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन १० जनवरी से १४ जनवरी १९७५ तक नागपुर में आयोजित किया गया।

इस प्रथम सम्मेल्लन से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी डी जत्ती थे। सम्मेलन के मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रधानमन्त्री श्री शिवसागर रामगुलाम थे. इस प्रकार विश्व हिंदी सम्मेल्लनों की श्रंखला में भारत व् अन्य देशों में 11 विश्व हिंदी सम्मेल्लन आयोजित किये जा चुके हैं, इन सभी आयोजनों में भारत सरकार के विशिष्ट मंत्री व् अन्य उच्चस्तरीय पदाधिकारी उपस्थित रहे हैं |

न्यू यॉर्क में ८वें और अब मॉरिशस में संपन्न हुए ११वें विश्व हिंदी सम्मेल्लन में एक निजी स्वतंत्र प्रतिभागी के रूप में मैंने भाग लिया; इसके अतिरिक्त भारत व् ब्रिटेन में समय समय पर आयोजित भिन्न भिन्न हिंदी कार्यक्रमों में भी मैंने भाग लिया है.

मुझे याद है की दिल्ली में आयोजित एक सम्मेल्लन में भारत सरकार के तत्कालीन मंत्री, श्री शकील अहमद ने कहा था कि “भारत सरकार हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रति कटिबद्ध है, और इसका उदहारण ये है के इस विषय पर होने वाली लगभग सभी बैठकों की अध्यक्षता माननीय प्रधान मंत्री, श्री मनमोहन सिंह स्वयं करते हैं”|

इस प्रकार भारत सरकार पार्टी पॉलिटिक्स से परे हिंदी के प्रचार –प्रसार के लिए कटिबद्ध है, न्यू यौर्क के सम्मेल्लन में स्वर्गीय लक्ष्मी मल्ल सिंघवी, विदेश राज्य मंत्री आनंद शर्मा व् गीतकार गुलज़ार की उपस्थति; और मॉरिशस में आयोजित ११वें  सम्मेल्लन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, व् दो राज्य मंत्री जनरल VK सिंह व् MK अकबर, और प्रसिद्ध गीतकार प्रस्सून जोशी की उपस्थिति इस बात का प्रमाण हैं.

इस प्रकार प्रश्न ये है के मेरे जैसे साधारण प्रतिभागी के लिए भव्य विश्व हिंदी सम्मेल्लनका उद्देश्य एवं उपयोगिता क्या है:

मेरा ऐसा मत है के यह आयोजन हिंदी भाषा का एक उत्कृष्ट प्रदर्शन (शो केस) है, जिसमे भाग लेकर एक साधारण प्रतिभागी हिंदी की गरिमा का अनुभव कर सके व् हिंदी के प्रति प्रोत्साहित होकर लौटे, और अपने दैनिक जीवन में हिंदी का प्रयोग करे व् अपने अपने रूप से हिंदी का प्रचार-प्रसार करे. इसके संग संग जो सरकारी कर्मचारी, अफसर अथवा शिक्षक (विशेष कर वे जो सरकारी खर्च पर) इस आयोजन में भाग ले रहे हों, वो हिंदी के प्रचार प्रसार के नए संसाधनों की जानकारी व् ज्ञान में गुणवत्त होकर लौटें, और अपने कार्य क्षेत्र में हिंदी के प्रयोग को उन्नत करें|

मेरा निजी अनुभव:

मुझे प्रतीत हुआ के आयोजक मंडल इस “शो केस” संकल्पना से अन्भिग्ग हैं. विभिन्न सत्रों में या तो अकादमीयता छाई रही या प्रस्तुति और स्वनांत सुखाय अभिगम देखने को मिली.

उदहारण स्वरुप न्यू यॉर्क सम्मेल्लन में गुलज़ार साहेब ने हिंदी की गरिमा को उजागर करने के बजाये हिंदी और उर्दू में समानता व् नुक्ते और बिंदियो पर वक्तव्य दिया, इसी प्रकार पंकज उदहास ने हिंदी के गीत गाने के बजाये ग़ज़ल व् शेरो-शायरी को गाकर अपना कार्यक्रम पूरा किया.

मॉरिशस में अनेक सरकारी या गैर सरकारी प्रतिभागी, अनेक सत्रों से नादारत रहे. औपचारिक सत्र खत्म होते ही अनेक प्रतिभागियों को मॉरिशस भ्रमण के लिए जाता पाया गया.

इसके संग संग एक बात जो अखरी वो प्रतिभागियों द्वारा भोजन व् शौच व्यवस्था को लेकर प्रतिसेवक मंडल के सदस्यों को उचित मान न देना, व अनुशासन हीनता का प्रदर्शन|

मॉरिशस में सम्मेल्लन को लेकर वहां के जनमानस में जो उत्साह था वो सचमुच सराहनीय था, भूतपूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई के देहावसान का साया सम्मेल्लन पर रहा, जिसके चलते निर्धारित कार्यक्रम में परिवर्तन किया गया. अशोक चक्रधर द्वारा संचालित कार्यक्रम में अटल जी को विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विशेषकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की श्रधांजलि ह्र्द्याग्राहिक रही|

मॉरिशस की एक झलक व् वहां के वक्ताओं के उद्गारों को सुन कर संस्कृति व् संस्कारों को जीवित रखने में भाषा के महत्व को देखा समझा जा सकता है, ये एक सुखद अनुभव था. इसके साथ साथ विभिन्न देशों के संग संग भारत के विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों से मिलने का व् हिंदी के प्रति उनके उत्साह को देखने का एक सुअवसर भी इन सम्मेल्लानों ने प्रदान किया.

कुल मिलाकर मेरे लिए इन दोनों विश्व हिंदी सम्मेलनों में एक निजी प्रतिभागी स्वरुप भाग लेना एक सुखद अनुभव रहा|

इन सम्मेलनों व् अन्य आयोजनों में भाग लेकर एक बात जो समझ पाया हूँ वह ये कि प्रबंधकों व् आयोजकों को सम्मेल्लन के उद्द्येश्यों को पूरी तरह से समझना चाहिए व् उनकी एक जवावदेही होनी चाहिए, वरना इस प्रकार के भव्य आयोजन जिन पर सरकार धन व् समय निवेश करती है उन्हें संसाधनों का दुरूपयोग ही माना जायेगा.

आगामी १२वा अन्तराष्ट्रीय हिंदी सम्मेल्लन देवास में १० से 12 सितम्बर २०२१ तक आयोजित किया जायेगा, मैं आशा करता हूँ, के उससे जुड़े सब लोगों को ये पता होगा कि इस प्रकार के सम्मेल्लन की उपयोगिता क्या है.

इन आयोजनों में कमी के लिए सरकार व् आयोजकों को दोष देना उचित नहीं, ये समझ कि राष्ट्रीय व् सामाजिक जनजीवन में भाषा का क्या महत्व है, और इसमें एक आम नागरिक की भागेदारी आवश्यक क्यों है, यह समझना –समझाना ही “हिंदी सेवकों” का योगदान होना चाहिए, और अपने इस कर्तव्य के प्रति उनकी निष्ठां, ईमानदारी व् जवाबदेही ही हिंदी के भविष्यके सुनिश्चित कर सकती है|

साधुवाद!

निवेदक: निखिल कौशिक, Wrexham, UK

 

 

 

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